- आर्थिक मंदी से नहीं उभर रहा दरी उद्योग
जनवाणी संवाददाता |
मोदीपुरम: कहने को तो दरी का उद्योग काफी विस्तृत है, लेकिन इस उद्योेग पर धीरे-धीरे ग्रहण लगता जा रहा है। क्योंकि कंबल उद्योग समाप्त होने के बाद से लोगों ने दरी के उद्योग को इसलिए विकसित किया था कि वह अपने परिवार का पालन पोषण कर सकेंगे, लेकिन कंबल के बाद अब यह उद्योग भी धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है।
क्योकि इस उद्योग को आर्थिक उत्थान देने के लिए सरकार द्वारा कोई पहल नहीं की गई और इस उद्योग से जुड़े 500 परिवारों का कै सा उत्थान होगा। यह एक बड़ा सवाल है। इन परिवारों के बच्चे जहां स्कूली शिक्षा से महरूम हो जाएंगे। वहीं, अपना पालन पोषण भी ठीक तरह से नहीं कर पाएंगे। यह परिवार भुखमरी की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं।
अंग्रेजी हुकूमत ने लावड़ को 110 वर्ष पूर्व टाउन घोषित किया था। लावड़ में कं बल के उद्योग ने एक नई दिशा और नई पहचान दी। लावड़ के विकास में कंबल उद्योग का एक महत्वपूर्ण स्थान रहा, लेकिन आर्थिक उपेक्षाओं का शिकार होने के कारण इस उद्योग को ग्रहण लग गया और इस उद्योग से जुड़े 2700 परिवार घर से बेघर हो गए थे, लेकिन धीरे-धीरे इस उद्योग से जुड़े लोगों ने अपनी मेहनत के बल पर फिर से लावड़ कस्बे को पहचान देने के लिए बीड़ा उठाया। मोमीन अंसार बिरादरी के लोगों ने दरी उद्योग को विकसित करने की ठानी।
धीरे-धीरे इस उद्योग का विकसित किया गया और इस उद्योग से भी कस्बे को पहचान मिलने लगी, लेकिन फिर से इस उद्योग पर संकट के बादल मंडराते हुए नजर आने लगे हैं। क्योंकि इस उद्योग से जुड़े 500 परिवार फिर से रोजगार से बेरोजगार होते हुए नजर आ रहे हैं। उसका कारण है सरकार की उपेक्षा का दंश। इस उद्योग को अगर सरकार द्वारा सब्सिडी दे दी जाए तो उद्योग को पंख लग जाए, लेकिन अब यह उद्योग धीरे-धीरे सिमटा हुआ नजर आ रहा है। इस उद्योग से जुड़े कारोबारी अनीस मोमीन अंसार का कहना है कि यह उद्योग धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहा था,
लेकिन अब यह उद्योग भी समाप्ति की ओर इसलिए जा रहा है, क्योंकि इस उद्योग को चलाने में कच्चा माल पानीपत से आता है। वह माल काफी महंगा हो गया है। जबकि यहां से तैयार होकर जाने वाली दरी और पायदान का दाम पहला वाला ही है। सरकार अगर सब्सिडी शुरू कर दे तो शायद उद्योग बच जाए। साजिद मोमीन अंसार का कहना है कि सरकार द्वारा कोई भी उद्योग को मदद के लिए आगे कदम नहीं बढ़ाए गए हैं। इसलिए यह उद्योग धीरे-धीरे समाप्त होता जा रहा है।
पानीपत से आता है कच्चा माल
दरी और पायदान का कच्चा माल पानीपत से आता है। इसके बाद लावड़ में कारीगरों द्वारा इसे तैयार किया जाता है। इस उद्योग से 500 परिवार जुड़े है। यह माल दिल्ली, लुधियाना, राजस्थान के अलावा कई अन्य राज्यों में सप्लाई होता है। पायदान का दाम 25 रुपये से लेकर 150 रुपये तक का है। जबकि दरी का दाम 400 रुपये से लेकर 1200 रुपये तक का है।
हाथ से बुनते हैं दरी और पायदान
इस उद्योग से जुड़े लोेग आज भी हाथ से दरी और पायदान बुनते हैं। घर से बाहर न जाए इन परिवारों की महिलाएं घर पर ही रहकर इस कार्य को करती है। हालांकि इस उद्योग में जुड़े लोग अपनी जीविका अच्छी तरह चला रहे हैं, लेकिन अब उन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।