जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: बाटला हाउस एनकाउंटर को इतने वर्षों बाद भी देशवासी भूल नहीं पाए हैं। एनकाउंटर में शहीद हुए दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को 12 वर्षों बाद गैलेंटरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। पूरे पुलिस महकमे में इस खबर से खुशी की लहर दौड़ पड़ी है।
शुक्रवार को गृह मंत्रालय ने गैलेंटरी अवॉर्ड का एलान किया है, जिसमें देशभर के 215 पुलिसकर्मियों को गैलेंटरी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
जांबाजों की इसी सूची में मंत्रालय ने बाटला हाउस एनकाउंटर के दौरान दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में कार्यरत इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा को भी स्थान दिया है।
बाटला हाउस एनकाउंटर का जिक्र होते ही ही जांबाज इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा की याद आनी स्वभाविक है। उनकी शहादत को नमन किए बिना यह घटना पूरी नहीं हो सकती। एनकाउंटर वाले दिन बाटला हाउस की खबर ने जैसे सभी को हैरान कर के रख दिया था।
लोग घटना को लेकर जितने हैरान थे, उतनी जी ज्यादा मोहन चंद शर्मा के बारे में जानने के लिए भी उत्सुक थे। ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसकी जुबां पर मोहन चंद शर्मा का नाम नहीं होगा। आईए जानते हैं क्या हुआ था उस दिन और कौन थे मोहन चंद शर्मा।
इस एनकाउंटर की कहानी शुरू होती है 13 सितंबर 2008 को दिल्ली के करोल बाग, कनाट प्लेस, इंडिया गेट और ग्रेटर कैलाश में हुए सीरियल बम ब्लास्ट से।
उस ब्लास्ट में 26 लोग मारे गए थे, जबकि 133 घायल हो गए थे। दिल्ली पुलिस ने जांच में पाया था कि बम ब्लास्ट को आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने अंजाम दिया था।
इस ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल को सूचना मिली थी कि इंडियन मुजाहिद्दीन के पांच आतंकी बाटला हाउस के एक फ्लैट में किराए पर मकान लेकर रहते हैं। इसके बाद पुलिस टीम अलर्ट हो गई।
19 सितंबर 2008 की सुबह आठ बजे के करीब इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा ने स्पेशल सेल के लोधी कॉलोनी स्थित ऑफिस में मौजूद एसआई राहुल कुमार सिंह को फोन कर बताया कि इंडियन मुजाहिद्दीन का एक आतंकी आतिफ एल-18 मकान में अपने साथियों के साथ रह रहा है।
उसे पकड़ने के लिए टीम लेकर वह बाटला हाउस पहुंच जाए। राहुल सिंह अपने साथियों एसआई रविंद्र त्यागी, एसआई राकेश मलिक, हवलदार बलवंत, सतेंद्र विनोद गौतम आदि पुलिसकर्मियों को लेकर निजी वाहन से रवाना हुए।
इस टीम के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का बेटा उस समय डेंगू से पीड़ित था। उन्होंने बेटे को अस्पताल में छोड़ा और फौरन बाटला हाउस के लिए रवाना हो गए। अब्बासी चौक के पास वह टीम से मिले। सभी लोग सिविल कपड़ों में थे।
बताया जाता है कि उस वक्त पुलिस टीम को यह पूरी तरह नहीं पता था कि बाटला हाउस में बिल्डिंग नंबर एल-18 में फ्लैट नंबर 108 में सीरियल बम ब्लास्ट के जिम्मेदार आतंकवादी रह रहे थे. उनका कहना है कि यह टीम उस फ्लैट में मौजूद लोगों को पकड़ कर पूछताछ के लिए ले जाने आई थी।
लेकिन इस दौरान जैसे ही पुलिस टीम उस मकान तक पहुंची, आतंकियों के साथ मुठभेड़ में उन्हें तीन गोलियां लग गईं। बाद में इलाज के दौरान उन्होंने अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
वह 1989 में दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर के तौर पर शामिल हुए थे और अपनी मेहनत के बल पर महज छह साल में ही आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाकर 1995 में इंस्पेक्टर बन गए थे।
उन्हें 2009 में भी अशोक चक्र से भी सम्मानित किया गया था। यह मोहन चंद शर्मा का सातवां वीरता पदक है। उन्हें सात बार राष्ट्रपति के पदक से सम्मानित किया जा चुका है।
हालांकि इस बार गैलेंटरी अवार्ड के विजेता की बहादुरी के कार्यों का उल्लेख करने वाला उद्धरण अब तक जारी नहीं किया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि मोहन चंद शर्मा को बाटला हाउस मुठभेड़ के लिए या फिर पिछले किसी अन्य वीरता के कार्य के लिए यह पुरस्कार दिया गया है।