गांव में एक विशाल बरगद का वृक्ष वर्षों से खड़ा गांववालों और राहगीरों को छाया प्रदान कर रहा था। थके-हारे राहगरी उस वृक्ष की छाया में बैठ कर आराम करते और अपनी थकान उतार कर गंतव्य की ओर चल देते थे। गांव के बच्चे भरी दोपहरी में उस वृक्ष की छाया में खेलते थे। गांव के सभी लोग उसकी छाया में बैठते थे, गांव की महिलाएं त्यौहारों पर उस वृक्ष की पूजा किया करती थीं।
बच्चे विशाल वृक्ष की छाया में खूब खेलते कूदते। ऐसे ही समय बीतता गया। अपनी आयु के अनुसार धीरे-धीरे वृक्ष सूखने लगा। उसकी शाखाएं टूटने लगीं और उसकी जड़ें भी ढीली होने लगीं। गांव वालों को लगा कि कहीं किसी दिन कोई अनहोनी न हो जाए। गांव वाले सोचने लगे कि अब इसकी उम्र पूरी हो चुकी है। गांववालों ने निर्णय लिया कि अब इस पेड़ को काट दिया जाना चाहिए और इसकी लकड़ियों से गृहविहीन लोगों के लिए झोपड़ियों का निर्माण किया जाए।
गांववालों को वृक्ष को कटने के लिए आता देख, बरगद के पास खड़ा एक युवा वृक्ष बोला-दादा! आपको इन लोगों की प्रवृत्ति पर जरा भी क्रोध नहीं आता, ये कैसे स्वार्थी लोग हैं, जब इन्हें आपकी आवश्यकता थी तब ये आपकी पूजा किया करते थे, लेकिन आज आपको क्षीण होते देखकर काटने चले हैं। मनुष्य कितना स्वार्थी हो गया है। बूढ़े बरगद ने जवाब दिया, नहीं बेटे! मैं तो यह सोचकर बहुत प्रसन्न हूं कि मरने के बाद भी मैं आज किसी के काम आ सकूंगा।
संकलन : राजेंद्र कुमार शर्मा