Friday, January 10, 2025
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होम मेकर्स भी करती हैं घर की नौकरी

Ravivani 14


गृहणियों द्वारा अपनी गृहस्थी में स्वेच्छा और समर्पण भाव से की जाने वाली नौकरी वाकई आज की व्यस्तता भरी जिन्दगी की दिनचर्या में सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकारते हुए वे अगली सुबह ही घड़ी की सुइयों के साथ कदम से कदम मिलाना आरंभ कर देती हैं। इतना ही नहीं, दिन भर की जद्दो जहद में वह अपने बच्चों को मातृत्व स्नेह एवं पति को दांपत्य सुख भी प्रदान कर देती हैं।उल्लेखनीय है कि सदियों से भारतीय गृहणियां पूर्ण रुपेण अपने पारिवारिक दायित्व निर्वाह की नौकरी बड़ी ही मुस्तैदी से करती आ रही हैं। चौका, बर्तन, खाना, बच्चा, इसके साथ पति की प्रेरणा, दुख, सुख की साथी, सास ससुर की सेवा, खेत खलिहान से आए अनाज का रख रखाव, मेहमानों की आवभगत सब कुछ खुद ही करती आई हैं। वक्त के साथ समाज में आए परिवर्तन, महिलाओं की साक्षरता में बढ़ोतरी, उनकी विचारधारा और रहन-सहन में आए बदलाव से गृहणियों की जिम्मेदारियों में काफी इजाफा हुआ है। इतना ही नहीं, पारिवारिक सोच में भी बहुत सुधार आया है। आज की गृहणियां सही मायने में अपने पति की अर्द्धांगिनी बनने का सबब पूरा कर रही हैं।

आज की गृहणियां पौ फटने से पूर्व ही उठकर पति और बच्चों को दफ्तर, स्कूल भेजने की तैयारी में लग जाती हैं। एक तरफ वे नाश्ता तैयार करती हैं तो दूसरी तरफ बच्चों को ब्रश करने के लिए उठाती हैं। बच्चा छोटा है तो खुद ही नहला कर तैयार भी कर लेती हैं। नाश्ता परोस कर लंच पैक करते ही घड़ी की सुइयां बस आने या स्कूल छोड?े का सिगनल दे देती हैं। इस अफरा तफरी में पति को चाय देकर वे बच्चों को छोड़ने निकल जाती हैं। लौट कर दुबारा पति के लिए नाश्ता परोसती हैं।

कई घरों में पति बच्चे एक साथ निकलते हैं तो पत्नी को बच्चों को छोड़ने जाने से राहत मिलती है। कुछ घरों में बच्चों को स्कूल जाने के लिए वाहनों या स्कूल बसों का सहयोग लेना पड़ता है। पति एवं बच्चों को स्कूल भेजने के बाद वह घर के शेष बचे कार्यो का निष्पादन करती है। कई गृहणियां स्वयं ही बच्चों की स्कूल फी, बैंक कार्य, बिजली, पानी बिल, गैस का नंबर लगाना जैसे कार्यो को करती हैं। इतना ही नहीं, बाजार से भी सब्जी एवं राशन के अन्य सामानों को स्वयं लाती हैं। इससे उनके पति को सहयोग मिलता है।

इतना करते हुए दोपहर का खाना अपने निर्धारित समय पर तैयार कर लेती हैं और बच्चों के स्कूल से लौटने तक घर को पूर्ण व्यवस्थित कर लेती हैं। बच्चों के लौटने पर उनके गृहकार्य को पूरा कराने, पढ़ाने आदि में भी सहयोग करती हैं। शाम होते पति के आने से पूर्व खुद को तरोताजा बनाकर

उनके लिए नाश्ता तैयार करके रखती है।

अद्भुत एवं काफी चुस्त दुरूस्त है गृहणियों की कार्य लीला। घर के भीतर ही नहीं, घर के बाहर भी जहां तक पारिवारिक जीवन का दायरा जाता है, वहां तक के कार्यों को समेट लेती हैं। रात तक पति व बच्चों की शारीरिक सेवा भी करती हैं परंतु खुद को उनके समक्ष थका होने का एहसास नहीं होने देती।

गृहस्थ संसार सिर्फ घर परिवार का ही आधार नहीं है बल्कि सम्पूर्ण समाज का आधार है और इसमें सक्रि य भूमिका निभाती हैं तो सिर्फ गृहणियां, उसके बाद कोई और। गृहणियां चाहे शिक्षित हों या अशिक्षित, शहरी या गांव की, सभी अपनी आवश्यकता एवं योग्यता अनुसार गृहस्थ कार्यों का निष्पादन कर पति एवं बच्चों को सहयोग प्रदान करती हैं। कभी हारती या घबराती नहीं, न ही थकती हैं। हर पल मुस्कराकर अपने गृहस्थ संसार में प्रवेश करने वालों का स्वागत करती हैं। इसलिए पत्नी या मां को घर का प्रधान होने का दर्जा मिलना चाहिए।

अनिता कुशवाहा


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