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गन्ने की वैज्ञानिक खेती

गन्ने की वैज्ञानिक खेती
डॉ. आरएस सेंगर
गन्ना ग्रैमीनी कुल से संबंधित है और यह घास कुल का पौधा है इस का वानस्पतिक नाम सैकेरम है। गन्ना एक नकदी फसल है, जिससे गुड़, चीनी, शराब आदि बनाए जाते हैं। ब्राजील में गन्ने का उत्पादन सबसे ज्यादा होता ह ैऔर भारत का गन्ने की उत्पादकता में संपूर्ण विश्व में दूसरा स्थान पर है। गन्ने को मुख्यत: व्यावसायिक चीनी उत्पादनक करने वाली फसल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो विश्व में उत्पादित होने वाली चीनी के उत्पादन में तकरीबन 75 फीसदी योगदान करता है। शेष में चुकन्दर, मीठी ज्वार इत्यादि फसलों का योगदान है। गन्ने का प्रयोग बहुउद्देशीय फसल के रूप में चीनी उत्पादन के साथ-साथ अन्य उत्पाद जैसे पेपर, इथेनाल एल्कोहल, सेनेटाइजर बिजली उत्पादन जैवउर्वरक के लिए कच्चे पदार्थों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

उपयुक्त भूमि, मौसम व खेत की तैयारी

गन्ने की खेती मध्यम से भारी काली मिट्टी में की जा सकतीहै। दोमट भूमि जिसमें सिंचाई की उचित व्यवस्था व जल का निकास अच्छा हो, तथा पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच हो, गन्ने के लिए सर्वोत्तम होती है।
 गन्ने की वुआई साल में दो बार किया की जा सकती है। शरदकालीन बुआई में अक्टूबर -नवम्बर में फसल की बुवाई करते हैं और फसल 10-14 माह में तैयार होती है। बसंत कालीन बुवाई में फरवरी से मार्च तक फसल की बुवाई करते है। इसमें फसल 10 से12 माह में तैयार होती है। शरदकालीन गन्ने, बसंत में बोये गए गन्ने से 25-30 प्रतिशत व ग्रीष्मकालीन गन्ने से 30-40 प्रतिशत अधिक पैदावार देता है।
खेत की ग्रीष्मकाल में अप्रैल से 15 मई के पूर्व एक गहरी जुताई करें। इसके पश्चात 2 से 3 बार देशी हल या कल्टीवेटर, से जुताई कर तथा रोटावेटर व पाटाचलाकर खेत को भुरभुरा, समतल एवं खरपतवार रहित कर लें एवं रिजर की सहायता से 3 से 4.5 फुट की दूरी में 20-25 सेमी गहरी कूड़े बनाएं।

उपयुक्त किस्म, बीज का चयन व तैयारी

गन्नेके सारे रोगों की जड़ अस्वस्थ बीज का उपयोग ही है। गन्ने की फसल उगाने केलिए पूरा तना न बोकर इसके दो या तीन आंख के टुकड़े काटकर उपयोग में लाएं। गन्ने ऊपरी भाग की अंकुरण 100 प्रतिशत, बीच में 40 प्रतिशत और निचले भागमें केवल 19 प्रतिशत ही होता है। दो आंख वाला टुकड़ा सर्वोत्तम रहता है।

गन्ना बीज का चुनाव करते समय सावधानियां

  • -उन्नत जाति के स्वस्थ निरोग शुद्ध  बीज का ही चयन करें।
  • -गन्ना बीज की उम्र लगभग 8 माह या कम हो तो अंकुरण अच्छा होता है। बीज ऐसे खेत से लें, जिसमें रोग व कीट का प्रकोप न हो एवं जिसमें खाद पानी समुचित मात्रा में दिया जाता रहा हो
  • -जहां तक हो नर्म गर्म हवा उपचारित (54 से.ग्रे. एवं 85 प्रतिशत आर्द्वता पर 4 घंटे) या टिश्यूकल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें।
  • -हर 4-5 साल बाद बीज बदल दें, क्योंकि समय के साथ रोग व कीट ग्रस्तता में वृद्वि होती जाती है।
  • -बीज काटने के बाद कम से कम समय में बोनी कर दें।

गन्ना बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर-नवम्बर ही क्यों चुनें?

  • -फसल में अग्रवेधक कीट का प्रकोप नहीं होता।
  • -फसल वृद्वि के लिए अधिक समय मिलने के साथ ही अंतरवर्तीय फसलों की भरपूर संभावना।
  • -अंकुरण अच्छा होने से बीज कम लगता है एवं कल्ले अधिक फूटते हैं।
  • -अच्छी बढ़वार के कारण खरपतवार कम होते हैं।
  • -सिंचाई जल की कमी की दशा में, देर से बोयी गई फसल की तुलना में नुकसान कम होता है।
  • -फसल के जल्दी पकाव पर आने से कारखाने जल्दी पिराई शुरू कर सकते हैं।
  • -जड़ फसल भी काफी अच्छी होती है।
  • -बीज की मात्रा-75-80 कुंतल/हे. 2 आंख वाले टुकड़े लगेंगे।

खाद एवं उर्वरक

फसल के पकने की अवधि लंबी होने कारण खाद एवं उर्वरक की आवश्यकता भी अधिक होती है, अत: खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 20 टन सड़ी गोबर/कम्पोस्ट खाद खेत में समान रूप से मिलाना चाहिए इसके अतिरिक्त 180 किलो नत्रजन (323 किग्रायूरिया ), 80 किग्रा फास्फोरस , एवं 60 किलो पोटाश (100 किग्रा म्यूरेटआप पोटाश) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें एवंनत्रजन की मात्रा को निम्नानुसार प्रयोग करें।

जल प्रबंधन

गर्मी के दिनों में भारी मिट्टी वाले खेतों में 8-10 दिन के अंतर पर एवं ठंड के दिनों में 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करें। हल्की मिट्टी वाले खेतों में 5-7 दिनों के अंतर से गर्मी के दिनों में व 10 दिन के अंतर से ठंड के दिनोंमें सिंचाई करना चाहिए। गर्मी के मौसम तक जब फसल 5-6 महीने तक की होती है स्प्रींकलर (फव्वारा) विधि से सिंचाई करके 40 प्रतिशत पानी की बचत की जा सकती है। वर्षा के मौसम में खेत में उचित जल निकास का प्रबंध रखें। खेत में पानी के जमाव होने से गन्ने की बढ़वार एवं रस की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

खरपतवार प्रबंधन

गन्नेका अंकुरण देर से होने के कारण कभी-कभी खरपतवारों का अंकुरण गन्ने से पहले हो जाता है। जिसके नियंत्रण हेतु एक गुड़ाई करना आवश्यक होता है जिसे अंधी गुड़ाई कहते हैं। आमतौर पर प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुड़ाई आवश्यक होगी वर्षा प्रारम्भ होने तक फसल पर मिट्टी चढ़ाने का कार्य पूरा कर लें (120 व 150 दिन)।

रासायनिक नियंत्रण

बुवाईपश्चात अंकुरण पूर्व खरपतवारों के नियंत्रण हेतु एट्राजीन 2.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर बुआई के एक सप्ताहके अंदर खेत में समान रूप से छिड़काव करें।
खड़ी फसल में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 किग्रा/हे के हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें।
खड्ी फसल में चौड़ी-सकरी मिश्रित खरपतवार के लिए 2-4-डी सोडियम साल्ट 2.8 कि.ग्रा ़मेटीब्यूजन 1 किग्रा /हे के हिसाब से 600 लीटर पानी का घोल बनाकर बुवाई के 45 दिन बाद छिड़काव करें। नीदानाशकों के उपयोग के समय खेत में नमी आवश्यक है।
(लेखक सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि यूनिवर्सिटी, मेरठ में कृषि जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष हैं)