पिछले दिनों बैंगलोर शहर का पानी में पूरी तरह स्नान करना यह दिखाता है कि भारत जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने में पूरी तरह सशक्त नहीं है। जलवायु परिवर्तन के परिणाम से मौसम की विश्वस्तरीय भविष्यवाणियां विफल होती दिखाई पड़ती हैं। कभी-कभी किसी क्षेत्र में कम अवधि में बहुत अधिक बारिश से बाढ़ आती है, तो कहीं सूखा पड़ जाता है। हम सभी जानते हैं कि जलवायु संकट का सबसे ज्यादा प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ता है, क्योंकि इनके पास उचित तकनीक नहीं होती, जिससे संकट से निपटा जा सके, जिसका हालिया गवाह पाकिस्तान भी रहा है। संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट कहती है कि जी-20 समूह के देश जो विश्व में ग्रीन हाउस गैस के 80 फीसद उत्सर्जन के लिए उत्तरदायी हैं। वे अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में बहुत पीछे हैं।
लिहाजा, भारत जब अगले साल 2023 में जी-20 समूह की अध्यक्षता करने जा रहा है तो निश्चित ही वह अन्य देशों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा, क्योंकि भारत वैश्विक उत्सर्जन का केवल 4 फीसद ही उत्सर्जन करता है। विश्व के दो सबसे बड़े प्रदूषक देश अमेरिका और चीन हैं। दोनों देश दुनिया का 40 फीसद कार्बन उत्सर्जन करते हैं। अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का उत्सर्जन बहुत कम है। जलवायु परिवर्तन के लिए गरीबी या जीवन-स्तर बहुत हद तक जिम्मेदार होता है। जीवन-स्तर को सुधारने का अर्थ है-स्वच्छता, स्वच्छ जल एवं ऊर्जा के स्रोत, खपत में कमी आदि। इन सबकी मदद से हम ग्लोबल वार्मिंग में कमी ला सकते हैं।
भारत ने स्वच्छ जल की व्यवस्था हेतु नल से जल योजना चलाई थी। अच्छी बात यह रही कि भारत में मध्यप्रदेश का बुरहानपुर जिला पहला जिला बना जहां नल से जल पहुंचाने का काम सौ प्रतिशत पूरा हुआ। इसी प्रकार कुछ केंद्र शासित प्रदेश भी है जहां यह काम सफलता से पूरा किया गया।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने अपना लक्ष्य निर्धारित कर रखा है कि वह साल 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता में 30 से 35 फीसदी की कटौती करेगी। यह कमी साल 2005 को आधार मानकर की जाएगी। सरकार ने यह भी फैसला किया है कि 2030 तक होने वाले कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा कार्बन रहित र्इंधन से होगा। भारत लगातार साफ-सुथरी ऊर्जा के लिए बड़ा कदम उठा रहा है।
विकासशील देशों ने जहां विश्व की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी निवास करती है। बड़े विकासशील देशों जैसे कि भारत, चीन, ब्राजील व दक्षिण कोरिया अभी भी प्रति व्यक्ति उत्सर्जन में विकसित देशों से कई गुना पीछे हैं। विश्व बैंक के अनुसार, जहां विकसित देशों में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 13 टन है, विकासशील देशों में यह 3 टन से भी कम है। अमेरिका में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन भारत की तुलना में 20 गुना अधिक है। विश्व में सिर्फ 15 प्रतिशत जनसंख्या के साथ अमीर देश कार्बन डाइआॅक्साइड के 47 प्रतिशत से अधिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
पिछले साल गुजरात के कच्छ में धारणीय विकास के लिए अनेक बड़े प्रयास किए गए। उल्लेखनीय है कि गुजरात के कच्छ जिले में हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा पार्क देश का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन पार्क है। बहरहाल इससे पहले नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में देश में अब तक की सबसे बड़ी समझी जाने वाली मध्य प्रदेश के रीवा जिले की सोलर परियोजना है, जिसमें 250-250 मेगावॉट की तीन सौर उत्पादन इकाइयां शामिल हैं। ये तीनों सौर इकाइयां धारणीय विकास के लक्ष्य की पूद्गत में व्यापक सहयोग कर रही हैं।
इस परियोजना से लगभग 15 लाख टन कार्बन डाइआॅक्साइड के बराबर कार्बन उत्सर्जन कम होने की उम्मीद है। यहां यह बताना जरूरी है कि भारत की स्थिति जलवायु मोर्चे पर अभी भी काफी अच्छी है। गौरतलब है कि भारतीय वैज्ञानिकों दुनिया का सबसे बड़ा सोलर ट्री भी बना चुके हैं। इसे पश्चिम बंगाल के दुगार्पुर की रेजिडेंसियल कॉम्पलेक्स में लगाया गया है। इस सोलर ट्री से 11.5 किलो वॉट की अधिकतम एनर्जी पैदा होगी।
मतलब सालाना स्तर पर एक सोलर ट्री से 12,000 से 14,000 के बीच स्वच्छ ऊर्जा जनरेट होगी। एक सोलर ट्री में अधिकतम 35 सोलर फोटोवोल्टिक पैनल लगाए गए हैं। इसमें से प्रत्येक 330 वॉट पावर की ऊर्जा जनरेट करता है। ऐसे हर पेड़ की मदद से करीब 10-12 टन कार्बनडाई आक्साइड के उत्सर्जन को रोका जा सकता है। इसकी मदद से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी लाई जा रही है जो जलवायु परिवर्तन से बचने में भी मददगार हो रही है। साथ ही इस वृक्ष से उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त ऊर्जा को ग्रिड में सुरक्षित भी रखने की व्यवस्था है।
दुनिया के सभी रहवासियों को बदलते जलवायु की इस चुनौती से लड़ना होगा। विशेष तौर पर विश्व के एक फीसद धनी वर्ग जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। विश्व के सबसे धनी 100 निकायों में से दो-तिहाई कार्पोरेशंस हैं, सरकारी नहीं हैं। इनके पास कार्बन को निष्क्रिय करने के साधन हैं और इन्हें ऐसा न करने पर दंड भी दिया जाना चाहिए। भारत सरकार अपने लक्ष्यों के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और भारत का आर्थिक विकास इकोनॉमी और इकोलॉजी को मिलाकर किया जा रहा है।
इस तरह देश संधारणीय विकास को लगातार गति दे रहा है। इस क्षेत्र के अगुआ देशों के अनुभवों से ज्ञान लेकर अगर हम सरकार-समाज की साझेदारी करने में सफल हो गए, तो प्रधानमंत्री के ‘सबका साथ-सबका विकास’ स्वप्न को अवश्य ही पूरा कर सकेंगे। नतीजन, वैश्विक देशों को भी अब पर्यावरण और जलवायु के प्रति संवेदनशील बनना चाहिए।