बिग बॉस कि इतनी लोकप्रियता थी, कि मैंने एक-दो एपिसोड कई साल पहले दो-चार मिनट के लिए देखा था।।मुझे भी शुरू में लगा था कि बनावटी दुनिया के लोगों की एक सच्ची जिंदगी की झलकियां होंगी लेकिन तब ही भ्रम दूर हो गया। बहुत ही बकवास है और इसे देखने वाले एकदम फालतू जिनके पास सोचने विचारने के लिए कोई काम ही नहीं बचा। मुझे इतना वाहियात लगा था, कि मुझसे झेला नहीं गया। हद्द दर्जे का फूहड़पना किसी भी नॉर्मल इंसान के लिए तो नहीं हो सकता। मेरे लिए वो किसी ट्रॉमा से कम नहीं था। फिर भी कभी – कभार मुझे एक बात आज भी परेशान करती है।।। ये शो आज भी सबसे ज्यादा लोकप्रिय शो है! जाहिर है बहुत लोग देखते हैं हैं लेकिन मैं पूछना चाहता हूं आप देखने वाले यह शो क्यों देखते हैं?
इसमें सब कुछ स्क्रिप्टिड होता है, कब कौन क्या बोलेगा। कब किससे कौन भिड़ेगा। बुलिंग, गाली, फूहड़ता, अश्लीलता। प्रतिभागी, एक-दूसरे पर फब्तियां कसते हैं, कई तो एक-दूसरे को चोट भी पहुंचाते हैं। क्या लड़की- क्या लड़का सारे के सारे एक दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए आतुर रहते हैं। यह सब इस शो को स्तरहीन बनाता है। यूं तो शो को घर जैसे बनाया जाता है, वहीं प्रतिभागी सारे के सारे सस्ती लोकप्रियता के भूखे होते हैं। सब के सब प्रतिभागी ऐसे लगते हैं, जैसे अभी-अभी इन्हें मानसिक हस्पताल से यहीं शिफ्ट किया गया है। बिग बॉस में बने रहने के लिए ऊलूल-जलूल हरकतें जिसे देखकर सामान्य बुद्धि का इंसान अचंभित हो जाए कि यह प्रतिभागी इतना क्यों चिल्ला रहा है? ऐसे लगता है जैसे इसकी पूंछ किसी के पैर के नीचे आ गई है। एक दिन मेरे मोबाइल पर अचानक एक क्लिप चली जिसमें एक प्रतिभागी दूसरे से पूछता है- क्या चल रहा है सर आपकी लाइफ में? दूसरा प्रतिभागी जवाब देता है- जिÞन्दगी में सबकुछ ठीक चल रहा होता तो मैं यहां बिग बॉस में थोड़ा ही होता? मतलब साफ है कि प्रतिभागी सस्ती लोकप्रियता के लिए बिग बॉस में आना पसंद करते हैं। मुझे हैरत होती है इसे नॉर्मल इंसान देख भी कैसे सकता है? बिग बॉस जैसे बकवास शो को देखने वालों को सस्ता नशा दिया जा रहा है। जो भी इसके दर्शक हैं, उन्हें सचमुच इलाज की जरूरत है।
शायद स्क्रिप्टिड होता है सब कुछ, तब ही इसके प्रतिभागी अपनी निजी जिन्दगी के चटखारे भी परोसते हैं। ये सब बातें आसान नहीं होतीं, हालांकि बहुतेरे प्रतिभागी सस्ती लोकप्रियता के लिए शो की टीआरपी के लिए बोल तो देते हैं, लेकिन बाद में उनकी निजी जिÞंदगी प्रभावित होती है। समाज, परिवार की आलोचना झेलनी पड़ती है। इससे कई पूर्व प्रतिभागी मानिसक समस्याओं से जूझ चुके हैं। क्या बिग बॉस यह सोचता होगा? सीधा जवाब है बिल्कुल नहीं! बिग बॉस यह भी कहता