सुनील कुमार महला
स्कूली बच्चों में विडियो गेम्स की लत स्वयं बच्चों के लिए व उनके परिवार के लिए बहुत ही घातक सिद्ध हो रही है। सच तो यह है कि आज के समय में जब हम संचार क्रांति के युग में सांस ले रहे हैं, तब घंटों आॅनलाइन गेमिंग की लत बच्चों को मानसिक रूप से बीमार बना रही है। दरअसल, कोरोना महामारी के बाद से बच्चों को मोबाइल यूज करने की ज्यादा लत लग गयी है। कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना महामारी(कोविड-19) के दौरान हुए लॉकडाउन की वजह से बच्चों की कोचिंग व स्कूल की आॅनलाइन क्लासेज लगने लगी और बच्चों को एंड्रॉयड मोबाइल फोन या टैबलेट या कंप्यूटर देना माता पिता और अभिभावकों के लिए मजबूरी बन गया था। बच्चों को मोबाइल मिलने की वजह से वे आॅनलाइन गेमिंग के आदि हो गए और मानसिक तौर पर बीमार होने लगे हैं।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि ज्यादा समय तक आॅनलाइन गेम खेलने वाले बच्चों के व्यवहार में उग्रता आ जाती है, जिसके बाद उनमें तनाव बढ़ने लगता है। कुछ मामलों में उनको दौरे तक भी पड़ने लगते हैं। आज मोबाइल गेम्स के चक्कर में बच्चे अभिभावकों का कहना तक नहीं मानते हैं, क्यों कि आनलाइन गेम्स उन्हें आनंद व खुशी की अनुभूति प्रदान करते हैं। मोबाइल छीनने पर वे उग्र, कभी कभी तो हिंसक भी हो जाते हैं। आनलाइन गेम्स खेलने से बच्चे जहां एक ओर पढ़ाई से दूर होने लगे हैं वहीं पर दूसरी ओर इससे उनकी आंखों, दिमाग पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो एक सर्वे के मुताबिक, भारत के 40 प्रतिशत अभिभावकों ने माना था कि उनके बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल करने, वीडियोज देखने और आॅनलाइन गेम खेलने के आदि हैं। इन बच्चों की उम्र 9 साल से 17 साल के बीच है। इस सर्वे में शामिल 49 प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि उनके 9 साल से 13 साल के आयुवर्ग के बच्चे रोजाना 3 घंटे से ज्यादा समय इंटरनेट पर बिताते हैं। वहीं, 47 प्रतिशत अभिभावकों का मानना था कि उनके बच्चे को आॅनलाइन गेमिंग, सोशल मीडिया और शॉर्ट वीडियोज देखने की बुरी लत लग गई है। सर्वे में भाग लेने वाले 62 प्रतिशत अभिभावकों का मानना है कि उनके 13 साल से 17 साल के बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे से ज्यादा समय स्मार्टफोन पर बिताते हैं।
हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे जिले से एक बहुत ही चौंकाने व दिल दहलाने वाली खबर सामने आई है। यहां एक पन्द्रह वर्षीय बालक ने एक बहुमंजिला इमारत की चौदहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी। प्रारंभिक जांच में यह पता चला है कि नाबालिग ने कथित तौर पर ब्लूव्हेल चैलेंज गेम की लत के चलते यह खतरनाक कदम उठाया है। मीडिया के हवाले से खबर आई है कि जिस बच्चे ने चौदहवीं मंजिल से कूदकर अपनी जान दे दी वह आॅनलाइन गेम खेलने का आदी था। यह भी बताया जा रहा है कि मृतक लड़का पढ़ाई में बेहद अच्छा था और हाल ही में उसने अच्छे अंकों के साथ 9 वीं कक्षा पास की थी। पिछले कुछ महीनों से उसे आॅनलाइन मोबाइल गेम खेलने की लत लग गई थी।
