सीतेश कुमार द्विवेदी |
सर्दी का मौसम हृदय रोगियों के लिए सर्वाधिक सावधान रहने का समय होता है। भले ही यह सबके लिए सेहत बनाने का मौसम है किंतु हृदय रोगियों के लिए सावधानी बरतने का समय है। इस मौसम की प्रखरता अर्थात् तापमान में गिरावट या ठंड में वृद्धि ऐसे रोगियों की शारीरिक स्थिति एवं कार्यप्रणाली को प्रभावित कर जटिलता ला देती है। ठंड बढ़ने के साथ रत्न धमनियां सिकुड़ जाती हैं। पसीना निकलने की स्वाभाविक गति थम जाती है। इससे हृदय को अत्यधिक काम करना पड़ता है। रत्नचाप बढ़ जाता है, शरीर में पानी का जमाव एवं रत्न में कोलेस्ट्रॉल रूपी अवरोध बढ़ जाता है। उपरक्त सभी बदलाव कभी भी कहीं भी हृदयाघात जैसी स्थिति का कारण बनता है। इस मौसम में हृदयाघात सुबह या शाम, पूनम या अमावस, अर्द्धरात्रि या बाथरूम में कभी भी हो सकता है किंतु मामूली बचाव व सावधानी से ऐसी परिस्थिति को रोका जा सकता है।
प्रथम बात तो किसी भी स्थिति में ठंडे पानी का उपयोग न करें। न इससे नहाएं या हाथ पैर, मुंह धोएं और न ही इसका सेवन करें। यह रक्तचाप को तेजी से बढ़ाता है। इससे हृदय को अधिक काम करना पड़ता है। यह रक्त प्रवाह को बढ़ाता है और रोमछिद्र सिकुड़ जाते हैं। ये सभी खतरे की ओर ले जाते हैं।
ठंड के मौसम में पर्याप्त गर्म कपड़े पहनने चाहिए। कोहरा, धुंध, धुएं वाले स्थान पर नहीं जाना चाहिए। हड़बड़ी में कोई काम नहीं करना चाहिए। बिस्तर से तेजी से बाहर नहीं निकलना चाहिए। बाथरूम में हाजत के समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए। सभी काम सामान्य गति से करने चाहिए।
- ऐसे रोगी भागदौड़ से बचें। हल्का-फुल्का व्यायाम अवश्य करें। मध्यमगति से पद यात्रा करें।
- गर्म या गुनगुने पानी का उपयोग करें।
- पर्याप्त कपड़े पहनें। स्वच्छ वायु वाले स्थान पर गहरी सांस लें।
- कम नमक एवं कम तेल घी वाला खाद्य पदार्थ खाएं। खाद्य पदार्थ पौष्टिक हों। साग-सब्जी, फल-फूल, सलाद अंकुरित अनाज को प्राथमिकता दें।
- अपने चिकित्सक द्वारा निर्धारित दवा के सेवन एवं सलाह हमेशा ध्यान में रखें। थोड़ी सावधानी से बड़ी जिंदगानी मिलती है।