Friday, July 5, 2024
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बघेरन

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Ravivani 8


Taravati Sanini Neerajचल निकल यहां से, अब तेरा यहां कुछ नहीं है और ले जा तेरे दोनों बच्चे हमारे माथे कुछ मत छोड़ कर जा। राधेश्याम की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी और चिरौंजी के ससुराल वालों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया। पति के सहारे का साया उठते ही चिरौंजी बेकस हो गई। उसकी सारी हंसी खुशी उसके पति के साथ जल गई अब वह किससे अपना दुख सुख बांटेगी। चिरौंजी ने तो आज राधेश्याम से भोर होते ही जाने के लिए मना किया था कुछ मन विचलित सा हो रहा था। सपने भी अंगारे से आ रहे थे। पर राधेश्याम नहीं रुका तुम औरतों की भी कोई बात कहकर वह चला गया।
शाम को खबर मिलते ही चिरौंजी के तो प्राण पखेरू उड़ गए उसके पैरों तले न जमीं बची ना आसमां। उसकी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। राधेश्याम की मृत्यु की खबर के सैलाब में चिरौंजी का सब कुछ बह गया।

राधेश्याम के जाने के एक दिन बाद ही चिरौंजी को घर से बाहर निकाल दिया गया। वह रोई, घिघाई, पैरों में पड़ी गिड़गिड़ाई उन दुष्टों को बच्चों की दुहाई दी पर वह न पिघले जैसे वह मुर्दों से कुछ कह रही थी। इन खून के रिश्तों ने दे धक्का लताड़ दिया जो राधेश्याम के सामने जान देने की बात करते थे।
चिरौंजी बोली_, मैं कहां जाऊंगी मेरे इन मासूम बच्चों को लेकर। इस घर के अलावा मेरा अब कौनसा घर है।

हमें नहीं पता तू कहां जाएगी, पर यहां नहीं रहेगी, यह तय है और कभी अपना ये कलमुहा मुंह वापस लेकर इस घर की चौखट पर मत आना।

पहाड़ भी पिघल पानी बन जाए, चिरौंजी उनके सामने इतना रोई पर वह लोग रत्तीभर भी न गले पसीजे। आखिर चिरौंजी अपने दोनों बच्चों को लेकर पीहर आ गई। पीहर में भी आखिर उसका कितने दिन बसेरा रहता। मां की मृत्यु के पश्चात उसके पिता खुद असहाय हो गए। पीहर में उसके लिए भरे कुएं रीते हो गए। रोज-रोज के शूल से समाने वाले बोलों ने उसका जीना दूभर कर दिया। हम क्या करें, तेरा आदमी मर गया तो हमारे ऊपर एहसान है क्या? तेरे बुरे कर्म, तू भुगत यहां हमारे ऊपर बोझ बनकर क्यों पड़ी है। चिरौंजी पीहर में रोज मजदूरी करके अपना खर्चा चला रही थी और घर का सारा काम भी करती। उसके बदले उसके सिर पर छत थी जिसके नीचे वह अपने दोनों बच्चों को दुलार से सुला देती थी। लेकिन चिरौंजी को अब वह छत भी मजबूरी में छोड़नी पड़ी उसकी वजह से उसके पिता को भी चार कड़वे बोल सुनने पड़ते थे।
वह अपने पीहर से वापस ससुराल के दरवाजे आ गई।

और आए भी क्यों न भला, वह भी तो इस घर की बहु थी। इस घर की एक एक ईट पर उसका भी उतना ही अधिकार है जितना की औरों का है।

चिरौंजी को चौखट पर देखते ही चिरौंजी की सास की भृकुटियां तन गई। और वह भन्नाते हुए बोली, तू यहां कैसे आई? तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी चौखट पर पैर रखने की? मेरे बेटे को खा गई, उससे तुझे तसल्ली ना हुई? चल यहां से चली जा। हमें और इस घर को तेरी कोई जरूरत नहीं है।

चिरौंजी सास की ऐसी बात सुनते हुए भी फिर वही मन्नतें करने लगी, लेकिन उसकी सास वैसे ही अनाचारी शब्दों से उसे और उसके बच्चों को दुधकारती रही। अधम खरी-खोटी कहती रही। और न जाने क्या क्या पर उन सब अक्खड़ बातों को चिरौंजी अनसुना कर अपने बच्चों की खातिर मुझे घर में एक कोना दे दो, मुझे भीतर आने दो, मैं कहां जाऊं, वह कहते हुए चौखट के भीतर आ गई। उसके भीतर आते ही उसकी सास ने उसे बाहर निकालने के लिए धक्का दिया।