आज हमें हर कहीं ऐसे विज्ञापन जरूर देखने को मिल जाएंगे जिसमें ये प्रचार किया जाता है, ‘घर बैठे लाखों, करोड़ों रुपये कमाएं।’ बच्चे इन सबके बारे में समझ नहीं पाते हैं, क्यों कि समयाभाव के कारण हम अभिभावक बच्चों पर पर्याप्त ध्यान नहीं रख पाते हैं और बच्चों को गाइडेंस का अभाव रहता है। यह बहुत ही चिंताजनक है कि आज कम कीमत पर मोबाइल फोन और कनेक्टिविटी मौजूद हैं और इसकी वजह से आॅनलाइन जुए की लोकप्रियता न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में फैल रही है। वास्तव में विडियो गेम्स से जहां एक ओर हमारा धन व समय बर्बाद होता है वहीं दूसरी ओर इससे व्यक्तिगत, सामाजिक, शैक्षिक और व्यावसायिक जिम्मेदारियों सहित दैनिक कामकाज पर भी बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तव में अभिभावकों, माता पिता को आनलाइन गेम्स के जोखिमों के बारे में जानना चाहिए और बच्चों को इसके प्रति आगाह करना चाहिए। हमें अपने बच्चों को जानकारी देनी चाहिए कि ये गेम दूसरे लोगों के साथ आॅनलाइन खेले जाते हैं और खास तौर पर नशे की लत वाले होते हैं क्योंकि इनका कोई अंत नहीं होता।
आनलाइन गेम्स देश का भविष्य खराब कर रहे हैं। धन व समय तो बर्बाद हो ही रहा है। आज युवाओं की जिंदगी भी दांव पर लगी है। इसलिए अभिभावकों को यह चाहिए कि वह अपने बच्चों की गतिविधियों पर पर्याप्त ध्यान रखें, उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय दें, उनकी समस्याओं को सुनें, उन्हें खेल के मैदानों से अधिकाधिक जोड़े। अधिकाधिक किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। किताबें सबसे अच्छी मित्र होती हैं, यह बच्चों को बताया जाए। बच्चों को दादा-दादी नाना-नानी, अभिभावकों से कहानियां,किस्से सुनाए जाएं। बच्चों के मनोरंजन की पर्याप्त व्यवस्था हो। ऊपर बता चुका हूं कि बच्चों को खेल के मैदानों से जोड़ें। बच्चे क्रिकेट , वॉलीबॉल, फुटबॉल, खो-खो जैसे आउटडोर गेम खेल सकते हैं या स्विमिंग, जिम, पेंटिंग और कुकिंग आदि भी कर सकते हैं। बच्चों को जो काम अच्छा लगता हो मतलब कुछ क्रिएटिव वो कर सकते हैं। ये एक्टिविटी बच्चों को आॅनलाइन गेमिंग से अपना ध्यान हटाने में मदद करेंगी। बच्चों को चिड़ियाघर, म्यूजियम, किसी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व किसी पर्यटन स्थल की सैर कराई जा सकती है, उन्हें पिकनिक पर ले जाया जा सकता है। परिवार के साथ टाइम बिता कर गेमिंग लत को छुड़ाया जा सकता है। किसी मनोवैज्ञानिक की सहायता से इस संबंध (गेमिंग छुड़ाने) में मदद ली जा सकती है। बच्चों के साथ अभिभावकों को क्वालिटी टाइम स्पेंड करना चाहिए। इसके अलावा बच्चों को आनलाइन गेम्स के साइड इफेक्ट्स के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। फ्री टाइम का सदुपयोग किया जाना चाहिए। इलैक्ट्रोनिक गैजेट्स को बच्चों से दूर रखा जाना चाहिए। पैरेंट्स को बच्चों के साथ अपनी बैंक डिटेल्स साझा करने से बचना चाहिए। बच्चों को कुछ हॉबी फॉलो करने की सलाह देनी चाहिए। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे कभी भी अपने बच्चों को अकेलापन महसूस नहीं होने दें। वास्तव में कार्य, घर के अंदर जीवन, बाहर के मनोरंजन तथा सामाजिक व्यस्तताओं के बीच संतुलन कायम रखना सबसे महत्वपूर्ण काम है।