Wednesday, December 18, 2024
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चांदी उछली सोना लुढ़का

Amritvani 22

न्हें खरीदना नहीं है, उन्हें भाव की चिंता ज्यादा है। अब निकम्मे मौसम पर बरसते नहीं, सोने चांदी के भाव पर चमकने लगे हैं। इन दिनों बाजार में टमाटर- प्याज और चांदी- सोना में स्पर्धा चल रही है। हालांकि एक दिन इन्हें धड़ाम से गिरना है लेकिन आज तो इनके उछलने का दिन है। वो सारे लोग जो टमाटर नहीं खरीद पा रहे हैं उनकी चिंता सोने का रेट है। दूर दराज रहने वाले रिश्तेदारों से वहां के भाव की जानकारी ले रहे हैं। इस बात का अफसोस कर रहे हैं, जब पैंतीस का रेट था, तब सौ तोला खरीद लिए होते तो आज रकम डबल हो जाती। जब भाव पैंतीस का था, तब भी इन्होंने ही कहा था, जब भाव बीस का था तब सौ तोला ले लिए होते तो आज कमा लेते। सौ तोला से कम ये लोग खरीदते ही नहीं हैं। इनके सारे लेन देन मुंह जुबानी ही होते हैं। ये पान की दुकान पर खड़े-खड़े करोड़ों का लेन देन मुह जबानी कर लेते हैं। कल्पना में ही लाखों कमा कर पान का पैसा उधारी खाते में लिखा कर निकल जाते हैं।

यह जमाने का अजीब चलन है कि खरीदने वाले को महंगा भी वाजिब लगता है और सिर्फ भाव पूछने वाले को सस्ता भी बहुत महंगा महसूस होता है। बाजार की उठा पटक से लेखन भी प्रभावित होता है वरना रचना का शीर्षक ‘जवानी उछली- बुढ़ापा लुढ़का’ भी हो सकता था। टमाटर के रेट पर चर्चा करना समझ में आता है क्योकि उसे रोज खरीदना होता है और हर एक को खरीदना होता है लेकिन चांदी सोना के भाव पर हर शख्स परेशान सा क्यों है? अगर बढ़ती कीमत से परेशान हो तो किताबों की बढ़ती कीमत पर परेशान क्यों नहीं होते? किताबों की कीमत भी तो इसी अनुपात में बढ़ी है।

किताब के भाव की बात किया तो एक सज्जन कहने लगे- सोना और किताब हमेशा अनुभवी व्यक्ति के साथ जाकर लेना चाहिए वरना आप ठगे भी जा सकते हैं। मैं एक किताब जो अच्छी खासी महंगी थी खरीद लिया। घर आकर कर पढ़ा तो समझ गया कि साहित्य के बाजार में पाठक को कैसे ठगा जा रहा है। किताब के ऊपर तो बहुत भाव था लेकिन किताब के अंदर कोई भाव नहीं था। वह दिन है और आज का दिन है मैं साहित्य का जला अखबार भी फूंक फूंक कर पढ़ता हूं।

चांदी और सोना इश्क मोहब्बत में भी घुस गया है तभी तो कोई आशिक अपनी माशूका से कहता है-चांदी का बदन सोने की नजर और इस पर अदायें क्या कहिये तो कोई कहता है चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल-एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल। हालांकि सोना अर्थव्यवस्था का जादू है, फिर भी एक वर्ग ऐसा है, जो सोना नहीं मांगता वह बस सोना चाहता है और वह हर अवसर पर सो लेता है।

एक शायर हुए थे शौक जालंधरी, जिन्होंने दो लाइनों में मेरे दिल की बात कह दी आप भी जानिये-

मेरे अशआर कभी उगलेगे सोना/इसी उम्मीद में बाल चांदी हो गए।

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