Saturday, May 10, 2025
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इंसानी जान की कीमत बताते हादसे

Samvad


03गुजरात के मोरबी में माच्छू नदी पर बने एक प्राचीन व ऐतिहासिक झूला पुल के गत 30 अक्टूबर की शाम अचानक टूट जाने से पेश आए दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में एक बार फिर लगभग 145 मासूम देशवासियों की जान ले ली। मोरबी रियासत के शाही दिनों की याद दिलाने वाला यह पुल एक प्राचीन कलात्मक और तकनीकी चमत्कार के रूप में भी देखा जाता था। बहरहाल, यह ऐतिहासिक पुल भी देश के विभिन्न राज्यों में समय-समय पर होने वाले अनेक हादसों की ही तरह टूट गया। और हर बार की तरह इस बार भी देश की शासन व्यवस्था द्वारा वही पुराने घिसे पिटे राग अलापे गए। किसी को दु:ख हुआ, कोई रोने का नाटक करने लगा, किसी ने मुआवजा घोषित किया, किसी ने मरने वालों पर दु:ख कम तो बचाव कार्यों में दिखाई गई तत्परता की तारीफ अधिक की। इस हादसे के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने व विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे पर राजनीति करने का दौर भी पूर्ववत चला। इस हादसे के लिए कथित तौर पर जनता जिम्मेदार ठहरायी गई व इसका रखरखाव करने वाली किसी नाममात्र कंपनी के कुछ लोगों को गिरफ़्तार कर डबल इंजन की सरकारों ने भी अपनी तत्परता का परिचय देने की कोशिश की। काफी समय से क्षतिग्रस्त व बंद पड़े इस पुल को गुजरात में होने जा रहे चुनावों के मद्देनजर जहां चंद दिनों पहले ही इसे पुन: जनता के लिए जल्दबाजी में शुरू कराने का सरकार पर आरोप लगाया जा रहा है और इसी जल्दबाजी को हादसे का मुख्य कारण भी बताया जा रहा है। राज्य सरकार ने राज्य में एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा कर मृतक, पीड़ित व प्रभावित लोगों के प्रति अपनी हमदर्दी का इजहार करने की कोशिश की।

जितने लोगों ने सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर मोरबी में माच्छू नदी पर बने इस झूला पुल के ध्वस्त होने संबंधित वीडिओज देखीं, उससे शायद कुछ ही कम लोगों ने इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कोलकाता में 2016 में बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान दिया गया उनका वह चुनावी भाषण सुना जिसमें उन्होंने इसी तरह 31 मार्च 2016 को कोलकाता में विवेकानंद रोड फ़्लाई ओवर गिर जाने के बाद ममता बनर्जी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था-‘यह भगवान की ओर से एक संकेत है कि किस तरह की सरकार चलाई गई।’ चूंकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उस समय इस दुर्घटना को, जिसमें 27 लोग अपनी जानें गंवा बैठे थे और विपक्षी भाजपा इसे चुनावी मुद्दा बनाकर ममता सरकार पर हमलावर थी, इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ बताने जैसा गैर जिम्मेदाराना बयान दिया था, इसीलिये प्रधानमंत्री ने इस तर्क के जवाब में इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ नहीं बल्कि ‘एक्ट ऑफ फ्रॉड’ बताया था। प्रधानमंत्री ने उस फ़्लाई ओवर हादसे पर जबरदस्त राजनीति करते हुए और भी बहुत कुछ कहा था।

सवाल यह है कि चाहे वह मोरबी की ताजातरीन झूला भंजन की घटना हो या कोलकाता की 31 मार्च 2016 की विवेकानंद रोड फ्लाईओवर दुर्घटना। यदि और पीछे चलें तो चाहे वह 13 जून 1997 को दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा हाल में लगी वह आग जिसमें 59 लोग झुलसकर या दम घुटने से मरे या देश में प्राय: जहरीली शराब पीकर मरने वाले लोग। ओवर लोड स्टीमर अथवा नाव में बैठने के बाद देश की अनेक नदियों में दुर्घटनावश डूबकर मरने वाले लोग हों या अगस्त 2017 में गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में सरकारी लापरवाही के चलते मरने वाले 30 से अधिक बच्चे, यूपी व बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने वाली और भी अनेक घटनाएं।

सड़क पर आवारा घूमते पशुओं के हमले से या उनसे टकराकर मरने या घायल होने वाले लोग हों या जहरीला व प्रदूषित जल पीने से मरने व बीमार पड़ने वाले या फिर कोरोना काल में आॅक्सीजन की कमी से मरने वाले वह हजारों लोग, जिनकी मौत से सरकार अपना पल्ला भी झाड़ चुकी है। शहरी बाढ़-बारिश व नहरों व तटबंधों के टूटने से होने वाली जान-माल की क्षति हो गरीबी, भुखमरी व कर्ज के चलते मरने या आत्महत्या करने वाले या कुपोषण का शिकार हमारे देश के नौनिहाल। इन जैसी और भी तमाम वास्तविकताओं से जूझते हमारे देश में एक बात तो सामान्य है कि इनमें आम तौर पर बेगुनाह व साधारण इंसान को ही जान व माल का नुकसान उठाना पड़ता है।

दूसरी बात यह भी सामान्य है कि ऐसी घटनाओं के बाद पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं। लीपपोती की जाती है, शासन प्रशासन का प्रत्येक संबंधित विभाग या अधिकारी अथवा नेता सभी स्वयं को बचाने व दूसरे को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश में लग जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि लीपापोती के इस खेल में कुछ दिन बीतते ही लोग ऐसे हादसों को भूलने लग जाते हैं। घटना का कारण क्या था,उसके जिम्मदारों को क्या दंड मिला यह बातें काल के गर्भ में समा जाती हैं।

देश आगे बढ़ निकलता है और चतुर चालाक व शातिर राजनीति उससे जुड़ी भ्रष्ट, लापरवाह, गैर जवाबदेह शासन व्यवस्था पुन: नए हादसों का ताना बाना बुनने में लग जाती है। झूठ, मक्कारी, आरोप-प्रत्यारोप, स्वार्थपूर्ण राजनीति से सराबोर इस व्यवस्था में चाहे कोई भी राज्य हो या किसी भी राजनैतिक दल की सरकार, देश में घटने वाली ऐसी दुर्घटनाएं देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को यह बताने के लिए काफी हैं कि विश्व गुरु बनने के ‘आउटर सिग्नल’ पर खड़ा और दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की दौड़ में शामिल हमारे देश और भारतीय व्यवस्था में इंसानी जान की कीमत क्या है। इंसानी जान कभी इतनी सस्ती नहीं थी।


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