यह लोकसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक साबित होने वाला है। ऐतिहासिक इस रूप में भी जहां लोग रोजगार पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे है, तो वहीं कुछ लोग धार्मिक तौर पर राम मंदिर मुद्दे को ज्यादा तवज्जो देकर उन सभी मुद्दों को दरकिनार करने में लगे हैं, जिससे लोगों का सामाजिक और आर्थिक पक्ष मजबूत होता है। देश में राम मंदिर को लेकर एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिल रहा है, जिसकी खुशी में राम भक्तों के लिए यह पल एक तरह से वरदान साबित होने जा रहा है। क्योंकि देश में राम मंदिर का मुद्दा बड़ा ही संवेदनशील रहा है। जिस पर कोई बोलने से कतराता है, लेकिन चुनावी नजरिए से राम मंदिर का मुद्दा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार करने में भी मदद कर सकता है। जिसके आसरे बीजेपी की चुनावी नैय्या पार लग सकती है। नई साल की शुरुआत से पहले पीएम मोदी ने अयोध्या में बाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट और अयोध्या धाम जंक्शन रेलवे स्टेशन के नामकरण करके देश को साफ संकेत दे दिया है कि अब अयोध्या आगामी लोकसभा चुनाव के केंद्र्र में होने जा रही है। क्योंकि अयोध्या के आसरे केंद्र की राजनीति साधी जा सकती है। धार्मिक केंद्रों को ज्यादा फोकस करके इस बार का लोकसभा चुनाव लड़ा जाना तय है। धर्म की राजनीति जिस तरीके से देश की राजनीति में प्रवेश करती जा रही है साथ ही साथ यह देश के सिस्टम को भी उतना ही कमजोर करती जा रही है। यह देश की जनता को भले ही अभी समझ में न आए, लेकिन जिस दिन वह अपने विवेक से जागेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। क्योंकि देश का सामाजिक और आर्थिक पक्ष तभी मजबूत होता है, जब देश की राजनीति साफ स्वच्छ हो। देश की राजनीति में धर्म की सुगंध जितनी ज्यादा फैलेगी देश का वोटर उस सुगंध को महसूस करके उतना ही आनंदित होगा।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा, 22 जनवरी का दिन जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है। देश की फिजा भी उतनी ही तेजी से लगातार बदलती जा रही है। राम भक्तों के लिए 500 साल का वनवास अब खत्म होने वाला है। राम मंदिर लगभग बनकर तैयार है। बाईस जनवरी के बाद देश की राजनीति किस ओर जाएगी यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा। प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन पीएम मोदी ने राम भक्तों को अयोध्या न आने की अपील जिस अंदाज में की उसका भी कुछ मतलब रहा होगा। राम मंदिर गर्भ गृह में उस दिन मात्र पांच लोग उस ऐतिहासिक दिन के साक्षी बनेंगे, जिसमें पीएम मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास मौजूद होंगे। यानी बीजेपी जिस तरह से इस दिन को ऐतिहासिक बनाने जा रही है, इसका लाभ कितना होगा यह तो समय ही बताएगा।
देश में अब राजनीतिक और धार्मिक यात्राओं का महत्व अब कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगा है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा की सफलता के बाद एक बार फिर से देश की यात्रा पर निकलने वाले है। