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कट्टरता की स्याह में रंगी आतंकवाद की चादर, इस नई सियासत का पाकिस्तान बना है फादर
नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक अभिनंदन और स्वागत है। धार्मिक कट्टरता को बांग्लादेश में बढ़ावा दिया गया। और इसी कट्टरता की स्याह में चुपके चुपके आतंकवाद की चादर रंगी गई। बांग्लादेश में इस प्रकार की नई सियासत का पाकिस्तान फादर है। मकसद दुनियाभर में कोई मुल्क अमन चैन से न रहने पाए। खासकर वह मुल्म जो पाकिस्तान परस्त नहीं है।
हालांकि पाकिस्तान अपना बदला पूरा करने के लिए शेख मुजीबुर्ररहमान के पुस्तों से कीमत वसूल रहा है। वाकई यह सच है कि दुनिया में लोकतंत्र का असली दुश्मन अगर कोई है तो वह है पाकिस्तान और उसकी सरपरस्ती में पल रहे आतंकवादी।
आपको बता दें कि बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी करते हुए आतंकवाद विरोधी अधिनियम 2009 की धारा 18/1 के तहत कट्टरपंथी इस्लामी और पाकिस्तान के प्यादे जमात-ए-इस्लामी (JeI) और उसके स्टूडेंट विंग ‘छात्र शिबिर’ को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था।
बांग्लादेश सरकार का ये फैसला इस्लामी कट्टरपंथी पाकिस्तान के लिए बहुत बड़ा झटका जैसा रहा। क्योंकि इस संगठन के जरिए बांग्लादेश को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा था और जिसका मंसूदा देश में अराजक माहौल बनाकर शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेंकना था।
रूस के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र, रोसिस्काया गजेटा में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताहिक, जमात-ए-इस्लामी को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है और प्रतिबंधित किया गया है।
बांग्लादेश के अधिकारियों ने 1 अगस्त 2024 को जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया और बांग्लादेशी गृह मंत्रालय ने इसकी पुष्टि भी कर दी है। जमात-ए-इस्लामी, छात्र शिविर और अन्य संबंधित संगठनों पर प्रतिबंध आतंकवाद निरोधक अधिनियम की धारा 18(1) के तहत एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से लगाया गया है। प्रतिबंध से पहले, कानून मंत्रालय ने अपनी कानूनी राय दी थी और फाइल गृह मंत्रालय को भेजी थी।
इसके बाद, कानून मंत्री अनीसुल हक ने संवाददाताओं से कहा, कि ये समूह अब अपने मौजूदा नामों से राजनीति में शामिल नहीं हो सकेंगे। सरकार के मंत्री जमात और छात्र शिविर पर बांग्लादेश में पिछड़े दिनों आरक्षण खत्म करने की मांग को लेकर भड़के आंदोलन में हिंसा भड़काने के लिए इस संगठन पर आरोप लगा रहे हैं।
29 जुलाई को अवामी लीग के नेतृत्व में 14-पार्टी गठबंधन के शीर्ष नेताओं ने अवामी लीग प्रमुख प्रधानमंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता में एक बैठक के दौरान जमात और शिबिर पर प्रतिबंध लगाने पर सहमति जताई थी। इससे पहले 2013 में चुनाव आयोग ने अदालत के फैसले के बाद जमात का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया था।
जिसपर जमात-ए-इस्लामी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और वहां से भी निराशा मिलने के बहाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय प्रभाग ने 19 नवंबर 2023 को जमात-ए-इस्लामी के रजिस्ट्रेशन रद्द करने के फैसले को बरकरार रखते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया।
पाकिस्तान का प्यादा है जमात-ए-इस्लामी
आपको बता दें, कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व वाली पहली सरकार ने देश की स्वतंत्रता का विरोध करने और पाकिस्तानी कब्जे वाली सेनाओं के साथ सहयोग करने में भूमिका को लेकर जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया था।
बाद में, बंगबंधु की हत्या के बाद, सैन्य तानाशाह जनरल जियाउर रहमान ने इस संगठन से प्रतिबंध हटा दिया, जिससे जमात-ए-इस्लामी को देश में अपनी गतिविधियां फिर से शुरू करने में मदद मिली। जमात-ए-इस्लामी की स्थापना मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता सैय्यद अबुल अला मौदूदी ने “इस्लामी विजय” और “दुनिया को इस्लाम के झंडे के नीचे लाने” के कुख्यात एजेंडे के साथ की थी।
कुछ साल पहले, बांग्लादेश में अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने 1971 में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जमात-ए-इस्लामी की भूमिका को पाकिस्तानी कब्जे वाली सेनाओं के एक सक्रिय समूह के रूप में वर्णित किया था। जमात-ए-इस्लामी ने पाकिस्तानी सेना के सहायक बलों, जैसे कि रजाकार, अल-बद्र, अल-शम्स और शांति समिति के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने बंगाली स्वतंत्रता सेनानियों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
