आनंद कुमार अनंत |
आज के समय में व्यापारिक संस्थानों में अधिकांश व्यक्ति श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना कर दिया करते हैं, जो वास्तु सम्मत नहीं होता। अगर कोई मूर्ति लगानी ही हो तो मूर्ति के बजाय तस्वीरों का ही उपयोग करना अच्छा होता है। व्यापारिक संस्थानों, आफिस आदि में अगर कोई मूर्ति लगानी ही हो तो इस प्रकार लगानी चाहिए कि आॅफिस अथवा व्यवसायिक संस्थान में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की नजर तस्वीरों पर आसानी से पड़े। घर में पूजा स्थल इस प्रकार बनाया जाया चाहिए कि पूजा करने वाला व्यक्ति पूर्व या पश्चिम दिशा में बैठकर पूजा कर सके। एक देवी-देवता के विविध रूपों वाली तस्वीर भी एक स्थान पर रहना वास्तुशास्त्रा के अनुसार उचित नहीं माना जाता है।
हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के प्रति असीम श्रद्धा एवं विश्वास है। इस धर्म से अलग अन्य धर्मों के अनुयायी भी अपने-अपने देवी-देवताओं पर असीम श्रद्धा एवं विश्वास रखते हैं तथा उनसे संबंधित तस्वीरों एवं मूर्तियों को अपने-अपने घरों में सजा कर रखते हैं। आंतरिक सज्जा के साथ ही विभिन्न प्रकार के संकटों को दूर करने के लिए भी घरों में जहां-तहां देवी-देवताओं की तस्वीरों को तथा स्वास्तिक आदि को बना दिया जाता है। दीवारों पर अनेक प्रकार के श्लोकों या स्लोगनों को लिख दिया जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित दिशाओं में देवी-देवताओं की तस्वीरों, मूर्तियों, श्लोकों, स्लोगनों आदि को रखने या लिखने पर ही घर-व्यापार में सुख, शांति एवं समृद्धि की वृद्धि होती है। अगर घर की आंतरिक साज-सज्जा को वास्तुशास्त्रा के नियमों के अनुसार नहीं किया जाता तो बुरे प्रभावों में वृद्धि होती है।
गृहस्वामी या कार्यालय के मालिक के कक्ष में गणेश जी की प्रतिमा (तस्वीर) ठीक सामने लगायी जानी चाहिए। पीठ के पीछे तस्वीर को लगाना दोषकारक होता है। अनेक व्यक्ति अपने घर के दरवाजे के ऊपर स्वास्तिक का निशान बना देते हैं जबकि यह गलत है। दरवाजे के दोनों ओर स्वास्तिक का निशान बनाकर उसके ऊपर वाले भाग पर कलश को बनाना लाभदायक एवं मंगलकारी होता है। ग्रन्थों के अनुसार जोड़ा स्वास्तिक का चिन्ह ही बनाया जाना चाहिए। भवन अथवा कक्ष के मध्य भाग में सूर्य अथवा विष्णु का निवास माना जाता है। यह स्थान हृदय के भाग की तरह होता है। इस स्थान पर कभी भी भारी वस्तु अर्थात भारी फर्नीचर, अलमारी आदि नहीं रखनी चाहिए।
आज के समय में व्यापारिक संस्थानों में अधिकांश व्यक्ति श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना कर दिया करते हैं, जो वास्तु सम्मत नहीं होता। अगर कोई मूर्ति लगानी ही हो तो मूर्ति के बजाय तस्वीरों का ही उपयोग करना अच्छा होता है। व्यापारिक संस्थानों, आफिस आदि में अगर कोई मूर्ति लगानी ही हो तो इस प्रकार लगानी चाहिए कि आॅफिस अथवा व्यवसायिक संस्थान में प्रवेश करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की नजर तस्वीरों पर आसानी से पड़े। घर में पूजा स्थल इस प्रकार बनाया जाया चाहिए कि पूजा करने वाला व्यक्ति पूर्व या पश्चिम दिशा में बैठकर पूजा कर सके। एक देवी-देवता के विविध रूपों वाली तस्वीर भी एक स्थान पर रहना वास्तुशास्त्र के अनुसार उचित नहीं माना जाता है।
पूर्व दिशा में इन्द्रदेव का आधिपत्य होता है। यह सर्वाधिक प्रभावशाली दिशा है। कार्यालयों या अन्य स्थानों पर यदि पूर्व दिशा की ओर मुख करके काम किया जाय तो दिमाग में शांति एवं अच्छे विचारों का सृजन होता है। दक्षिण दिशा के स्वामी यम हैं। इन्हें न्यायकर्ता माना जाता है। कार्यालय में इस दिशा की ओर मुख करके कार्य करने वाला व्यक्ति व्यवसाय में वृद्धि करता है। सक्रिय चिंतन एवं बिजनेस डीलिंग की सफलता इस दिशा का मुख्य कार्य होता है।
दक्षिण-पश्चिम कोण के अधिपति नैत्रादत हैं। यह विनाश की देवी हैं। इसके प्रभाव से व्यक्ति निन्दाग्रस्त, निर्धन एवं जुआरी होता है। अतएव इस कोण में बैठकर कोई ठोस निर्णय नहीं लेना चाहिए। इस दिशा में बैठकर काम करने वाला व्यक्ति दिमागी तौर पर उत्तेजित रहता है तथा क्रूर निर्णय लेने में भी हिचकता नहीं है। पश्चिम दिशा पर वरुण का आधिपत्य होता है। इस दिशा की ओर मुख करके पढ़ना-लिखना तथा पूजा-पाठ करना शुभ माना जाता है। उत्तर दिशा में कुबेर का स्थान है। इस दिशा में मूल्यवान् वस्तुओं को रखना शुभकारक होता है। इस दिशा का संबंध धन से होता है।
पूजा स्थल पर श्री यंत्रा, त्रिकोण यंत्रा, सर्वव्याधि शान्ति यंत्रा, दुगार्यंत्रा, गणेशयंत्रा आदि को रखकर उनकी पूजा-उपासना आदि करना शुभ कारक माना जाता है। यंत्रों का निर्माण एवं उनकी प्राण-प्रतिष्ठा शुभ लग्नों में होनी चाहिए।
उत्तर-पश्चिम कोण में वायु का निवास है। इस दिशा में मुख करके कार्य करने से बेचैनी का अनुभव होता है। फैक्ट्रियों में वायव्य कोण में मशीन नहीं लगानी चाहिए। इससे आशानुरूप सफलता नहीं मिल पाती तथा मशीन अक्सर खराब होती रहती है।
देवी-देवताओं के चित्रा शौचालय की दीवार से लगी दीवारों पर नहीं टांगना चाहिए। जहां तक संभव हो, देवी-देवताओं के चित्रों को आसन बिछा कर ही उन पर रखा जाना चाहिए। इस पद्धति से हमेशा उनकी कृपा-दृष्टि प्राप्त होती रहती है।