Saturday, March 22, 2025
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…लेकिन किचन की अनदेखी से आधी आबादी नाखुश

कपड़ा और मोबाइल के सस्ता होने से महिलाओं पर नहीं पड़ा कोई फर्क

सोना-चांदी महंगा होने से महिलाएं हुर्इं नाराज

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: केंद्र सरकार के आखिरी बजट में रसोई घर की अनदेखी से महिलाएं नाराज है। महिलाओं का कहना है कि कपड़ा और मोबाइल सस्ता होने से क्या फर्क पड़ता हैं, जब सिलेंडर और खाद्य तेल के दामों में कटौती नहीं की गई है। वहीं कुछ महिलाओं का यह भी कहना था कि आभूषण महिलाओं का प्रिय शौक हैं, लेकिन महिला वित्तमंत्री होने के बाद भी सोने-चांदी को महंगा कर दिया गया है।

बजट में महिला सुरक्षा पर भी कोई बात नहीं की गई है। आज आम आदमी महंगाई के बोझ तेल दबा हुआ हैं, जिसमें सरकार को राहत देनी चाहिए थी। आटा, दाल, चावल, रिफाइंड आदि सस्ता होना चाहिए था। क्योंकि बजट से लोगों को उम्मीद थी कि कुछ ना कुछ लाभ अवश्य मिलेगा। बजट को लेकर जब घरेलू महिलाओं से वार्ता की गई तो उन्होंने कुछ तरह की प्रतिक्रिया दी।

स्वाति ने कहा कि आम आदमी उम्मीद कर रहा था कि महंगाई अब कुछ कम होगी, लेकिन बजट में इस तरह का कोई भी कदम नहीं उठाया गया है। वहीं खाद्य सामग्री में किसी तरह की छूट न मिलने से भी महिलाओं के हाथ निराशा लगी है।

रचना ने कहा कि महिलाएं सबसे पहले घर को देखकर चलती है। देखा जाए तो इस बजट से महंगाई कम होती नहीं दिख रही है। क्योंकि गैस सिलेंडर तक के दामों को कम नहीं किया गया है। एक तो बच्चों की पढ़ाई महंगी और ऊपर से खाद्य सामग्री भी आय दिन महंगी होती जा रही है।

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संध्या ने कहा कि चुनावी बजट है। मोबाइल, कपड़ा आदि सस्ता कर लेने से काम नहीं चलता। महिलाओं को तो घर चलाने के लिए रसोई को देखना होता है। रसोई का कोई सामान सस्ता नहीं हुआ है। हमें तो इस बजट से निराशा ही मिली है। इस समय आम जनता के लिए महंगाई कम होने पर ध्यान देने की जरुरत थी।

अलका का कहना है कि सोने-चांदी के दाम बढ़ा दिए गए है। जबकि जेवर महिलाओं की सबसे पसंदीदा वस्तु होती है। आम लोगों से तो पहले ही सोना दूर हो गया था अब दाम और बढ़ा दिए गए है ऐसे में तो सोना महिलाओं की पहुंच से ही दूर हो जाएगा। क्योंकि पहले तो घर देखना होगा। ऐसे में महिलाएं अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही है।

योगिता का कहना है कि सरकार की ओर से जारी किए गए बजट से महंगाई और बढ़ जाएगी। खाने-पीने के सामानों पर आय दिन इजाफा हो रहा है। बजट से उम्मीद थी कि महंगाई से निजात मिलेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। निराशाजनक बजट है।

आशा का कहना है कि कामकाजी हो या फिर घर को संभालने वाली महिलाएं सभी महिलाओं के लिए महंगाई, रोजगार और सुरक्षा 4 बड़े मुद्दे थे जिनकों लेकर सभी की बजट पर निगाहें टिकी थी, लेकिन उनको लेकर बजट में कोई खास घोषणा नहीं की गई। जिससे महिलाओं को निराशा हाथ लगी है।

रेखा शर्मा का कहना है कि गृहणियां बजट में राहत की उम्मीद कर रही थी। महिलाओं को उम्मीद थी कि सरकार बजट में ऐसा ऐलान करे ताकि रसोई का खर्च कम हो सके। बढ़ती महंगाई की वजह से घर का बजट हर माह खराब हो रहा है।

मगर इसमें किसी तरह की छूट नहीं दी गई है। रही मोबाइल, इलेक्ट्रोनिक वाहन आदि पर छूट की बात तो लोगों के जेब में जब पैसे नहीं होंगे तो वह इन समान को कहा से खरीद लेंगे।

रीना का कहना है कि बजट में रोजगार को लेकर बात की गई है अच्छी बात हैं, लेकिन महंगाई कम करने की कोई बात नहीं की गई। तेल, दाल आदि के दामों में कमी होनी चाहिए थी। कपड़ों और जूते-चप्पलो में जो राहत दी गई है वह सराहनीय है।

मनरेगा पर बजट में नहीं हुआ जिक्र, श्रमिकों को झटका

मनरेगा श्रमिकों के लिए आर्थिक स्रोत हैं, लेकिन बजट में मनरेगा पर जिक्र तक नहीं किया गया। मनरेगा का बजट घटा दिया गया। ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा को विकास की धूरी कहा जाता हैं, क्योंकि गांव स्तर पर मनरेगा से ही विकास कार्य कराये जाते हैं। तालाबों की सफाई भी मनरेगा से ग्रामीण स्तर पर करायी जाती हैं। सड़कें हो या फिर अन्य कार्यों में मनरेगा से ही कार्य कराये जाते हैं,

लेकिन केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सिंह ने मनरेगा का बजट घटा दिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में होने वाले विकास कार्यों पर प्रतिकुल असर पड़ेगा। बजट 2023 का खाका देखें तो साफ लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के मन को मनरेगा नहीं भा रही है। यही वजह है कि पिछले बजट की तुलना में इस बार योजना को आवंटित फंड में 21.66 फीसदी की कटौती कर दी गई हैं, जो बड़ा झटका हैं।

मनरेगा का बजट कम करते हुए प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के बजट में भारी बढ़ोतरी की गई है। सरकार को पता है कि गांवों में रहने वाले लोगों के लिए अपने पक्के घर के सपने को पूरा किया जा सकता हैं। इसे सरकार ने अहम माना हैं। शायद इसी वजह से आवास योजना को सरकार की तरफ से विशेष तरजीह दी हैं। आवास योजना के लिए आवंटित फंड में 172 फीसदी का इजाफा किया गया है।

2023-24 के बजट में मनरेगा के लिए 60 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 2022-23 में स्कीम के लिए खर्च होने वाली रकम का आकलन 73 हजार करोड़ रुपये था। रिवाइज्ड एस्टीमेट में ये रकम 89 हजार 400 करोड़ रुपये थी। इन आंकड़ों को देखकर साफ लगता है कि सरकार मनरेगा को तवज्जो नहीं दे रही है। ग्रामीण स्तर पर होने वाले विकास कार्यों पर सीधे प्रभाव पड़ने वाला हैं।

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