रितेश ओमप्रकाश जोशी
अपनी आराम कुर्सी पर बैठा मैं सुस्ता रहा था कि यकायक मुझे पुकारने की आवाज आई। मैंने उठकर देखा तो मेरी टेबल पर मेरी डायरी में रखी कलम मुझे बुला रही थी। वह मेरी सबसे अच्छी सखी है। मैंने पूछा क्या हुआ? क्यों बुला रही हो? कलम बोली, आज मेरा जय बोलने का मन कर रहा है। जय बोलने का मन कर रहा है? मैंने पूछा, किसकी जय बोलने का मन कर रहा है? कलम के साथ रहते रहते मैं इतना तो समझ गया था कि शायद आज कवि शिरोमणि श्री रामधारी सिंह दिनकर को कलम ने पढ़ सुन लिया है, तभी कलम आज जय बोलने की बात कर रही है। मैंने कलम से फिर पूछा, किसकी जय बोलने का मन कर रहा है? कलम बोली-जो गलती कर बोलते नहीं/हो गई गलती यह मानते नहीं/है ऐसे जो विचित्र धरा पर/पीटते सदा आत्म प्रशंसा का ढोल/कलम आज उनकी जय बोल/कलम आज उनकी जय बोल।
मैं आश्चर्यचकित था। कैसी कलम है, जो जय भी बोलना चाहती है तो ऐसे लोगों की जो अपनी गलती नहीं मानते हैं और आत्म प्रशंसा का ढोल पीटते हैं। मैंने कहा, कलम आज तुम्हें क्या हुआ है जो गलती को अपना नहीं मानते वह तुम्हें अपना क्या मानेंगे? जो खुद की गलती से वफादारी नहीं निभाते वह भला तुमसे प्रीत क्या निभाएंगे? कलम बोली, मैं भी आपके जैसी सोच से पीड़ित थी, किंतु जब से मैंने सुना है कि संसार में ऐसे लोग भी हैं जो अपनी गलती मानते ही नहीं, तब से मैं उनके आत्मविश्वास की बड़ी प्रशंसक हो गई हूं। क्या इतना सहज है अपने आप को धोखा देना? जानते हुए कि हम गलत कर रहे हैं यह नहीं मानना कि हमने गलत किया है, इसके लिए बड़ी दिलेरी चाहिए और मैं ऐसे ही दिलेर लोगों की जय बोलना चाहती हूं। उनकी प्रशंसा में कुछ लिखना चाहती हूं। मैंने कहा जरा हम भी तो सुने हमारी कलम क्या-क्या बोलना चाहती है? कलम बोली, ऐसे लोगों का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर होता है। यह इतने बड़े जादूगर होते हैं कि हर घटित होने वाली नकारात्मकता को अपने अनुकूल सकारात्मकता में बदल सारी महफिल लूट लेते हैं। सकारात्मकता इनमें कूट-कूट और ठूंस-ठूंस कर भरी होती है उनके किरदार भले ही बदल जाएं पर डायलॉग और उसके पीछे की भावना यही है-सफर में मुश्किल क्या है, बता दे ऐ मुसाफिर गलती को छोड़ क्या है जो न किया है हमने…ऐसी महान शख्सियतें घर में, समाज में, नगर में, राज्य में, देश में यहां तक अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भी आसानी से खोजी और देखी जा सकती हैं। पति-पत्नी के तलाक से लेकर रूस यूक्रेन युद्ध के जिम्मेदारों तक सब यही मानते हैं कि हमारी कोई गलती नहीं है। हमने कोई गलती नहीं की है। ऐसे लोगों का एक ही ध्येय वाक्य होता है, गलती के लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं, मेरी इस गैर जिम्मेदारी के लिए आप जिम्मेदार हैं।
ऐसे लोग अपनी त्वरित बुद्धि और चमत्कारी जिव्हा के साथ अपनी गलतियों को वैसे ही ढांक लेते हैं, जैसे दही अपने अंदर बड़े को छुपा लेता है। कलम के इस विमर्श ने मुझे सहसा याद दिलाया कि कल सब्जी स्वादिष्ट नहीं बनी थी और जब मैंने इस बाबत श्रीमती जी से कहा था तो उन्होंने दो टूक मुझ से कह दिया था कि आप आजकल सब्जी देखकर नहीं लाते हैं। सब्जी ही खराब आ रही है तो स्वाद कहां से आएगा। ऐसे ही चाय के खराब बनने पर उन्होंने दूध के ऊपर दोषारोपण करते हुए दिव्य ज्ञान दिया था कि बारिश के दिनों में भैंस हरा चारा ज्यादा खाती है, इसलिए दूध का स्वाद बिगड़ जाता है। फिर मुझे याद आया कि चुनाव में जो दल जीता, उसने अपनी जीत को ऐतिहासिक करार दिया और जो दल हारा उसने अपने प्रदर्शन को जनता की जीत बता दिया। यक्ष प्रश्न है, दोनों जीते तो हारा कौन? फिर याद आया कि मैं पैदल पैदल अपनी राह से शाम को घूमने जा रहा था और एक नवयुवती जो गाड़ी सीख रही थी, उसने मुझे पीछे से टक्कर मार कर बोला था, अंकल मैं तो गाड़ी सीख रही हूं पर आपको तो देख कर चलना था।
ऐसे ही एक बार पड़ोसी का कुत्ता मुझे ब्रेड समझकर खाने दौड़ा तो मेरे द्वारा कुत्ते जी के मुझे काटने के लिए दौड़ने की शिकायत करने पर पड़ोसी ने बोला था, भाई साहब हमारा बनी ऐसे नहीं काटता, बड़ा शरीफ है, कुत्ता तो केवल नस्ल है, अक्ल और शक्ल में इंसानों से भी बेहतर है, जरूर आपने हीं कुछ किया होगा। समझाने की आवश्यकता नहीं कि पड़ोसी ने बड़ी ही शराफत, सफाई, खूबसूरती और चतुराई से दो मिनट में ही मुझे बनी से गया गुजरा बता दिया था। याद आया कि आॅफिस में बॉस को बड़े बॉस ने डांट पिलाई थी। तब बॉस ने उसका अकारण उतारा मुझ पर किया था और जो विषय में जानता भी नहीं था, उस पर बॉस ने मुझे बोला था कि तुम्हारे कारण आज मुझे इतनी बातें सुनने को मिलीं। इन सब संस्मरणों को स्मरण कर मुझे लगा कलम सही बोल रही है। दुनिया भरी पड़ी है ऐसे रूस्तमों से, जो अपनी गलती नहीं मानते। अपनी गलती के लिए दूसरों की गर्दन का नाप लेते फिरते हैं। मुझे लगा कलम के साथ आज मुझे भी ऐसे लोगों की जय बोलना चाहिए।