एक गांव में एक साधु भिक्षा लेने के लिए गए। घर घर घूमते रहे, पर कुछ न मिला। आखिरकार वे पानी पीकर नदी के किनारे विश्राम करने लगे। नींद खुलते ही फिर सफर शुरू कर दिया। थोड़ी दूर जाकर उन्हें एक कुटिया में एक बुढ़िया नजर आई। उसके घर में आटे का धोवन था। बहुत मांगने पर भी उसने नहीं दिया। साधु अपने आचार्य के पास लौट आए। साधु ने कहा, साफ जल बहुत है, पर मिल नहीं रहा है। भिक्षु-क्यों? क्या वह बहन देना नहीं चाहती? साधु बोला, वह जो देना चाहती है, वह आपको ग्राह्य नहीं है और जो ग्राह्य है, उसे वह देना नहीं चाहती। भिक्षु ने कहा-उसे धोवन देने में क्या आपत्ति है? साधु का जवाब आया, वह कहती है, आदमी जैसा देता है, वैसा ही पाता है। आटे का धोवन दूंगी तो मुझे आगे वही मिलेगा। आप मिठाई ले जाएं, मेरे जीवन में मिठास भरें। ये पानी तो पीने योग्य नहीं है, आप साफ पानी और मिठाई ले जाएं। मैं आपको खाली हाथ नहीं भेजना चाहती। यह सुनते ही आचार्य भिक्षु उठे और साधुओं को साथ लेकर उसी बुढ़िया के घर गए। धोवन मांगने पर उसने वही उत्तर दिया जो वह पहले दे चुकी थी। भिक्षु ने कहा, बहन, तेरे घर में कोई गाय है? बहन ने कहा, हां महाराज है। भिक्षु ने पूछा, तू उसे क्या खिलाती है? बहन, चारा, घास आदि खिलाती हूं। भिक्षु ने सवाल किया, वह क्या देती है? बहन ने जवाब दिया, वह दूध देती है और क्या देगी? भिक्षु बोला, तब बहन, जैसा देती है, वैसा कहां मिलता है? घास के बदले दूध मिलता है। सुनते ही बुढ़िया ने जल का पात्र उठाकर सारा जल साधुओं के पात्र में उड़ेल दिया। इस जगत में अनेक कलाएं हैं, लेकिन इन कलाओं में सबसे बड़ी कला है दूसरों के हृदय को छू लेना।
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