विश्व का सर्व शक्तिशाली देश अमेरिका इन दिनों गोया प्राकृतिक प्रलय की चपेट में है। एक ओर तो मध्य अमेरिका में आये भीषण बर्फीले तूफान से करीब 6 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं। कई प्रांतों में इमरजेंसी घोषित कर दी गई है। मौसम विभाग के अनुसार यह तूफान बीते एक दशक का सबसे खतरनाक तूफान है। राष्ट्रीय मौसम सेवा ने कंसास और मिसौरी से लेकर न्यू जर्सी तक बर्फीले तूफान की चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि इस क्षेत्र के उन स्थानों पर जहां सबसे अधिक बर्फबारी होती है, वहां कम से कम एक दशक की सबसे भारी बर्फबारी हो सकती है।
जहां इस बर्फीले तूफान ने मध्य अमेरिका में कई राज्यों में जन जीवन अस्त व्यस्त किया, वहीं पिछले कई दिनों से लॉस एंजेलिस के जंगलों में लगी आग अभी तक पूरी तरह बेकाबू बनी हुई है। आग की लपटों की भयावहता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है और अनेक लोग लापता हैं। हजारों एकड़ के इलाके में फैली इस भयानक आग के कारण लाखों लोगों को सुरक्षित जगहों पर जाना पड़ा है। इस आग से यहां के हजारों आलीशान मकान और लाखों बेशकीमती गाड़ियां जलकर राख हो चुकी हैं। जिन लोगों के घर इस आग में तबाह हुए हैं उनमें अनेक विशिष्ट लोग व सेलिब्रिटीज भी शामिल हैं। इस आग के चलते अब तक अरबों डॉलर की संपत्ति का नुकसान हो चुका है। एक निजी कंपनी द्वारा आग की वजह से अब तक करीब 250 अरब अमेरिकी डॉलर के आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया है। मतलब नुकसान बड़ा हुआ। बाकी नुकसान का पता कुछ दिनों बाद मालूम होगा, क्योंकि अभी नुकसान का आंकलन किया जा रहा होगा।
प्राकृतिक आपदाओं में पूरे विश्व को बढ़चढ़कर सहायता पहुंचाने वाला अमेरिका लॉस एंजेलिस के जंगलों में लगी आग को बुझा पाने में पूरी तरह असमर्थ साबित हुआ है। जिसका सबसे बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि जंगल की इस आग को विस्तार देने में उन प्राकृतिक तेज हवाओं की सबसे बड़ी भूमिका है जो 100 से लेकर 135 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से इन इलाकों में चल रही हैं। इस आग में हॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री का काफी बड़ा इलाका और इससे जुड़े कई ऐतिहासिक स्मारक भी जलकर राख हो चुके हैं। आग बुझाने के लिए कहीं पानी की कमी है तो कहीं पानी गिराने वाले विमानों की संख्या कम है। अमेरिकी फायर फाइटर्स स्वयं को असहाय महसूस कर रहे हैं।
यह आग मानवता पर कितना बड़ा प्रकृतिक संकट है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि अमेरिका का सबसे बड़ा विरोधी देश ईरान भी ऐसे संकट में अमेरिका की मदद की पेशकश कर रहा है। ईरान की रेड क्रिसेंट सोसाइटी के प्रमुख पीर हुसैन कोलीवंद ने अमेरिकी रेड क्रॉस के सीईओ क्लिफ होल्ज को इस संबंध में संदेश भेजा है। जिसमें उन्होंने आग से हुए नुकसान पर दुख जताते हुए इसे एक बड़ी त्रासदी बताया है। कोलीवंद ने कहा कि इस आपदा में हम अमेरिका की हर संभव मदद के लिए तैयार हैं। गौरतलब है कि दोनों देशों के काफी लंबे समय से तनावपूर्ण रिश्ते हैं। परन्तु ईरान ने आग की भयावहता को देखते हुए दुश्मनी को भूलकर मदद का हाथ बढ़ाया है।