चिरौंजी नीचे गिर गई बच्चे अपनी मां को देख डरे कबूतर से एक कोने में बिलख रहे थे। और जैसे ही चिरौंजी की सास किबाड़ बंद करने लगी वैसे ही चिरौंजी एक घायल, अभागी, हारी बौखलाई सी बघेरन बन खड़ी हो गई न जाने कहां से उसके निष्प्राण शरीर में दम आ गई उसने एक हाथ से की किवाड़ों को बंद होने से थाम दिया।

और फिर बघेरन सी एक ही लंबी छलांग लगाकर सास के पास आकर खड़ी हो गई और बोली, ये मेरा भी घर है और मैं अब इसी घर में रहूंगी नहीं तो कोट कचहरी भी जाऊंगी और अपना हक लेकर रहूंगी। मेरे पति मर गए तो क्या इस घर से मेरे अधिकार कोई नहीं छीन सकता। गुस्से में चिरौंजी की आखें तेज दहकते अंगारों सी हो गई , जिनसे आंसुओं के रूप में गर्म खोलता लावा गिर रहा था। उसकी सास उसका ये भयानक चेहरा मोहरा देख कर डर गई और दूसरा कोट कचहरी का डर वह दो क्या चार कदम एक मैदान में हारे हुए खिलंदर के मानिंद पीछे हटी। और बोली मेरे ही घर में आकर मुझे ही धमकी दे रही है। चिरौंजी बोली मैं धमकी नहीं दे रही मैं अपना हक मांग रही हूं आखिर मैं भी आपके बेटे की बहु थी।

होगी तू बहू तब जब मेरा बेटा जिंदा था वह मर गया मेरे लिए तू भी उसी दिन मर गई ।

लेकिन सच यह है मैं अभी मरी नहीं हूं जिंदा हूं और इस घर की बहू हूं। मुझे यहां रहने से कोई नहीं रोक सकता और वह सास के सामने ही एक निर्भीक निडर बघेरन चाल में भीतर घर में चल दी। उसके दोनों बच्चे हिम्मती बघेरन के पीछे पीछे चुपचाप शावक की भांति धीरी चाल में उसके साथ कमरे में चले गए। सास बस उन्हें चिढ़ी सी ताकती रही। चिरौंजी अपने कमरे में इतने सालों बाद घुसते ही थकी सी चारों तरफ देखने लगी उसकी आंखों से अंबार छलकने लगा वह राधेश्याम की बुस्सट को छाती से लगा बुक्का फाड़ रोने लगी और बोली ये पिया मिलन की प्रीत निराली तू सोया मैं जागी।

और फिर वह पल में ही मन ही मन अपने पति राधेश्याम से गुस्सा होकर बोली, देख अपने इन घरवालों को जिनकी बड़ाई के तुम हरे हरे लंबे राग गाते थे। वह बहुत अच्छे हैं। वह मन ही मन नाक चढ़ाकर फिर बोली देख लिया तुम्हारे इन अच्छे भले घरवालों को मेरे और मेरे बच्चों की क्या हालत कर दी है।

अचानक बाहर से आवाज आई। चिरौंजी की जेठानी बोली, अरे अभागन तू यहां आ तो गई है, पर मैं देखती हूं तू यहां कैसे टिकती है। हमें कोर्ट कचहरी का डर दिखाती है। चिरौंजी ने कोर्ट कचहरी का डर दिखाकर वह अपने कमरे में तो आ गई थी, पर उसे न खाने से हाथ लगाने दिया जाता न पीने से। उसने पीहर में मजदूरी करके जो पैसा कमाया, उसने उससे थोड़े दिन तो बच्चों का भरण पोषण कर दिया, लेकिन पैसे खत्म होने पर उसके बच्चे भूख से बिलखने लगे।

उससे अपने बच्चों की ऐसी हालत देखी नही गई और उसने अब यहां भी मजदूरी करना शुरू कर दिया। जो उसके ससुराल की मान मर्यादा के खिलाफ था। वह जब मजदूरी कर अपने बच्चों का लालन पालन करने लगी तो घर में बात बनाना शुरू हो गया।

ओहो बाबू जी क्या कहूं इस चिरौंजी ने तो हमारी भरे बाजार सरे चौराहे नाक कटवा दी। मुझसे लोग कह रहे थे देख छोटे भाई की पत्नी कैसे मजदूरी करते घूम रही है। हमारे घर की तो कोई इज्जत ही ना छोड़ी इसने सब माटी पलीत कर दिया। शाम को इस बात को लेकर सभी घरवालों ने एक सभा बैठा दी। और उसमें मुजरिम के रूप में चिरौंजी को बुलाया और कहा चिरौंजी तुम मजदूरी करते फिरती हो इससे हमारे घर की इज्जत डूब रही है लोग न जाने क्या क्या बातें बना रहे हैं। अब हमारी बहुत बेइज्जती हो चुकी तुम घर में ही रहो मजदूरी पर मत जाओ या फिर यहां से कहीं और चली जाओ।

