- प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में महत्वपूर्ण सीट मानी जाती है छपरौली
- चौधरी चरण सिंह छपरौली से जीत कर प्रदेश में मंत्री भी बने और बाद में मुख्यमंत्री भी बने
जनवाणी संवाददाता |
बड़ौत: प्रदेश के राजनैतिक अखाड़े में छपरौली विधान सभा सीट वीवीआइपी सीट मानी जाती थी। हालांकि इस सीट को लेकर लोगों में धारणा बनी हुई है कि यहां से जीतने वाला प्रत्याशी चौधरी चरण सिंह व उनकी पार्टी या परिवार से आशीर्वाद प्राप्त करने वाला ही विधायक बन सकता है। अभी तक तो ऐसा ही है। लेकिन छपरौली सीट से बनने वाला विधायक चौधरी चरण सिंह के बाद से एक भी प्रदेश में मंत्री नहीं बन पाया। यहां से चौधरी चरण सिंह मंत्री भी बने थे और बाद में वह प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे। इस बार लोग इस तरह की चर्चा कर रहे हैं।
चौधरी अजित सिंह के समय रालोद सपा के साथ हिस्सेदारी में रहा। लेकिन जिस छपरौली की चर्चाएं देश-विदेश में चौधरी चरण सिंह व उनके परिवार का अजेय दुर्ग जाना जाता है। यहां से किसी का प्रदेश की केबिनेट में न होना आश्चर्य की बात है। हालांकि इस बार फिर छपरौली के सहेन्द्र सिंह रालोद से जीते थे। लेकिन भाजपा का चोला ओढ़कर भी वह मंत्री नहीं बन पाए।
छपरौली विधानसभा सीट एकमात्र ऐसी सीट रही है कि यहां से सबसे पहले विजय हासिल करने वाले चौधरी चरण सिंह प्रदेश में मंत्री रहे और 1967 व 1970 में दो बार मुख्यमंत्री बने। बाद में केन्द्र में व 1979 में प्रधानमंत्री बने थे। किसान मसीहा कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी शासन में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया था। करीब 35 साल की उम्र में 1937 में उन्होंने छपरौली विधानसभा से चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने।
देश की आजादी के बाद भी वह यहां से लड़ते रहे और 1977 तक लगातार 30 साल इस सीट से विधायक रहे। चौधरी चरण सिंह पहले कांग्रेस में रहे। फिर उन्होंने अपनी पार्टी भारतीय क्रान्ति दल बनाई थी। जनता दल के साथ भी चरण सिंह रहे। छपरौली के मतदाताओं को कभी इससे फर्क नहीं पड़ा कि चरण सिंह किस पार्टी में हैं। जिसको भी उनकी ओर से समर्थन या टिकट दिया गया, उसे छपरौली की जनता ने विधायक बनाकर भेज दिया। लेकिन यहां के लिए एक त्रासदी भी रही है। वहयह कि छपरौली से जीता विधायक कई बार सत्ता के साथ भी रहा।
लेकिन किसी भी छपरौली के विधायक को प्रदेश के मंत्रीमंडल में जगह नहीं मिल पाई। छपरौली से रालोद के टिकट पर जीते सहेन्द्र सिंह सत्ता के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। लेकिनि उन्हें भी मंत्रीमंडल से मायूस ही रखा गया। इस बार छपरौली से मुख्य मुकाबला भाजपा व रालोद का है। भाजपा प्रत्याशी वर्तमान विधायक सहेन्द्र सिंह रमाला व छपरौली से ही विधायक रहे डा. अजय कुमार के बीच का है। दोनों का चुनाव कांटे का है। इस चुनावी दंगल में किसका पलड़ा भारी रहेगा।
मतदाता इसके लिए दस फरवरी आने का इंतजार कर रहे हैं।
वर्ष विधायक
1977 नरेन्द्र सिंह
1980 नरेन्द्र सिंह
1985 सरोज वर्मा
1989 नरेन्द्र सिंह
1991 चौधरी अजित सिंह
1993 नरेन्द्र सिंह
1996 गजेन्द्र सिंह मुन्ना
2002 डा. अजय कुमार
2007 डा. अजय तोमर
2012 वीरपाल राठी
2017 सहेन्द्र सिंह
नोट:: छपरौली से चौधरी चरण सिंह 1977 तक विधायक रहे।