जाहिर है कि विश्व के अब तक के सबसे भयानक व सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाले इस अग्निकांड ने फिर उन्हीं सवालों पर बहस छेड़ दी है जिसकी चर्चा गत तीन दशकों से विश्वव्यापी स्तर पर की जा रही है। सवाल उठने लगा है कि क्या यह सब ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है या कुछ और? हालांकि लॉस एंजेलिस के जंगलों में लगी इस आग के बारे में एक खबर यह भी है कि यह किन्हीं शरारती तत्वों द्वारा लगाई गयी आग है। अमेरिकी पुलिस ने इस संदेह में कुछ गिरफ़्तारियां भी की हैं, परन्तु यह बात पूरे दावे से इसलिए भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि इस इलाके में पहले भी अग्निकांड की घटनाए जंगलों में घर्षण के कारण होती रहती हैं। परंतु जितनी अनियंत्रित आग इस बार की रही, पहले कभी नहीं देखा गया। कल्पना कीजिए कि जब विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति इस आग को नियंत्रित कर पाने पूरी तरह असमर्थ है तो यदि ऐसी ही आग किसी विकासशील देश में लगी होती तो क्या आलम होता?
वैसे भी पिछले कुछ वर्षों के दौरान मौसम के निरंतर बिगड़ते जा रहे मिजाज के कारण दुनिया के अनेक देशों से जलवायु परिवर्तन व इसके परिणाम सम्बंधी जो समाचार आ रहे हैं वे बेहद चौंकाने वाले हैं। जो ग्लेशियर पूरी दुनिया की ऋतु का संतुलन बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे, वही ग्लेशियर अब तेजी से पिघल रहे हैं। इतनी तेजी से कि समुद्र में इन बड़े-बड़े हिमखंडों को टूटते और इन्हें पानी में मिलते देखने के लिए भी पर्यटन शुरू हो चुका है। यानी दुनिया की तबाही का जश्न दुनिया अपनी आंखों से देखना भी चाह रही है। तमाम रेगिस्तानी इलाके जहां के लोग बारिश और बर्फबारी से वाकिफ नहीं थे, वहां से बाढ़ और बर्फबारी की खबरें आ रही हैं। गत वर्ष पूरे विश्व में गर्मियों के दौरान तापमान में जो ऐतिहासिक वृद्धि दर्ज की गई, वह भी भारत सहित पूरे विश्व ने महसूस किया। इसी ग्लोबल वार्मिंग ने पहाड़ों की सुंदरता पर ग्रहण लगा दिया है। पर्वतीय क्षेत्रों में गर्मी बढ़ रही है। भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पीने के पानी की कमी होने लगी है। ध्रुवीय भालू जैसे अनेक दुर्लभ पशु पक्षियों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है।
पूंजीवाद के चुंगल में जकड़ी यह विश्व व्यवस्था तबाही के मुंहाने पर पहुंचने के बावजूद अभी भी विकास के नाम पर विनाश के खेल खेलती जा रही है। जलवायु संकट से कथित रूप से व्यथित परंतु जलवायु संकट को खुद ही बढ़ावा देने वाले देश प्राय: दुनिया में जलवायु संकट के गहराते खतरों पर घड़ियाली आंसू बहाने के लिये इकठ्ठा तो होते हैं, लेकिन वे अपने देशों के कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बजाये प्रगतिशील व गरीब देशों को पैसे देकर उन्हें कार्बन उत्सर्जन कम करने का पाठ पढ़ाते हैं। यही पूंजीवादी देश दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध भड़का कर भूमंडलीय ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) को और बढ़ाने का काम करते हैं। ऐसे में यदि भविष्य में पृथ्वी पर सामान्य जीवन की कल्पना करनी हो तो लॉस एंजेलिस की भयावह आग से मिलने वाले संकेतों को तत्काल समझने की सख़्त जरूरत है।