एक बहुत ही संपन्न व्यक्ति कभी सत्संग में नहीं जाते थे। पत्नी ने कहा सत्संग में जाया करो, बहुत लाभ मिलता है। पत्नी के बहुत समझाने पर वह सत्संग में चले गए। संपन्न व्यक्ति को पहली बार सत्संग में आया देखकर लोगों ने उनका दिल से स्वागत किया। वह बैठ गए। सत्संग आरंभ हुआ नहीं था। कुछ देर में उन्हें नींद आ गई। अब ऐसे आदमी को उठाए कौन? सत्संग खत्म हुआ तो संगत अपने अपने घरों को चली गई। किसी सज्जन पुरुष ने इसव्यक्ति को भी जगाया। व्यक्ति ने आंख मलते हुए पूछा, सत्संग हो गया? सज्जन व्यक्ति ने उत्तर दिया, सत्संग समाप्त हो चुका है। घर पहुंचे तो पत्नी ने पूछा, सत्संग में क्या सुना? व्यक्ति उत्तर दिया सत्संग में तीन ही शब्द सुने, आइए… बैठिए और जाइए।
पत्नी बोली ये तीन शब्द ही तो मंत्र है। रात्रि में संपन्न व्यक्ति सोने के लिए अपने कमरे में गया। पूरे सत्संग में सो कर आया था, नींद कहां से आए। उसे पत्नी की कही बात याद आई की आइए …बैठिए…जाइए सत्संग में बताए गए मंत्र है। वो लगा इन्ही शब्दों का जाप करने, आइए…बैठिए…जाइए इतने में एक चोर घर में घुसा। पर जैसे ही उसने सुना…कोई कह रहा है-आइए, वो घबरा गया कि कोई जाग गया है। चोर दबे पांव पीछे खिसकने लगा, दूसरा शब्द सुनाई दिया, बैठिए। चोर कुछ और सोच पता इतने में उसे सुना, जाइए। चोर समझ गया कि इसने मुझे पहचान लिया है। अब तो ये मुझे पकड़वा देगा। चोर दौड़ कर व्यक्ति के चरणों में आ गिरा। व्यक्ति ये सोच कर घबरा गया कि मंत्र इतनी जल्दी सिद्ध हो गया। कमरे की लाइट जलाई तो देखा चोर सामने खड़ा है। पत्नी को जगाया। पत्नी ने समझाया जब सत्संग के आवभगत के तीन शब्दों से इतना लाभ मिल सकता है तो पूरे सत्संग का मर्म समझ लिया जाए तो जीवन का ही कल्याण हो जाए।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा