Sunday, October 6, 2024
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चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा मुख्य मुद्दा हो

 

मुद्दे और राजनीति सिक्के के दो पहलू हैं। एक दूसरे के संपूरक हैं। मुद्दाविहीन राजनीति उस ढाक के फूल की तरह होती है जो देखने में तो बड़ा आकर्षक लगता है उसकी चटख पंखुड़ियों को देखकर कोई भी अनायास आकर्षित हो जाए तो पास जाने पर सुगंध का अभाव उसे मायूस ही करता है।

चुनाव से लोग इसलिए भी आशा लगाए रखते हैं कि आने वाला बदलाव उनकी बेहतरी के लिए और संवेदनशील होकर काम करेगा। उनके समक्ष जो दिक्कतें और दुश्वारियां हैं, उसे दुरूस्त करने में अपना सब कुछ झोंक देगा। पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सुरक्षा बड़ा मसला है। इससे प्रदेशों की जनता की अमन-शांति भंग होती है।

उत्तरप्रदेश की 550 किलोमीटर सीमा नेपाल को छूती है। इस सीमा पर प्रदेश के सात जिले महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, लखीमपुर खीरी व पीलीभीत हैं। नेपाल में चीन की सक्रि यता ने इस सीमा को और भी असुरक्षित किया है। सीमा पर बढ़ रहे आबादी के असंतुलन को भी एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है। चुनाव के दौरान सीमा पार से जाली नोटों और मादक पदार्थों की आपूर्ति की आशंका बढ़ जाती है।

महराजगंज जिले की सोनौली सीमा असामाजिक तत्वों और अपराधियों के विभिन्न रास्तों से नेपाल में प्रवेश कर भारत में घुसपैठ का प्रवेश द्वार बनी हुई है। हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकी नसीर अहमद वानी, लियाकत अली, पुखराया रेल हादसे का मास्टर माइंड शमशुल होदा, याकूब मेमन, बिलाल अहमद बट, नूर बक्श, मुजतबा, दाऊद राथर, अशरफ ठाकुर, मुस्तफा हुसैन सोनौली सीमा से पकड़े जा चुके हैं। दो वर्ष पूर्व भारत में घुसपैठ करते रोहिंग्या मुसलमानों को भी सुरक्षा एजेंसियों ने पकड़ा था। महाराजगंज की 86 किलोमीटर सीमा नेपाल से सटी है।

पाकिस्तान से लगने वाली 553 किलोमीटर लंबी सीमा के कारण पंजाब आजादी के बाद से जूझ रहा है। 6 जिलों के साथ पाकिस्तान की सीमा लगती है। जहां पहले सीधी लड़ाइयोंं के जरिए पंजाब इस चुनौती को स्वीकार करता रहा है वहीं अब हर पल चुनौतियां बदल रही हैं। देश की सुरक्षा के लिहाज से पंजाब को इन चुनौतियों का बोझ उठाना पड़ा है।

अभी तक केंद्र में किसी भी पार्टी की सरकार हो, पंजाब को वह इंसाफ नहीं मिला है जिसकी राज्य को जरूरत है। बकौल पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रधानमंत्री की 5 जनवरी को होने वाली फिरोजपुर यात्र में उनके किसी बड़े एलान से यह इंसाफ मिलने वाला था लेकिन मौजूदा कांग्रेस सरकार की संकीर्ण राजनीति के कारण वह भी हाथ से जाता रहा।

15 साल आतंकवाद की लड़ाई को लड़ने के लिए तब 3500 करोड़ रूपए पंजाब ने अपने खजाने से खर्च किए जिसके कर्ज का बोझ एक दशक तक पंजाब के लोग चुकाते रहे। 1995 में जब आतंकवाद समाप्त हुआ लेकिन तब तक बहुत से बड़े उद्योग या तो दूसरे प्रदेशों में पलायन कर गए या फिर बंद हो गए। 2003 में पहाड़ी राज्यों को कर रियायतें मिलने से कई उद्योग वहां चले गए। पंजाब में रोजगार का अभाव है। त्रसदी यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और युवाओं के भविष्य की ओर कोई पार्टी नहीं देख रही है। सभी बस एक दूसरे का चरित्र हनन करके असल मुद्दों से ध्यान भटका रहे हैं।

