यह ठीक ही कहा गया है, बच्चा शरारत नहीं करेगा तो क्या? हम इस उम्र में शरारत करेंगे। जब परिवार में पहला बच्चा आने वाला होता है तो सभी उत्साहित होते हैं हम उसे ऐसे प्यार करेंगे, घुमाएंगे, पढ़ाएंगे, अनुशासित बनाएंगे आदि आदि। परिवार के सभी सदस्य अपने रिश्ते अनुसार सपने संजोते हैं।
पहली बार माता-पिता बनने पर उत्साह के साथ चिंता भी होती है, क्या हम ठीक से परवरिश कर पाएंगे, अधिक लाड़ से उसे बिगाड़ तो नहीं देंगे या अधिक अनुशासन से उसे अपने से दूर तो नहीं कर देंगे।
बच्चों की परवरिश सब अपने अपने तरीके और परिस्थिति अनुसार अच्छी ही करना चाहते हैं। परवरिश करने का कोई निश्चित नियम तो है नहीं। सब का अलग अलग ढंग होता है। तरीका परवरिश का जो भी अपनाएं, लचीला बनाएं ताकि बच्चे का जुड़ाव आपसे बना रहे न कि वह दूर हो जाए। बच्चे को प्राकृतिक रूप से बढ़ने में मदद करें। थोड़ी शरारतें भी जरूरी हैं। तभी वह अपना बचपन जी पाएंगे नहीं तो उम्र से बड़े हो जाएंगे। बस बच्चे को पूरा प्यार, समय और सहयोग दें।
बच्चे की जरूरत को जानें
जब बच्चा घर में आता है तो उसे ढेरों प्यार, समय और हर संभव सहयोग दिया जाता है। इस बात को खाली प्रारंभिक पालन पोषंण का हिस्सा न मानें। आगे चलकर भी उसे आपके सहयोग,प्यार और समय की जरूरत पड़ेगी।
जब बच्चा बड़ा होता है तब कभी कभी माता-पिता में उसे लेकर खींचातानी होने लगती है जो ठीक नहीं। अपनी कोई भी समस्या हो, आपस में शेयर कर सुलझाएं। ऐसे में बच्चे को नजरअंदाज न करें।
उसकी जरूरत को समझें और दोनों सहयोग करें। जो भी दिशा निर्देश दें, दूसरा उस पर टिप्पणी न करे। अकेले में बात करें ताकि बच्चा शुरू से महसूस करे कि मेरे माता पिता एकजुट मेरे साथ हैं। बच्चों को खिलौनों को के साथ माता-पिता का सहयोग भी जरूरी है।
दें ढेर सारा प्यार
अगर आप चाहते हैं आपका बच्चा आपके साथ प्यार से पेश आए तो आपको भी उससे प्यार से बात करनी होगी और प्यार देना होगा। बच्चे के समुचित विकास के लिए प्यार अति आवश्यक है पर उसका अर्थ यह नहीं कि आप उसकी गलतियों, बदतमीजियों को नजरअंदाज करते हुए उसे प्यार दें।
उसे गलत और सही में अंतर सिखाएं। हर जायज-नाजायज मांग को पूरा करना ही प्यार नहीं होता। सही रास्ता दिखाना भी प्यार है प्यार से ही समझाएं। कभी कभी थोड़ा गुस्सा करना पड़े या सख्ती बरतनी पड़े उसके अच्छे के लिए तो जरूर करें।
बच्चे का प्राकृतिक विकास होने दें
बच्चे को बचपन का पूरा आनंद उठाने दें। डेढ़ से तीन-चार साल तक बच्चे को उसके हिसाब से खेलने दें। थोड़ी शरारतें करने दें। बस ध्यान रखें कि वह स्वयं को कोई चोट या नुकसान न पहुंचा पाए।
बचपन दुबारा नहीं आता, बच्चे की मासूमियत का आनंद उठाएं बार-बार टोक कर उसे चिड़चिड़ा न बनाएं। उसके साथ बच्चे बनकर खेलें। इससे आपकी थकान भी दूर होगी ओर बच्चे से संबंध भी प्रगाढ़ होंगे, उसमें आत्मविश्वास भी भरेगा कि मेरे मम्मी पापा मेरे साथ हैं।
बच्चे को खेल खेल में सिखाएं और स्वयं भी सीखें
हर समय बच्चे को सिखाने की आदत में बदलाव लाएं। कुछ माता-पिता बच्चे को उसकी उर्म्र से ज्यादा सिखाने का प्रयास करते हैं जिससे बच्चा उम्र से बड़ा हो जाता है और चिड़चिड़ा भी क्योंकि वह अपना बचपना जल्दी खो देता है। बच्चे को प्रारंभ में खेल खेल में सिखाएं ऐसे बैठना है, अपनी चीजें-खिलौने स्थान पर रखने हैं।
कलर की पहचान, गिनती करना, चीजों के नाम खेल खेल में सिखाएं। अगर बच्चा कोई कविता स्कूल से सीख कर आने के बाद बोलता है तो उससे कविता बोलना सीखें। इससे उसे दोहराने पर आत्मविश्वास बढ़ेगा और महसूस होगा कि स्कूल की बातें वह आपसे शेयर करना सीखेगा। जिदगी के हर पल को खुद भी जीना सीखें और उसे भी सिखाएं।
इसके अतिरिक्त रखें ध्यान:-
अपने घर का माहौल प्यार भरा, सहयोग भरा बनाएं। घर परिवार की उलझनों को प्यार से सुलझाएं। घर के बाकी सदस्यों की कमियों को बच्चों के सामने डिस्कस न करें।
अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से न करें।
बच्चों से दोस्ताना व्यवहार रखें। उनके संरक्षक तो बनें पर उन्हें स्पेस भी दें
बच्चों की स्कूली दिनचर्या के बारे में पूछें, अगर आप नौकरी करते हैं तो स्कूल से बाद के समय के बारे में भरी बात करें।
बच्चे के साथ शेयरिंग ओर केयरिंग वाली पॉलिसी रखें ताकि वह सुरक्षित महसूस कर सके और दोस्तों या छोटे बहन भाइयों का ध्यान रख सकें, उनसे खिलौने और खाने पीने की वस्तुएं मिल बांट सकें।