अंग्रेजों से लोहा लेने वाले क्रांतिकारियों की मेरठ धरती आज तय करेगी कि उनकी नजर में मेरठ का राजनीतिक ‘वीर’ कौन है? क्योंकि कई दिग्गज मेरठ लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में है, जिसमें भाजपा से अभिनेता अरुण गोविल, सपा से पूर्व मेयर सुनीता वर्मा और बसपा से देवव्रत त्यागी चुनावी मैदान में है। ये तमाम दिग्गज अपनी जीत दर्ज करने के लिए एक पखवाड़े से धुआंधार चुनाव प्रचार में जुटे हुए थे। अरुण गोविल का भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहला चुनाव है, जबकि समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी सुनीता वर्मा, इससे पहले बसपा से मेरठ में मेयर रह चुकी है और बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी भी राजनीति के क्षेत्र में नए हैं। इन तीनों में से मेरठ लोकसभा सीट से जीत का सेहरा किसके सिर सजेगा? यह आज मतदाता तय करेंगे।
भाजपा अरुण के भरोसे, हिंदू तय करेंगे राजनीतिक भविष्य
जनवाणी संवाददाता
मेरठ: क्रांतिकारियों का केंद्र रहे मेरठ से अरुण गोविल का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है। टीवी सीरियल के पर्दे पर भले ही लोगों के दिलों पर राज करने वाले अरुण गोविल का अब रियल लाइफ में राजनीतिक भविष्य तय होने जा रहा है। क्योंकि भाजपा अरुण गोविल के भरोसे है। मेरठ में भाजपा और अरुण गोविल दोनों की एक तरह से प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।
दरअसल, अरुण गोविल मूलरूप से मेरठ के ही रहने वाले हैं, लेकिन लंबे समय बाद मेरठ पहुंचे हैं, वो भी राजनीति की बेटिंग करने के लिए। भाजपा हाईकमान ने मेरठ के नेताओं को दर किनार कर अरुण गोविल को भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। लगातार कई दिनों की मेहनत के बाद भाजपा चुनाव को लेकर पूरी तरह तैयार है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मेरठ में जनसभा कर चुके हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रोड शो और जनसभा मेरठ में कर चुके हैं। वैसे मेरठ जनपद में सीएम की चार सभाएं हो चुकी हैं। ऐसा पहली बार हुआ, जब सीएम बार-बार मेरठ में आ रहे थे। एक तो गढ़ रोड स्थित सिसौली गांव में क्षत्रिय समाज को मनाने के लिए उनकी जनसभा हुई थी, जिसमें उन्होंने क्षत्रिय समाज को भाजपा की तरफ वोट करने की अपील की थी। शारदा रोड वैली बाजार, लाला के बाजार, घंटाघर आदि क्षेत्रों में उनका रोड शो हुआ था।
इसमें दो रैली, रोड शो मुख्यमंत्री का सफल रहा और भीड़ भी जुटी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर से एक टीम पिछले एक सप्ताह से मेरठ में डेरा डाले हुए हैं, जो अरुण गोविल को जीतने के लिए प्रयत्न कर रही है। पूरी रिपोर्ट पीएम को दी जा रही हैं। कौन-कौन नेता काम कर रहा है या कोई भीतर घात कर रहा है। उसकी रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाई जा रही थी।
इस वजह से भी भाजपा के स्थानीय नेता अरुण को जीताने के लिए जुटे हुए थे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ को भाजपा ने बेहद महत्वपूर्ण सीट माना है। क्योंकि गोविल का नाम श्रीराम से जोड़ा जा रहा है। इसलिए भाजपा ने पूरे देश में श्रीराम के नाम पर ही चुनाव लड़ने का संदेश दे रही हैं। राममंदिर को ही चुनावी जनसभाओं में मुद्दा बनाया गया हैं।
दलित और मुस्लिम तय करेंगे सुनीता वर्मा का भविष्य
लोकसभा चुनाव पर प्रथम चरण में जिस तरह से हिंदू मुस्लिम का रंग नहीं चढ़ पाया, यदि ऐसे ही चुनाव रहा तो दलित मुस्लिम गठजोड़ सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा का भविष्य तय करेगा। सुनीता वर्मा दलित वर्ग से है। इस वजह से भी उनका दावा है कि दलित वर्ग उनके साथ है,
