जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: कृषि कानूनों के खिलाफ संयुक्त किसान मोर्चा का 378 दिनों से जारी आंदोलन फिलहाल खत्म हो गया। केंद्र की इस बड़ी सफलता का श्रेण गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति को जाता है। पीएम मोदी ने नवंबर के पहले हफ्ते में शाह को आंदोलन खत्म कराने की जिम्मेदारी सौंपी थी और वह लगातार पर्दे के पीछे से अपनी रणनीति पर काम कर रहे थे। शाह जाट महासभा के महासचिव युद्धवीर सिंह के जरिये लगातार संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में रहे।
कृषि कानूनों की वापसी के बाद सरकार विवाद का सुखांत चाहती थी। रणनीति यह थी कि आंदोलन न सिर्फ खत्म हो, बल्कि नाराज किसान संतुष्ट हो कर वापस जाएं। इसी कड़ी में मुआवजा देने, मुकदमे वापस लेने, बिजली कानून में समझौता करने और एमएसपी पर कानूनी गारंटी के मामले को कमेटी के समक्ष भेजने का अलग-अलग प्रस्ताव दिया। प्रस्ताव के प्रावधानों पर किसान संगठनों की आपत्तियों को भी शाह ने व्यक्तिगत स्तर पर हल किया।
एक माह की बातचीत के निकला हल
चूंकि आमने सामने की एक दर्जन बार बातचीत से कोई हल नहीं निकला, इसलिए शाह ने पर्दे के पीछे से बातचीत की रणनीति बनाई। शाह ने मोर्चा के सभी अहम नेताओं से एक साथ बातचीत के बजाय युद्धवीर को चुना। करीब एक महीने तक चली बातचीत के बाद प्रस्तावों पर सहमति बनी।
लखीमपुर मामले में फंसा था पेच
शुरुआत में मोर्चा लखीमपुर खीरी की घटना मामले में गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के इस्तीफे पर अड़े हुए थे। शनिवार को जब मोर्चा ने इस्तीफे पर न अड़ने पर सहमति दी, तभी आंदोलन के खत्म होने का संदेश मिल गया।