है कि हम वही दिखाते हैं जो समाज को अच्छा लगता है। फिर सोचता हूं अब असल जिÞन्दगी में भी तो बहुतेरे लोग ऐसे ही होते हैं, हुड़दंग, फूहड़ता अतिवाद अपनी तरफ खींच ले जाता है। जबकि सभ्य बातें बकवास लगती हैं। हमारा समाज इतना ज्यादा उत्सवधर्मी है कि चटखारे बिना हमारी जिÞन्दगी ही बेरंग महसूस होती है। यही कारण है कि बिग बॉस की लोकप्रियता अपने उरूज पर है जो हमारे समाज की हकीकत को बखूबी बयां करता है।
बिग बॉस का कहना है, कि इसमे प्रतिभागी वही हो सकता है! जिसने समाज को प्रभावित किया हो! सुनकर बहुत हास्यापद लगा। बिगबॉस में आजतक मुझे ऐसा कोई प्रतिभागी नहीं दिखा जिस का समाज पर कोई सकारात्मक प्रभाव रहा हो। मतलब बिगबॉस के प्रतिभागी बनने के लिए फेमस होना जरूरी है। प्रसिद्धि का कारण जो भी हो। बिग बॉस में मैंने आजतक किसी भी ऐसे प्रतिभागी को नहीं देखा जिसने वैश्विक परिदृश्य में भारत का नाम रोशन किया हो। कुछ अपवाद हो तो कुछ कहा नहीं जा सकता। ऐसे ही भजन गायक अनूप जलोटा एक बार अपनी एक शिष्या के साथ बिग बॉस पहुंचे वहां रंग दिया गया कि यह लड़की अनूप जलोटा की प्रेमिका है। समाज में अनूप जलोटा की एक भजन गायक होने के साथ ही एक उम्दा इंसान की थी, बाद में इस शो में जाने के बाद सारी की सारी प्रतिष्ठा खराब हो गई। किसी भी भी रचनात्मक व्यक्ति को मीडिया, मैग्जीन उसके सर्वोत्तम दौर में फुल रुचि रखते हुए मेन स्ट्रीम पर जगह देते हैं। बाद में जैसे ही जगह नहीं मिलती, तो व्यक्ति अनाप-शनाप हरकतें करने लगता है। यही तो बिग बॉस चाहता है कि आप चर्चा में बने रहें। देखा जाए तो आज के समय में टीवी से बड़ा समाज का दुश्मन कोई और नहीं दिखता। सीरीयल्स, फिल्में, न्यूज, म्यूजिक आदि फूहड़ असंवेदनशील, हिंसात्मक, भड़काऊ है। मुझे लगता है यह सब जानबूझकर परोसा जा रहा है, ताकि भारतीयों की राजनीतिक चेतना विकसित न हो। उसे अपने मूलभूत मुद्दों पर कोई विचारोत्तेजक सामाग्री साजिशन नहीं प्रोवाइड की जा रही है। इस जरूरी विषय पर समाज के अग्रणी लोगों को विचार करना चाहिए।
हम सब को गौर करना चाहिए कि हम क्या देख रहे हैं? क्यों देख रहे हैं? हमारी जिÞन्दगी में इसका क्या प्रभाव पड़ता है। वैसे भी देखने का अपना असर ज़्यादा होता है अत: ढंग के कन्टेन्ट में समय खर्च किया जाना चाहिए। हमारे मुल्क में इतनी ज्यादा बेरोजगारी है कि लोग फ्री बैठे हुए कुछ भी करते हुए समय पास कर रहे हैं। और बिग बॉस को तो पैरेंट्स भी अपने बच्चों के साथ बैठकर देखते हैं। बाजार की अपनी नीतियां-सोच होती है। उसे पता होता है कि क्या कैसे बेचना है। सभी की अपनी स्वायत्ता है, कोई कुछ भी देखे। देखने वालों को खुद से एक बार पूछना चाहिए हम बिग बॉस क्यों देखते हैं?