देवी-देवताओं में मां भगवती की महिमा सर्वोपरि है, क्योंकि अनादि काल से मां भगवती की शक्ति के अवतार के रूप में पूजा की जाती है। उनके 108 नाम हैं। अनादि, अविचल, अविनाशी, अनंत, अगोचर के साथ मां दुर्गे को आद्या (मूल) और चिता (अंत) भी कहते हैं। मोह तथा माया के बंधनों से मुक्त करने वाली माता होने के कारण उन्हें बन्धननाशिनी भी कही जाती हैं। मां भगवती पार्वती के नाम से भी पूजी जाती हैं। क्योंकि मां भगवती का अन्य नाम पार्वती भी है और इस कारण वह भोले शिव शंकर की अर्द्धांगिनी कहलाती हैं।
विंध्यवासिनी मां भगवती शेर की सवारी करती हैं तथा यही कारण है कि उन्हें शेरावाली भी कहते हैं। मां दुर्गा का अवतार महिषासुर नाम के राक्षस के संहार के हेतु भी माना जाता है। महिषासुर ने अपनी भक्ति के बल पर उस ताकत को प्राप्त कर लिया जिसे कि देवता भी मात नहीं दे सकते थे। भगवान इंद्र को भी अपनी सत्ता एवं शक्ति महिषासुर की भक्ति के कारण खतरे में प्रतीत होने लगा था। देवताओं की सत्ता को इस प्रकार से खतरे में देखकर भगवान भोले शंकर एवं विष्णु भगवान ने अपने शरीर से एक ऐसे अलौकिक पूंज की उत्पत्ति कि जिससे नारी के शरीर की उत्पत्ति हुई। कहते हैं कि इसी नारी स्वरुपा देवी को समस्त देवतागणों ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए तथा मां भगवती ने अंतत: महिषासुर का संहार किया। इस प्रकार मां दुर्गे की अलौकिक शक्ति एवं पराक्रम से देवताओं को उनका स्वर्ग वापस हो पाया। इस प्रकार असत्य पर सत्य की विजय तथा बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में हमारे देश में नवरात्र के दसवें दिन दशहरा का त्योहार मनाया जाता है।
नवरात्र के इन नौ दिनों में मां भगवती के नौ रूपों में अपार शक्ति विद्यमान होती हैं, जो आदि, अनादि, अविचल, अविनाशी, अनंत, अगोचर, अविकारी, संहारकारी, मूलाधारनिवासिनी सरीखे लोककल्याणकारी शक्तियों का अवतार होती हैं-
शैलपुत्री: प्रथम दिवस
यह मां भगवती के नौ सुंदर रूपों में प्रथम स्वरूप माना जाता है। मां दुर्गा अपने पूर्व जन्म में दक्ष की पुत्री थी क वह सती कहलाती थीं और भगवान शिव की अर्द्धांगिनी थीं। मां भगवती के इस स्वरुप की पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
ब्रह्मचारिणी : द्वितीय दिवस
नवरात्र के दूसरे दिन मां भगवती की जिस स्वरूप की पूजा होती है, उन्हें ब्रह्माचारिणी कहते हैं। ब्रह्मा का अर्थ तप है । मां भगवती ने भोले शंकर को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि मां भगवती के इस स्वरुप को तपश्चारिणी भी कहते हैं।
चंद्रघंटा : तृतीय दिवस
मां के अवतार का यह तीसरा स्वरूप होता है। मां के ललाट पर घंटे के आकार का अर्थात अर्द्धचंद्र विराजमान होता है। मां भगवती के इस स्वरूप की भक्ति-भाव से पूजा करन ेवालों के मन में छुपे अहम एवं घमंड का नाश हो जाता है तथा आजीवन वह शोक तथा रोग से मुक्त रहता है।
कुष्मांडा : चतुर्थ दिवस
माना जाता है कि मां भगवती अपने उदर से ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करती हैं और इसी कारण से मां भगवती को कुष्मांडा भी कहते हैं। मां कुष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं।
श्री स्कन्द माता : पंचम दिवस
दुर्गा मां का पांचवां नाम श्री स्कंदमाता है। मां भगवती का हिमालय की पुत्री के रूप में भोले शंकर से विवाह हुआ था और उनके दो पुत्र श्री गणेश एवं श्री कार्तिकेय हुए। भगवान कार्तिकेय को श्री स्कन्द भी कहा जाता है। इस प्रकार श्री कार्तिकेय की जननी होने के कारण मां भगवती को श्री स्कन्द माता भी कहते हैं।
श्री कात्यायनी : षष्ठम दिवस
यह मां दुर्गा का छठा स्वरूप है। महर्षि कात्यायन ने मां पार्वती को अपनी पुत्री के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या किया थाऔर इसी भक्ति से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने महर्षि कात्यायन के यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। यही कारण है कि मां दुर्गे को मां कात्यायनी भी कहा जाता है।
कालरात्रि : सप्तम दिवस
यह मां दुर्गे का सप्तम स्वरूप है जो काल का नाश करने वाली होती हैं। सभी बाधाओं को हरने वाली होती हैं तथा सबसे बढ़कर भक्तों के ऊपर आई विपत्तियों को दूर भगाती हैं। मां भगवती के इस रूप की पूजा से मानव जीवन के समस्त संकट अपने आप नष्ट हो जाते हैं।
श्री महागौरी : अष्टम दिवस
इस आठवें स्वरूप में मां भगवती शंख के समान श्वेत एवं स्वच्छ होती हैं। अत्यंत गौर वर्ण के होने के कारण ही मां दुर्गे के इस स्वरूप को श्री महागौरी कहते हैं। इस स्वरूप में मां भगवती आठ वर्ष के उम्र की मानी जाती हैं। इस स्वरूप की पूजा करने से भक्तों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं तथा भक्त सुखमय जीवन बिताने में सफल हो जाते हैं।
श्री सिद्धरात्रि : नौंवा दिवस
यह मां भगवती का नौवां स्वरूप है। वे संसार की सभी आठ सिद्धियां की अधिष्ठात्री देवी कहलाती हैं। भगवान भोले शंकर ने ये सभी आठों सिद्धियां महाशक्ति की घोर तपस्या से हासिल कर ली थीं। मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा देवी-देवताओं से लेकर ऋषि-मुनियों तथा साधु-मनीषियों से लेकर योगियों के द्वारा आठों सिद्धियों की प्राप्ति के लिए की जाती है।
उत्तर भारत में मां भगवती की पूजा-आराधना का विशिष्ट महत्व है। यहां मां भगवती सोलहों श्रृंगारों से पूरित एक दुल्हन के रूप में पूजी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अवसर पर मां भगवती अपने मैके आती हैं। नवरात्रि के आठ दिनों तक मैके में रहने के बाद जब वे यहां से नवमी को विदा लेती हैं, तो भक्त उन्हें अपनी बेटी के रूप में परम्परागत ढंग से विदा करते हैं।
पश्चिम बंगाल में दशमी के दिन स्त्रियां सिंदूर स्पर्श का पवित्र त्योहार मनाती हैं, जिसमें वे सिंदूर से आपस में खेलती हैं, मां भगवती को सिंदूर से सुसज्जित करती हैं तथा उसी सिंदूर को अपने मांग में भरकर अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। पश्चिम बंगाल में सिंदूर से खेलने तथा अपने सुहाग की लंबी उम्र मांगने का यह त्योहार विजया भी कहलाता है।
-श्रीप्रकाश शर्मा