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अमर तत्व

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अमर तत्व

Amritvani


महर्षि उद्दालक के पुत्र श्वेतकेतु ने बारह वर्षों तक गुरुकुल में रह कर वेद शास्त्रों का अध्ययन किया। खूब ज्ञान अर्जित किया। जब वह घर लौटा तो उसे यह मिथ्या अभिमान हो गया कि वह अपने पिता से भी बड़ा ज्ञानी है और उसके पिता भी उसके ज्ञान की बराबरी नहीं कर सकते हैं। बेटा आया, उद्दालक ने पूछा कि तुम क्या-क्या सीख कर आए हो? उसने कहा, सब सीख कर आया हूं। कुछ छोड़ा नहीं, यही तो मूढ़ता का वक्तव्य है। उसने गिनती करा दी, कितने शास्त्र सीख कर आया हूं। सब वेद कंठस्थ कर लिए हैं।

महर्षि उद्दालक समझ गए कि पुत्र को अभिमान हो गया है। उद्दालक ने सोचा कि पुत्र का अभिमान नष्ट करके उसे सद्बुद्धि देनी चाहिए। यह सोच कर उन्होंने अपने पुत्र से कहा: बेटे, मैं यह जान गया हूं कि तुम बहुत बड़े विद्वान बन गए हो। लेकिन फिर भी तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं। मुझे बताओ कि वह कौन-सी वस्तु है, जिसका ज्ञान प्राप्त करने से सब वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। श्वेतकेतु ने बहुत सोचा, लेकिन उस प्रश्न का उत्तर न दे सका।

जिस ज्ञान और विद्वता का उसे अभिमान था,  क्षणभर में ही उसका वह अभिमान नष्ट हो गया। पिता के चरणों में गिरते हुए उसने कहा, मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता, कृपया आप बता दीजिए। तब उद्दालक ऋषि ने कहा, जिस तरह मिट्टी को जान लेने से मिट्टी से बनी सभी वस्तुओं और सोने को जान लेने से सोने से बनी सभी वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है, उसी तरह आत्मा को जान लेने से जीवन के सभी पहलुओं का ज्ञान हो जाता है। और आत्मा को तभी जाना जा सकता है, जब आपको अहंकार छू भी न सका हो। आत्म तत्व के ज्ञान हेतु अंहकार के स्थान पर विनम्रता का होना जरूरी है। आत्म तत्व का ज्ञान व्यक्ति को निर्मल, निश्चल और विनम्र बना देता है।
                                                                                              प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा


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