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा कई मायनों में खास रही, जिसकी बदौलत कांग्रेस ने कर्नाटक और हिमाचल में जबरदस्त जीत दर्ज करके केंद्र को सत्ता का आईना दिखाया कि राजनीतिक यात्रा, धार्मिक यात्रा से क्यों महत्वपूर्ण होती है। लेकिन कांग्रेस की असली परीक्षा तब हुई जब वह छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक गंवा बैठी। इन राज्यों में भारत जोड़ो यात्रा अपना कोई खास असर नहीं छोड़ पाई। लेकिन भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को जहां जितना लाभ हुआ उससे कहीं ज्यादा उसको नुकसान भी झेलना पड़ा। इन तीनों राज्यों से पार्टी का वोट बैंक छिटककर सीधे बीजेपी को फायदा पहुंचाता हुआ दिखा। यहां एक बात गौर करने वाली यह भी है कि भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी की छवि को एक जुझारू नेता के तौर पर देखा गया है। भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया ने राहुल गांधी की यात्रा को भले ही कवरेज न दिया हो, लेकिन सोशल मीडिया यूट्यूब चैनलों ने इस यात्रा को देश की जोड़ने वाली यात्रा के तौर पर पेश किया और इसमें वे काफी हद तक कामयाब भी रहें ।
लोकसभा चुनाव से तीन महीने पहले राहुल गांधी एक फिर से पूरब से पश्चिम तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा की शुरुआत 14 जनवरी से शुरू करने जा रहे हैं। कांग्रेस की यह यात्रा 15 राज्यों और लगभग 357 सीटों को कवर करते हुए 20 मार्च को मुंबई में समाप्त होगी। अगर पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो कांग्रेस ने इन सभी सीटों पर मात्र 14 सीटें ही जीती थी, जबकि भाजपा ने इनमें से 239 सीटें जीती। यानी बीजेपी का वोट शेयर लगभग 67 प्रतिशत रहा। भारत जोड़ो न्याय यात्रा कुल 6700 किलोमीटर की दूरी तय करके मुंबई पहुंचेगी। लगभग पांच राज्य इस यात्रा में ऐसे भी होंगे जहां कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर कांग्रेस ने यूपी जोड़ो यात्रा का पहला चरण पूरा कर लिया है जो यूपी के सहारनपुर से लेकर लखनऊ तक हुई। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस यूपी में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए जनता की आवाज बनना चाहती है। इसलिए कांग्रेस ने यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर अभी से अपने प्रभारी घोषित कर दिए है। कांग्रेस यूपी में एडी से चोटी का जोर लगाए हुए है ताकि उसके लिए यहां कुछ चमत्कार हो जाए।
अब सवाल यही है कि कांग्रेस की यात्रा का आॅब्जेक्टिव क्या होगा? क्या वह देश में फैली सामाजिक विषमता को कम करने का काम करेगी? या फिर सामाजिक न्याय दिलाने के लिए देश की जनता को समझाने की कोशिश करेगी? देखना यह भी होगा कि कांग्रेस को इस यात्रा से कितना लाभ होगा यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन बीजेपी ने इस बार ‘मोदी सरकार तीसरी बार, अबकी बार 400 पार’ का नारा देकर आगामी लोकसभा की पटकथा लिख दी है। बीजेपी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद इस मुहिम को और तेज करना चाहेगी।
बीजेपी भी चुनावी समर और राम मंदिर के साथ साथ ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ निकाल रही है। राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले बीजेपी देश के हर जिलें गांव-गांव में अक्षत पूजा यात्रा और पटना से, 20 दिन की लव-कुश यात्रा अयोध्या के लिए निकल पड़ी है। यानी भाजपा ने देश के दलित, पिछड़े वर्गों को साधने के लिए धार्मिक यात्राओं की शुरुआत करके जातिगत समीकरण को पीछे छोड़ दिया है। आरएसएस और हिंदू परिषद 22 जनवरी कार्यक्रम को लेकर हर जिले के गांव, गली और मोहल्लों से कलश यात्राएं निकलवा रही है। भाजपा ने यूपी विधानसभा चुनाव के अपने घोषणा पत्र में यह शामिल भी किया था कि अगर वह सत्ता में आती है तो वह लोगों को अयोध्या की मुफ्त यात्रा कराएगी। बीजेपी धार्मिक आस्था के जरिए राम मंदिर को केंद्र में रखते हुए इस बार के लोकसभा चुनाव को कुछ विशेष महत्व देने में लगी है। अब देखना यह होगा कि धार्मिक यात्राओं का प्रभाव राजनीतिक यात्राओं को कैसे प्रभावित करता है साथ ही साथ देश की जनता अपने विवेक से किसको ज्यादा तवज्जो देती है।