Thursday, April 25, 2024
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योगी‘राज’-2 में एक और मिथक की आहूति

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  • मेरठ की जनता ने ट्रिपल इंजन की सरकार को चुना, आया महापौर हरिकांत-2 का दौर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: योगी‘राज’-2 में दूसरे तमाम मिथक टूटने के क्रम अब कारणों और समीकरणों पर जितनी चाहे चर्चा और समीक्षा होती रहें, लेकिन आज मेरठ नगर निगम में महापौर को लेकर चला आ रहा 28 साल पुराना मिथक आखिर टूट गया, और वो भी एक बहुत बड़े अंतराल से। मोदी-योगी के राज में मेरठ की जनता ने इस बार प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी का ही मेयर चुनकर विकास की गति के दावों को परखने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

मेरठ महानगर में हुए मतदान के रुझान इस बात के संकेत दे रहे थे कि महापौर पद पर हरिकांत अहलूवालिया की जीत हो सकती है। इसके पीछे जो अनुमान लगाया गया, उसमें खासकर सपा प्रत्याशी के चयन में मेरठ के सपा विधायकों और पूर्व मंत्रियों तक को दरकिनार करके सरधना विधायक अतुल प्रधान की धर्मपत्नी सीमा प्रधान को पार्टी ने महापौर पद के चुनाव में उतार दिया।

इसका रिएक्शन मेरठ में देखने को मिला। भले ही सपा के दिग्गज नेता सार्वजनिक रूप से यह दलील दें, कि उनकी ओर से सीमा प्रधान को समर्थन दिया गया, लेकिन आम लोगों के बीच गए संदेश की परिणीति यह हुई कि असदउद्दीन ओवैसी के मेरठ में आए बगैर एआईएमआईएम प्रत्याशी मोहम्मद अनस के पक्ष में मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण होता चला गया।

वहीं बसपा ने भी महापौर पर सुनीता वर्मा की जीत के पिछले प्रदर्शन की लाज को दांव पर लगाते हुए एक ऐसे प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा, जिनको लेकर पहले ही दिन से सवाल उठने लगे थे। इन तमाम समीकरणों को लेकर चर्चा और समीक्षा का दौर अब शुरू हो गया है। यह समीक्षा और चर्चा का सिलसिला जल्दी थमने वाला भी नहीं है।

आने वाले हर चुनाव में सपा और बसपा जैसे प्रमुख दलों को भाजपा से मुकाबला करने के लिए अपने निकाय चुनाव में लिए गए निर्णयों की गहनता से समीक्षा करके रणनीति में बदलाव करना होगा। अथवा ऐसे ही परिणाम आने वाले चुनावों में भी भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।

इन बातों से इतर आज सबसे बड़ी चर्चा का मुद्दा यही है कि नगर निगम बनने के बाद 1995 से जनता ने सीधे महापौर चुनना शुरू किया है। तब से लेकर 28 साल की अवधि इस मिथक को मजबूत करने में गुजरी है कि प्रदेश में जिस पार्टी का सीएम रहा, उसका मेयर नहीं चुना गया।

शनिवार को हुई मतगणना ने योगी राज में टूटते जा रहे मिथकों की श्रेणी में इस मिथक की भी आहूति दे दी है। और भाजपा नेतृत्व का एक बार फिर हरिकांत अहलूवालिया पर दांव खेलना उनकी भारी मतों से जीत के साथ पार्टी की साख में वृद्धि करने का काम कर गया है।

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