एक बार बेंजामिन फ्रैंकलिन ने एक धनी व्यक्ति की मेज पर बीस डॉलर की सोने की गिन्नी रखते हुए कहा, सर, आपने बुरे वक्त में मेरी सहायता की थी।
उसके लिए मैं बहुत आभारी हूं। लेकिन अब मैं अपनी मेहनत के बल पर इतना सक्षम हो गया हूं कि आपका वह कर्ज लौटा सकूं।
यह सुनकर वह व्यक्ति उन्हें गौर से घूरते हुए बोला, क्षमा कीजिए, पर मैंने आपको पहचाना नहीं। न ही मुझे याद है कि मैंने किसी को बीस डॉलर उधार दिए थे।
लगता है कि आपको कोई गलतफहमी हो गई है। आपने किसी और को गिन्नियां दी होंगी। मुझे ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा है।
बेंजामिन बोले, मैं उन दिनों एक प्रेस में अखबार छापने का काम करता था। एक दिन अचानक मेरी तबीयत खराब हो गई। तभी मैंने आपसे बीस डॉलर लिए थे।
उस व्यक्ति ने अपने बीते दिनों के बारे में सोचा तो उसे याद हो आया कि काफी पहले एक लड़का प्रेस में काम किया करता था और एक दिन उसने उसकी मदद भी की थी।
इस पर वह बोला, हां मुझे याद आ गया। लेकिन दोस्त, यह तो मनुष्य का सहज धर्म है कि वह मुसीबत में सहायता करे। इन गिन्नियों को अब अपने पास ही रखें।
कभी कोई जरूरतमंद आए तो उसे दे दें। उसकी यह बात सुनकर बेंजामिन फ्रैंकलिन बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अभिवादन कर वे गिन्नियां अपने साथ लौटा लाए।
इसके बाद एक दिन उन्होंने एक जरूरतमंद व्यक्ति को वह गिन्नियां दे दीं। उस व्यक्ति ने बेंजामिन से गिन्नियां लौटाने की बात कही तो वह उससे बोले, दोस्त, जब तुम सक्षम हो जाओगे तो अपने जैसे किसी जरूरतमंद को ये गिन्नियां दे देना।
मैं समझूंगा कि मेरी गिन्नियां मुझे मिल गई। किसी जरूरतमंद की वक्त पर मदद करना ही सबसे बड़ा काम है।