अमृतवाणी
- अधूरा कार्य
एक मकड़ी थी। उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया। सोचा की इस जाले में खूब कीड़ें, मक्खियां फंसेंगी और उन्हें आहार बनाकर मजे से रहूंगी। उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और वहां जाला बुनना शुरू किया। जाला बनाते समय मकड़ी की नजर एक बिल्ली पर पड़ी, जो उसे देखकर हंस रही थी। वह बिल्ली से बोली, ‘हंस क्यों रही हो?’ बिल्ली बोली, ‘ इसलिए कि यहां मक्खियां नहीं हैं, तो कौन आएगा तेरे जाले में।’ मकड़ी ने अधूरा जाला छोड़कर एक खिड़की में जाला बुनना शुरू किया। तभी एक चिड़िया आई और मकड़ी से बोली, ‘तू भी कितनी बेवकूफ है। यहां तो तेज हवा आती है। जाले के साथ तू भी उड़ जाएगी।’ अब उसने एक आलमारी के खुले दरवाजे पर जाला बुनना शुरू किया। कुछ जाला बुना ही था कि एक काक्रोच बोला, ‘यह तो बेकार आलमारी है। कुछ दिनों बाद इसे बेच दिया जाएगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी। यह सुनकर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर समझा। जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया। चींटी बोली, ‘तू बार- बार अपना काम शुरू करती है और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़ देती है। जो ऐसा करते हैं, वह कुछ नहीं कर सकते।’ ऐसा कहते हुए चींटी अपने रास्ते चली गई और मकड़ी पछताती हुई निढाल होकर गिर पड़ी। दोस्तों, हमारी जिंदगी में भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है। हम कोई काम शुरू करते हैं। शुरू-शुरू में तो हम उस काम के लिए बड़े उत्साहित रहते हैं, पर लोगों नुक्ताचीनी की वजह से उत्साह कम होने लगता है। नतीजा यह होता है कि हम अपना काम बीच में ही छोड़ देते हैं।
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