एक दिन राजा अकबर सुबह-सुबह नगर में घुमने निकले। उन्हें सबसे पहले एक व्यापारी मिला। व्यापारी ने उन्हें प्रणाम किया। आगे जाते ही अकबर को ठोकर लगी और उनके पैर में मोच आ गई। राजा ने वैद्य को बुलाया। वैद्य ने एक महीने आराम करने की सलाह दी। राजा की पत्नी ने मजाक में कहा की सुबह किसका चेहरा देखा था जो इतना खराब दिन गया। राजा को व्यापारी का चेहरा याद आया। राजा ने दूसरे दिन व्यापारी को राज्यसभा में बुलाया। राजा ने कहा की इस व्यापारी का चेहरा मनहूस है। सुबह मैं नगर में घूमने निकला था तो यह मुझे मिला था और फिर मेरी यह हालत हुई थी। इसलिए में इस व्यापारी को मृत्यु दंड देता हूं। व्यापारी ने राजा से माफी भी मांगी, किंतु राजा ने उनकी एक भी नही सुनी और कारावास में डाल दिया। जब बीरबल को इस घटना का पता चला तो बीरबल ने सोचा की महाराज अकबर यह सही नही कर रहे हैं। बीरबल ने कारावास जाकर व्यापारी से सारी घटना सुनी। बीरबल पूरी रात जागते रहे और इस घटना के बारे में सोचते रहे। दूसरे दिन सुबह जब व्यापारी को सूली पर चढ़ाया जा रहा था, तब बीरबल ने महाराज से कहा की आप अन्याय कर रहे हैं। अकबर ने कहा की ये मनहूस है और इसको सूली पर चढ़ा के नगर का भला ही कर रहे हैं। बीरबल ने कहा की इससे ज्यादा मनहूस आप हैं। अकबर ने कहा मैं कैसे हो सकता हूं? बीरबल ने कहा की इसका चेहरा देखकर आप के पैर में मोच आ गई, किंतु आप का चेहरा देखकर इसको तो मौत आ रही है। अकबर को होश आया कि ये मैं क्या करने जा रहा था। बीरबल ने कहा की मनहूस तो अपने बुरे कर्म होते हैं। जिसकी वजह से हमें दुख होता हैं। अगर हम अच्छे कर्म करें तो मनहूस जैसा कोई होगा ही नहीं।