सावन माह के तीन सप्ताह बीत चले हैं। सावन माह रिमझिम बारिश के लिए प्रसिद्ध है। इस माह में जहां सर्वत्र कादो-कीचड़ का साम्राज्य स्थापित होना चाहिए, वहां पर्याप्त वर्षा के अभाव में खेतों में धूल उड़ रही है। मौसम की बेरुखी से किसान हताश हैं। आसमान में बादल दिखाई तो दे रहे हैं, लेकिन किसानों पर मेहरबान नहीं हो रहे हैं। तेज धूप को देखकर किसानों का दिल दहल रहा है। देश के कई क्षेत्रों में पर्याप्त बारिश नहीं होने से खरीफ की खेती पर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई है। देश के पूर्वी क्षेत्रों में तो मानसून की बेरुखी से सूखे की स्थिति और भी विकट होती जा रही है। पर्याप्त पानी नहीं बरसने के कारण खरीफ की प्रमुख फसल धान की रोपनी बुरी तरह प्रभावित हुई है। दलहनी फसलों में उड़द, अरहर की बोआई भी बहुत पीछे है। टांड व ऊंची दोन में लगने वाली मडुआ, गोंदली, बाजरा, मक्का आदि फसलों की बाई भी प्रभावित हुई है। गत सप्ताह से पूर्वी राज्यों में हो रही मानसूनी वर्षा से खरीफ खेती में सुधार की उम्मीदें जरूर बढ़ी है, लेकिन धान की रोपाई में हो रहे विलंब से चावल व अन्य कई फसलों की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ने की आशंका बढ़ गई है।चालू मानसून के मौसम में पूर्वी क्षेत्र के राज्यों पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, बिहार और उत्तर प्रदेश में बरसात सामान्य से 45-74 प्रतिशत तक कम हुई है।
पहली बरसात के बाद ही इन राज्यों में मोटे अनाज, दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती कर दी गई। और धान के बिचड़े तैयार करने की नर्सरी भी डाल दी गई थी। लेकिन समूचे पूर्वी क्षेत्र में बारिश नहीं होने के कारण जहां खेतों में खड़ी फसलें सूख गईं, वहीं धान की रोपाई बाधित हो गई। इस पूरे क्षेत्र में सिंचाई के साधनों की कमी है और खरीफ की अधिकांश कृषि मानसून की बारिश पर आश्रित है। इसलिए पूरे क्षेत्र में नहरों और नलकूपों के माध्यम से बहुत सीमित रकबा में धान की रोपाई हो सकी है। इधर कुछ दिनों से बरसात शुरू हुई है, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि आने वाले पखवाड़े में धान की रोपाई का कार्य पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन धान की रोपाई में होने वाली देरी से उत्पादकता के प्रभावित होने का खतरा बना हुआ है।
उल्लेखनीय है कि धान की अच्छी उत्पादकता के लिए के बिचड़ों की रोपाई का आदर्श समय 25 दिन का होता है। और 25 से 30 दिनों के अंदर धान के बिचड़े की रोपाई हो जानी चाहिए, लेकिन डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी बिचड़े की रोपाई शुरू नहीं हो पाई है। झारखंड के गुमला जिले के घाघरा प्रखण्ड में पदस्थापित प्रखण्ड कृषि पदाधिकारी विनोदानंद पाठक ने बताया कि नर्सरी में ही बिचड़े के 30 दिन की हो जाने पर पांच प्रतिशत और इससे अधिक विलंब होने की दशा में (120 दिनों वाली) सामान्य प्रजाति के धान की उत्पादकता 50 प्रतिशत तक प्रभावित हो सकती है। जबकि 155-160 दिनों में तैयार होने वाली प्रजाति पर इसका मामूली असर पड़ता है। तैयार नर्सरी की रोपाई में 35 दिन की देरी पर अधिकतम 10 से 15 प्रतिशत का नुकसान हो सकता है।
कृषि मंत्रालय के जारी आंकड़ों के अनुसार 22 जुलाई 2022 तक कुल 172.70 लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई हुई है। जबकि पिछले साल की इसी अवधि तक कुल 206.61 लाख हेक्टेयर धान की रोपाई हो गई थी। इस वर्ष धान की रोपाई कुल 33.91 लाख हेक्टेयर कम हो पाई है। उत्तर प्रदेश में 11.38 लाख हेक्टेयर, बिहार में 6.26 लाख हेक्टेयर, पश्चिम बंगाल में 4.31 लाख हेक्टेयर, ओडिशा में 3.70 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश में 3.62 लाख हेक्टेयर, झारखंड में 2.54 लाख हेक्टेयर, तेलंगाना में 2.52 लाख हेक्टेयर, छत्तीसगढ़ में 2.37 लाख हेक्टेयर कम में धान की रोपाई हुई है। दलहनी फसलों में प्रमुख अरहर की खेती का रकबा पिछले साल के 38.98 लाख हेक्टेयर के मुकाबले इस बार केवल 31.09 लाख हेक्टेयर हो पाया है।
राज्यों से मिल रही सूचना की अनुसार समय पर जो किसान बिचड़ा डाल चुके हैं, उसमें मात्र दस प्रतिशत ही रोपनी शुरू करा पाए हैं। ऐसे में 25 से 30 दिनों के अंदर रोपाई होने वाली धान के बिचड़े की डेढ़ माह बीत जाने के बाद भी रोपाई शुरू नहीं हो पाने की स्थिति देश के किसानों के लिए चिंताजनक है। वैसे भी तेज धूप के कारण बिचड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाया। कई किसानों के बिचड़े धूप से जल गए। ऐसी स्थिति में सिंचाई हेतु निजी संसाधन संपन्न किसान भी धूप को देखकर धान की रोपाई कराने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक बारिश नहीं होगी तब तक रोपनी के बाद भी धान के पौधों में उतना विकास नहीं हो पाएगा, जितना होना चाहिए। मौसम के तल्ख मिजाज से खरीफ फसल की खेती प्रभावित होती रही है। प्रकृति जब साथ नहीं देती तो सिचाई के संसाधन भी जवाब दे देते हैं। नहर भी किसानों का साथ छोड़ देते हैं। नहर में पानी कम जाती है। कहीं तो नाम मात्र का पानी भी नहीं रहता है। और पानी की कमी के कारण नहरों में पर्याप्त मात्र में पानी नहीं छोड़ा जा सकता है।
बहरहाल, कृषि कार्य के साथ ही देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए अहम मानी जाने वाली मानसूनी बारिश के बेरुखी के कारण खरीफ फसलों की बुआई में हो रही विलंब से देश के कृषक अभी से ही चिंतित, हतोत्साहित नजर आ रहे हैं। खरीफ काल में मानसून के बिगड़े मिजाज से खरीफ की बुआई अर्थात बोआई के देर से होने की आशंका ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं और वे सिर पर हाथ धर खेतों में बैठ सोचने को विवश हैं। सूखे जैसे हालात के चलते देश के कई भागों में खरीफ फसलों की बुआई थम सी गई है। बारिश का चक्र शुरू हो तो कुछ उम्मीद बंधे।