Sunday, May 4, 2025
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बोर्ड परीक्षा जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं

Samvad


vina Pandeyबोर्ड परीक्षा के प्राप्तांक कहीं न कहीं बच्चों के भविष्य की दिशा तय करते हैं, किंतु हमें अच्छे और बुरे दोनों ही परीक्षा परिणामों के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की जरूरत है। प्राय: देखा जाता है कि भारत जैसे देश में कोई भी परीक्षा का परिणाम निकलता है, तो किशोरों के आत्महत्या का प्रतिशत भी बढ़ जाता है। एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो) की रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों में परीक्षा में असफलता के कारण आत्महत्याओं की दर सबसे ज्यादा रही है, क्योंकि हमारे समाज में बोर्ड में प्राप्त किए अच्छे प्राप्तांक ही विद्यार्थियों के मेधावी होने का मानक माना जाता हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपने रिपोर्ट में दावा किया है कि दुनिया में दस से उन्नीस वर्ष की आयु के हर सात में से एक विद्यार्थी, अपने शैक्षणिक वर्षों के दौरान अवसाद का अनुभव करता है।

इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला खुलासा किया गया है कि माता-पिता के दबाव में भारत में हर एक घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है। मनोचिकित्सकों ने खुलासा किया है कि कई माता-पिता अपने बच्चों के स्कूल में अच्छे ग्रेड प्राप्त करने में असफल होने पर बच्चों को अपमानित करते हैं और सोचते हैं कि धमकी देने से उनके बच्चे अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करेंगे लेकिन दुर्भाग्य से परिणाम इसके बिल्कुल विपरीत होता है।

माता-पिता से लगातार अपमानित होने से वे स्वयं को माता- पिता, समाज और स्कूल के लिए महत्वहीन समझने लगते हैं और धीरे-धीरे उनका मनोबल का स्तर गिरता जाता है और यही भावना उन्हें आत्महत्या की तरफ प्रेरित करती है।

विद्यार्थियों में बढ़ती हुई आत्महत्या की दर हमारे समाज, शिक्षकों और अभिभावकों को चेतावनी देती है कि अब सोच बदलने का समय आ गया है, क्योंकि केवल अंकपत्र ही बच्चों के बुद्धिमत्ता का मापक नहीं है।

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक हॉवर्ड गार्डनर ने अपनी पुस्तक फॉर्म्स आॅफ माइंड : द थ्योरी आॅफ मल्टीपल इंटेलीजेंसीज में बहु-बुद्धि के सिद्धांत का वर्णन किया है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में कम से कम आठ अलग-अलग मानव बुद्धि हैं-दृश्य-स्थानिक या आकाशीय योग्यता, शाब्दिक योग्यता, गणित संबंधी योग्यता, शारीरिक-क्रियात्मक योग्यता, संगीतात्मक योग्यता, अंतर्विषयक या पारस्परिक योग्यता, अंतराविषयक या अंतरावैयक्तिक योग्यता, प्राकृतिक योग्यता।

ये सारी योग्यताएं हम सभी में हैं, लेकिन इन योग्यताओं का संयोजन कमजोर से मजबूत क्षमता के रूप में एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद है, जिसकी मात्रा हर एक व्यक्ति में अलग-अलग होती है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अद्वितीय होती है, जिसका आधार आनुवंशिक या अनुभवजन्य होता है।

उदाहरण के लिए, एक बच्चे के पास मजबूत संगीत बुद्धि या गणितीय बुद्धि हो सकती है जबकि दूसरे के पास मजबूत भाषाई या पारस्परिक बुद्धि हो सकती है। एक बच्चा अच्छा लेखक और वक्ता हो सकता है, दूसरा जानवरों से प्यार कर सकता है और तीसरा विज्ञान और प्रकृति से प्यार कर सकता है।

यही विविधता ही मनुष्य की सुंदरता है, इसलिए हम इतने अलग और दिलचस्प जीव हैं। बच्चों की इसी विशिष्टता और विविधता को अभिभावकों और शिक्षकों को पहचानने और तराशने की आवश्यकता है। बोर्ड परीक्षा जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं है, अभी तो शुरुआत है।

तनाव लेने कि बजाय विचार करना है कि कमी कहां रह गई। उस पर ध्यान केंद्रित करते हुए करिअर के लिए एक बेहतर रणनीति बनाकर आगे बढ़ें। तनाव लेने से आगे भी प्रदर्शन खराब होगा। कितने ही ऐसे लोग हैं, जिनका बोर्ड परीक्षा में बेहद कम अंक रहे या कई फेल भी हुए, लेकिन उन्होंने अपनी गलती से सबक लिया, मेहनत की और आगे चलकर अपने-अपने क्षेत्र में उच्च पदों पर आसीन हुए।

बोर्ड परीक्षा जीवन का एक पड़ाव है, इसके बाद के जीवन में जो विद्यार्थी सरल, सहज और भावनात्मक रूप से मजबूत, चुनौतियों से सामना करने योग्य होगा वही जीवन में शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह पाएगा। इन गुणों को विकसित करने की जिम्मेदारी केवल पाठ्य पुस्तकों की ही नहीं, बल्कि हमारे समाज, शिक्षक और माता-पिता की भी है।

अगर बच्चे का परीक्षा परिणाम आपकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं आता है तो आप उसे अपमानित न करे, ऐसे बच्चे का आत्म-सम्मान का स्तर पहले ही नीचे गिर चुका होता है। ऐसे समय में माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों की ढाल बनना चाहिए ताकि उनका आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास रूपी पंख और मजबूत हो सके और जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना अपने पंख फैलाकर करें। माता-पिता चाहे तो परीक्षा परिणाम आने से पहले या बाद में कुछ सावधानियां रख सकते हैं, ताकि बच्चों के मन में आत्महत्या जैसे नकारात्मक विचार नहीं आएं।

बच्चों के सामने परीक्षा परिणाम की बार-बार चर्चा करने से बचें और अपने बच्चों को यह पूछ कर शर्मिंदा न करें कि उनके मित्रों का रिजल्ट कैसा रहा, बल्कि उनमें उत्साह भरें कि भविष्य में खुद को साबित करने के लिए बहुत से सुनहरे अवसर आएंगे, घर का माहौल सामान्य रखें, निराशा भरा माहौल बच्चे को और हतोत्साहित करता है।

सभी बच्चे एक ही क्षेत्र में एकसमान प्रतिभावान नहीं होते हैं जैसे प्रकृति विविधताओं और आश्चर्यों से भरी पड़ी है, उसी प्रकार हर एक बच्चा प्रकृति प्रदत्त क्षेत्र में बहुआयामी प्रतिभा संपन्न होता है, माता-पिता अपने बच्चों के अंकपत्र को विजिटिंग कार्ड की तरह प्रयोग न करें और उन्हें समझाएं कि बोर्ड परीक्षा के अंक ही उनकी एकमात्र पहचान नहीं है। यदि आपका बच्चा बुरे परिणामों को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं कर सकता है तो आप उसे परामर्श के लिए मनोवैज्ञानिक के पास ले जाएं।


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