चिरौंजी सब जानती थी यह लोग सिर्फ उसे इस घर से निकालना चाहते हैं । इसलिए वह बिना कुछ बोले ही इस सभा से गमन कर गई। वह अच्छे से जानती थी ये लोग क्या चाहते हैं घर में हम देंगे नहीं और जब कमाएगी नहीं तो खाएगी क्या? हारकर यहां से चली जाएगी। पर चिरौंजी ने उनकी बात नहीं मानी और मजदूरी पर जाती रही।

आखिर उन लोगों का यह सिक्का चला नहीं।

क्रुद्ध हुए बैठे चिरौंजी के ससुराल वालों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? वह सोच रहे थे, कुछ ज्यादा कहेंगे तो यह कोर्ट कचहरी चली जाएगी। अब यह पहले वाली चिरौंजी नहीं रही जो आसानी से चली जाएगी। इसे प्यार से काटना होगा।

उन्होंने मिलकर रात को फिर सभा जोड़ी। और वही बात कही तुम जो मजदूरी कर रही हो उससे हमें लोगों से बहुत सुनना पड़ रहा है। ऐसा करो तुम यहां से कहीं दूर चली जाओ, हम तुम्हें महीने का तीन हजार पहुंचा देंगे।

चिरौंजी इस घर से एक बार जाने का मतलब भी जानती थी इसलिए उसे जाना तो था ही नहीं। वह बोली, आप मुझे मेरे सिर्फ एक सवाल का जबाव दे दो। मैं यहां से अभी चली जाऊंगी, ये सुनते ही सबके मन में जीत का डंका बजा।
बोलो क्या सवाल है, जेठ ने तुनक कर कहा।

जो लोग भरे बाजार सरे चौराहे मेरे मजदूरी करने की बात कहकर आपकी बेज्जती कर रहे हैं, क्या आपने उनसे एक बार भी ये बोला है कि हम उसे खाने पीने से लेकर कोई भी चीज को हाथ नहीं लगाने दे रहे हैं, अब बताओ जब बेचारी को हम खाने पीने को नहीं देंगें तो वो मजदूरी नहीं करेगी तो क्या करेगी। कैसे अपने दिन काटेगी। आखिर पापी पेट का सवाल है।

ये बात सुनते ही सबके मन में बज रहा जीत का डंका टूट गया और सन्नाटे ने उस सभा को घेर लिया। और रही मेरे मजदूरी करने की बात जिससे तुम्हारी मान मयार्दा भंग होती है, मुझे मेरे बच्चों को खाने पीने पहनने ओढ़ने और उनको शिक्षा दे दो मैं एक दिन मजदूरी करने नहीं जाऊंगी। नहीं तो मजबूरन मुझे मजदूरी करनी पड़ेगी। और उस दिन आपकी इज्जत की धज्जियां नहीं उड़ी जिस दिन मेरे पति के जाते ही तुम लोगों ने हमें लताड़कर यहां से भगा दिया फेंक दिया। कहते कहते उस दिन की बात याद कर चिरौंजी की आंखें उसी बघेरन सी हो गई , जिनका तेज उस सभा में बैठे लोगों को भस्म कर देने को तैयार हो गया। एक भयंकर तूफान के बाद बिखरा टूटा वो वक्त उसकी आंखो में तैर गया।

जब मैं अपने बच्चों को लेकर तुम्हारे पैरों में गिड़गिड़ा रही थी, तब नहीं हुई इस घर बेइज्जती? जब कलम नहीं हुआ इस घर की शान का सिर? यह सुनते ही सब लोग सूने सागर से हो गए जिनमें हिलोरे लेने की भी हिम्मत ना हुई।

चिरौंजी अपने उबले आंसू पोछते हुए बोली थी या तो तुम दो मेरे बच्चों को अच्छी शिक्षा उन्हें खाना पीना नहीं तो मुझे मेरे बच्चों के भविष्य की खातिर मजदूरी करनी पड़ेगी और तुम सब यह सोच रहे हो कि मैं यह घर छोड़ दूं तो मैं ऐसा नहीं करूंगी। जितना घर तुम्हारा है, उतना ही घर मेरा है। कान खोलकर सुनलो, मैं यही रहूंगी यही। फिर वह उसी बघेरन साहसी चाल में सभा से चली गई। सभा में बैठे सभी लोग आज इस बघेरन के हाथों खुद का शिकार होते देखते रह गए।

तारावती सैनी ‘नीरज’


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