जमात-ए-इस्लामी और उसके आतंकियों ने सैकड़ों हज़ारों हिंदू पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का नरसंहार किया गया, जबकि बड़ी संख्या में हिंदू लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। यहां यह जिक्र करना आवश्यक है, कि जमात-ए-इस्लामी पर भारत में भी प्रतिबंधित लगा हुआ है और 2003 से इसे रूसी ने भी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया था।
जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध की घोषणा करते हुए भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक ट्वीट में कहा था, कि “आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन करते हुए सरकार ने जमात-ए-इस्लामी, जम्मू कश्मीर पर प्रतिबंध को पांच साल के लिए बढ़ा दिया है।”
1950 के दशक में, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान ने एक उग्रवादी छात्र विंग, इस्लामी जनियत-ए-तलबा की शुरुआत की थी, जिसने कई शहरी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण हासिल कर लिया, और ये अकसर हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा करता था।
जमात-ए-इस्लामी गाजा स्थित हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (PJI) सहित विभिन्न आतंकवादी संगठनों के साथ गहरे संबंध रखता है। यह मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ भी गहरे संबंध रखता है। यह खतरनाक इस्लामी आतंकवादी इकाई 1960 के दशक से यूरोप में मौजूद है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में भी इसकी मौजूदगी है।
बांग्लादेश में आखिर ऐसा क्या हुआ कि शांतिपूर्ण रूप से चल रहे छात्रों के प्रदर्शन ने उग्र रूप धारण कर दिया? यह आंदोलन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ताधारी आवामी लीग के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के हेलीकॉप्टर में सवार होकर देश छोड़ दिया है। उधर, प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को राजधानी ढाका में रैली करने की योजना तैयार की है। इससे पहले देश में हिंसा भड़कने से कई लोगों की मौत हो गई। इस बीच बांग्लादेश में सेना ने कर्फ्यू लगाया है और अधिकारियों ने अशांति को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी है।
प्रदर्शनकारियों-पुलिस के बीच झड़प में 300 लोगों की मौत
इससे पहले रविवार को प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़प में करीब 300 लोग मारे गए। आपको बता दें कि बांग्लादेश में हाल ही में पुलिस और छात्र प्रदर्शनकारियों के बीच हिसंक झड़पें हुईं हैं। दरअसल, प्रदर्शनकारी छात्र विवादित आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। इसके तहत बांग्लादेश के लिए वर्ष 1971 में आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता संग्रामियों के परिवारों के लिए 30 प्रतिशत सरकारी नौकरियां आरक्षित की गईं हैं।
ऐसे भड़की दंगों की आग
प्रदर्शनकारी छात्रों का तर्क है कि मौजूदा आरक्षण के नियमों का फायदा शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग से जुड़े लोगों को मिल रहा है। इसे लेकर प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना सरकार के प्रति असंतोष व्यक्त किया है। सरकार ने बांग्लादेश में स्कूलों और कॉलेजों को बंद करने का फैसला लिया। इसके बाद भी सरकार देश में फैली अशांति को नियंत्रित करने में विफल साबित हुई। उधर, आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी प्रदर्शनकारी नाखुश नजर आ रहे हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि स्वतंत्रता संग्रामियों परिजनों को सरकारी नौकरियों में दिया जाने वाला आरक्षण पूरी तरह से खत्म होना चाहिए। बांग्लादेश की सेना के पूर्व प्रमुख इकबाल करीम ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ उठाए गए कदमों को लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की है। इस बीच मौजूदा सेना प्रमुख ने प्रदर्शनकारियों का समर्थन किया है और इस वजह से देश में दंगों की आग और भी अधिक भड़क गई।
क्या हिंसा भड़कने के पीछे पाकिस्तान की आईएसआई का हाथ है?
अब सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश में हिंसा के पीछे पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी, इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) का हाथ है? बताया गया है कि बांग्लादेश में ‘छात्र शिविर’ नाम के छात्र संगठन ने हिंसा को भड़काने का काम किया है। यह छात्र संगठन बांग्लादेश में प्रतिबंधित संगठन जमात-ए-इस्लामी की शाखा है। बताया जाता है कि जमात-ए-इस्लामी को पाकिस्तान की आईएसआई का समर्थन प्राप्त है। उधर, बांग्लादेश सरकार इस बात का पता कर रही है कि क्या मौजूदा स्थिति में आईएसआई ने भी हस्तक्षेप किया है।
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