Thursday, January 9, 2025
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Maha Kumbh 2025: आखिर 12 साल में ही क्यों लगता है महाकुंभ, क्या है इसके पीछे का रहस्य,यहां पढ़ें..

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट में आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। आपने महाकुंभ के बारे में तो सुना ही होगा। ये मेला भारत के चार पवित्र स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है। 2025 में यह महाकुम्भ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगने जा रहा है। जिसकी शुरूआत 13 जनवरी से हो रही है। साथ ही इसका समापन 26 फरवरी 2025 को होगा। महाकुंभ को लेकर लोगों में बहुत आस्था है।

स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है

कहते हैं कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों लगता है, आखिर इस मेले की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानते हैं कुंभ मेले से जुड़ी पौराणिक कथा। तो चलिए शुरू करते हैं।

मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी

कुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। इस मंथन से अनेक अद्भुत वस्तुएं निकलीं, जिनमें से एक था अमृत कलश। अमृत पीने से देवता अमर हो जाते हैं।

देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिड़ा

अमृत कलश को लेकर देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध में अमृत कलश कई बार आसमान में उड़ गया और उसकी कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं – हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक।

मान्यता है कि जिन स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, वो स्थान पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान करने से मोक्ष मिलता है। इसीलिए इन चारों स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान इन नदियों में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कुंभ मेले का महत्व?

कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक समागम ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भी है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता का प्रतीक है।

12 साल में ही क्यों लगता है महाकुंभ?

दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है। इसलिए कुंभ मेला 12 साल के अंतराल पर मनाया जाता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम है। यहां लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि इससे उनके पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।

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