हथियारों के साथ-साथ अब ड्रग्स भी आने लगी। पंजाब की युवा पीढ़ी बुरी तरह से ड्रग्स का शिकार हो गई। अब ड्रग्स और हथियार जीपीएस युक्त ड्रोन के जरिए भेजने का प्रचलन बढ़ गया है। अभी तक इन ड्रोनों को रोकने के लिए हमारे पास कोई तकनीक नहीं है। रिटायर्ड लेफ्टिनेट जनरल टी.एस.शेरगिल बताते हैं कि ये ड्रोन इतना नीचे उड़ते हैं कि रडार की पहुंच से बाहर हो जाते हैं। सबसे बड़ा खतरा यह है कि पहले ये केवल सतलुज नदी या उस पर लगी कंटीली तार को पार करने की क्षमता वाले ही थे लेकिन अब तो ये 31 से 51 किलोमीटर सीमा के अंदर आ जाते हैं और भारी हथियार, ड्रग्स आदि को जीपीएस के जरिए सटीक जगह पर पहुंचाते हैं।

चीन-नेपाल से सटे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ व चमोली समय-समय पर चर्चा में आते रहे हैं। ये दोनों जिले सामरिक रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद अहम हैं। समय-समय पर इन क्षेत्रों के लोगों ने सीमा की सुरक्षा से लेकर नेपाल से संबंधों तक में अपनी अहमियत दिखाई है। इसके बावजूद चुनावी महासमर में राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में न चीन से चुनौती की चिंता है और न ही नेपाल से संबंधों का मोल ही समझा गया है।

चीन शांत सीमा को अशांत बनाने की मंशा रखता है। चमोली जिले की मलारी घाटी के बाड़ाहोती चारागाह में वह समय-समय पर हस्तक्षेप की कोशिश कर रहा है। वहीं पिथौरागढ़ में नेपाल को आगे कर सीमा विवाद को तूल दे रहा है।
भारत-नेपाल संबंधों के जानकार सेवानिवृत्त मेजर बी.एस.रौतेला बताते हैं कि चीन की कोशिश नेपाल को आगे कर कालापानी विवाद को तूल देने की रही है। वह गुलाम कश्मीर की तरह नेपाल में भी विशेष गलियारा बनाना चाहता है जिसकी पहुंच सीधे पिथौरागढ़ जिले तक हो हालांकि उसकी साजिश परवान नहीं चढ़ पाई है।

चीन की शह पर 18 मई, 2020 को नेपाल सरकार ने नक्शा जारी किया जिसमें पिथौरागढ़ के लिपुलेख, कालापानी, कुटी, नाबी और गुंजी को अपना बताया था। नेपाल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की सक्रि यता भी चिंता बढ़ाने वाली है।

भारत में सीमा सुरक्षा के लिए हर देश की सीमा पर अलग-अलग एजेंसियां जैसे नेपाल व भूटान सीमा पर एसएसबी, पाकिस्तान व बांग्लादेश सीमा पर बीएसएफ, चीन सीमा पर आईटीबीपी, म्यांमार सीमा पर असम राइफल्स तैनात हैं। इनके अलावा तीनों सेनाएं देश की सुरक्षा के लिए हर समय सीमा पर तैनात रहती हैं।

वहीं, दुनिया के कई देशों में सुरक्षा के लिए एक केंद्रीकृत एजेंसी है। भारत को भी सीमा पर सुरक्षा के लिए केंद्रीकृत एजेंसी की तरफ बढ़ने की जरूरत है। चुनाव चाहे विधानसभा का हो या लोकसभा का, जिस तरह से नागरिक सुरक्षा संबंधी परिस्थितियों से प्रभावित होते हैं, उसे देखते हुए इन चुनावों में राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठना चाहिए।

नरेंद्र देवांगन


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