लेकिन सुनीता वर्मा के इस दावे में कितना दम है यह तो आज होने वाले मतदान से ही पता चलेगा, लेकिन समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने क्रांतिधरा पर सामान्य सीट पर दलित वर्ग की महिला को चुनाव मैदान में उतार कर दलित-मुस्लिम गठजोड़ का ताना-बाना बुना था। अब देखना है कि मुस्लिम-दलित गठजोड़ बनता भी है या फिर मायावती की जनसभा ने इस दलित और मुस्लिम के गठजोड़ को बिगड़ने का काम किया है।
दरअसल, जब तक बसपा सुप्रीमो मायावती की मेरठ में जनसभा नहीं हुई थी, तब समाजवादी पार्टी प्रत्याशी सुनीता वर्मा और उनके पति पूर्व विधायक योगेश वर्मा इस बात से आश्वस्त थे कि उन्हें दलित वर्ग और मुसलमानों की बड़ी तादाद में वोट मिलेंगे, लेकिन जैसे ही मायावती की सभा हुई उसके बाद दलितों के वोटों को लेकर संशय पैदा हो गया हैं। क्योंकि दलितों पर मायावती की मजबूत पकड़ रही हैं। बसपा के पक्ष में दलितों का वोटों का रुख मायावती की सभा के बाद बढ़ सकता हैं। अब देखना यह है कि दलित वर्ग किधर जाता है,
यह बहुत कुछ तय करने वाला है। क्योंकि दलित पर ही सभी की निगाहें टिकी हुई है। दलित वोटों पर भाजपा, सपा और बसपा तीनों दल निगाहें लगाये हुए हैं। हिन्दू-मुस्लिम चुनावी रंग हो जाता है तो फिर भाजपा को भी दलितों का वोट मिल सकता हैं, इस बात को भाजपा के दिग्गज भी जानते हैं,
लेकिन हिन्दु-मुस्लिम का रंग प्रथम चरण में नहीं चढ़ा। इसी वजह से भाजपा के दिग्गज भी चिंतित हैं। मंच से प्रधानमंत्री हिन्दु-मुस्लिम की बात कर रहे हैं, लेकिन अब देखना ये है कि सपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ बैठाने में कामयाब रही तो सभी के लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं। बसपा भी दलित और मुस्लिम के साथ त्यागी वोटों का गठजोड़ बना रही हैं।
देवव्रत के पक्ष में याकूब की मौजूदगी क्या बदलेगी चुनावी तस्वीर?
क्रांतिधरा पर तीन दिग्गज चुनाव मैदान में हैं। तीनों ही अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं। भाजपा और सपा के बाद तीसरी ताकत है बसपा। ये भी महत्वपूर्ण है कि बसपा भी किसी से कम नहीं हैं। बसपा ने त्यागी समाज से देवव्रत त्यागी को चुनाव मैदान में उतारकर तीन बिरादरी को एकजुट करने की कोशिश की हैं, जिसमें मुस्लिम, दलित और त्यागी। इन तीनों बिरादरी को बसपा के मंच पर लाने के लिए तमाम प्रयास किये जा रहे हैं। त्यागी समाज में बसपा ने घुसपैठ अपनी बिरादरी की वजह से करने की बात की जा रही हैं,
लेकिन दलित वोटों पर बसपा का कैडर वोट होने का दावा किया जा रहा हैं। मायावती के एक आह्वान पर ही दलित वर्ग वोट देते रहे हैं, इस चुनाव में भी बसपा सुप्रीमो मायावती के आह्वान पर दलित वोट देगा या फिर नहीं? ये तो भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन मायावती की सभा ने सपा को पसीने छुड़ा दिये हैं। बसपा मुस्लिमों पर भी अपनी दावेदारी कर रही हैं। मुस्लिमों को बसपा की तरफ मोड़ने के लिए मुस्लिम नेता याकूब कुरैशी को लगाया गया हैं। याकूब और उसका पूरा परिवार चुनाव मैदान में हैं, जो बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी के लिए वोट मांग रहे हैं।
सपा प्रत्याशी सुनीता वर्मा के पति योगेश वर्मा को भी याकूब कुरैशी अपने निशाने पर ले रहे हैं, लेकिन याकूब कुरैशी की मुस्लिम कितनी मानते हैं, ये तो अभी भविष्य के गर्भ में हैं, लेकिन बसपा और सपा का चुनाव ही दलित और मुस्लिमों पर टिका हुआ हैं। जिस तरह का चुनावी दंगल चल रहा है, उसको देखकर लगता है कि दलित-मुस्लिम वोटों में बिखराव हो सकता हैं। सपा-बसपा दोनों को ही इसमें बड़ा झटका लग सकता हैं।
यदि दलित और मुस्लिम गठजोड़ होकर एक ही जगह वोट पड़ गया तो भाजपा को पसीने छूट सकते हैं। प्रथम चरण के चुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव देखने को नहीं मिला। मुस्लिमों का सपा के प्रति प्रेम दिखाई दिया। हालांकि मेरठ में याकूब कुरैशी मुस्लिमों के बड़े नेता हैं। उनके बसपा प्रत्याशी देवव्रत त्यागी के पक्ष में चुनाव मैदान में आने के बाद स्थितियां बदल भी सकती हैं।