- मई के आखिर तक होने हैं शहर के सभी नाले साफ
- शासन से नाला सफाई को लेकर दिये गये थे निर्देश
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: स्वच्छ भारत मिशन के तहत हर तरफ साफ सफाई और स्वच्छता पर फोकस है। इसके लिए साधन संसाधनों से भी मजबूत किया जा रहा है। इसके बावजूद शहर में कई जगह नाले, नालियां गंदगी से अटे पड़े हैं। आसपास के लोगों आने जाने वालों का बुरा हाल है। बीमारियां फैलने का भी अंदेशा है। इतना होने के बावजूद नगर निगम इन सफाई इस माह नहीं करना चाहती है।
इन दिनों शहर के कई क्षेत्रों से नालों की सफाई नहीं होने की शिकायतें मिल रही है। क्षेत्रवासी प्रतिदिन सड़ांध से परेशान हो रहे हैं। गंदगी से बीमारियां फैलने की आशंका बनी रहती है। गदंगी के ढेर पर मक्खी-मच्छर भिनभिनाते हैं। नालों के पास से लोगों को नाक पर रुमाल रखकर गुजरना पड़ता है। नगर निगम नालों की सफाई के प्रति उदासीन है। सफाई कर्मचारी सड़क का कचरा भी कई बार पास की नालियों और नाले में खिसका देते हैं।
नगर निगम के अफसर इन दिनों बड़ी टेंशन में नजर आ रहे हैं। शासन के निर्देश थे कि मई के आखिर तक शहर के सभी नालों को साफ किया जाये, लेकिन यहां नाले साफ होते नजर नहीं आ रहे हैं। अफसर लाख दावे करें नालों की सफाई के उनके दावे फेल होते नजर आ रहे हैं। मात्र 12 दिन इस माह में शेष रह गये हैं और अभी तक एक भी डिपो की ओर से अपना टारगेट पूरा नहीं किया गया है।
जिसका खामियाजा शहर की जनता को भुगतना पड़ेगा और इस बार जनता तो परेशान होगी ही, लेकिन अगर शासन को रिपोर्ट गलत पहुंची तो यहां अधिकारियों पर भी नाला सफाई न किये जाने को लेकर गाज गिर सकती है। अधिकारियों की लाख कोशिशों के बावजूद शहर के नाले अभी पूरी तरह से साफ नहीं हो पाये हैं। इस बार नगर निगम मेरठ को शासन से निर्देश मिले थे कि शहर के सभी नाले 30 मई तक पूरी तरह से साफ किये जाएं,
जिससे शहर की जनता को जलभराव की समस्या से न जूझना पड़े, लेकिन अब मई माह समाप्त होने को है और कूड़े से पटे शहर के नाले नगर निगम के अधिकारियों की टेंशन की वजह बने हुए हैं। इसे देखकर अधिकारियों को न दिन में चैन है और न रात में नींद आ रही है। पूरी ताकत झोंकने के बावजूद धरातल पर स्थिति अलग है। मई माह खत्म होने में 12 दिन का समय बचा हुआ है, लेकिन अभी तक डिपो की ओर से नाला सफाई को लेकर रिपोर्ट नहीं दी गई है।
छोटे बड़े कुल 315 नालों की होनी है सफाई
नगर निगम क्षेत्र में छोटे-बड़े मिलाकर 315 नाले हैं। जिसमें 14 बड़े और 186 छोटे नाले हैं। वहीं 111 नालियां भी हैं। इनमें 11 नाले सबसे बड़े हैं जो कई किमी में फैले हुए हैं। इन नालों की सफाई के लिए आठ जेसीबी और अन्य मशीनें काम कर रहीं हैं। नगर निगम के शहर में तीन डिपो हैं और हर डिपो का अलग टारगेट दिया गया था। यह टारगेट इन्हें अप्रैल माह में ही दिया गया था। हर बार नालों की सफाई पर करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं, लेकिन व्यवस्था हर बार फेल होती नजर आती है।
भूमिया के पुल के पास नाले के ऊपर ही बन गर्इं दुकानें
भूमिया के पुल के पास की बात करें तो यहां दुकानदारों ने नाले के ऊपर ही अवैध रूप से दुकानें तक बना ली हैं। जिस कारण नालों की सफाई नहीं हो पाती है। नालों के ऊपर ही जाल डालकर यहां लोगों ने कब्जा कर लिया है और दुकानें बना ली हैं। जिस वजह से यहां जब भी नाला सफाई को लेकर अभियान चलाया जाता है तो यहां हंगामा खड़ा हो जाता है और नाला साफ नहीं हो पाता। यहां पर भूमिया के पुल से लेकर पिलोखड़ी चौकी तक यही हाल है। यहां नाला साफ नहीं हुआ है। जिस कारण यहां गोबर तक जमा हो गया है। यहां हालात ऐसे हैं कि अगर इस नाले में उतर जाओ तो कूड़े के ऊपर आराम से लोग घूम सकते हैं।
नगरायुक्त के न होने से अटके विकास कार्य
नगर निगम से नगरायुक्त का ट्रांसफर हुए एक माह होने को है, लेकिन अभी तक यहां पर नगरायुक्त के पद पर कोई नियुक्ति नहीं हो पाई है। जिस कारण कई फाइलें अधर में लटकी हुई हैं। क्षेत्र के कई विकास कार्य ऐसे हैं जो यहां नगरायुक्त के आने के बाद ही शुरू हो पाएंगे और दूसरे यह साल निगम पार्षदों के कार्यकाल का भी अंतिम साल है। जिस कारण क्षेत्र के ई-वार्डों में अभी तक एक र्इंट तक नहीं लग पाई है और कार्य अधूरे पड़े हैं।
शहर के नगरायुक्त का यहां से ट्रांसर्फर हुए लगभग एक माह होने को है, लेकिन अभी तक यहां इस पद पर किसी की नियुक्ति शासन की ओर से नहीं की गई है। यहां अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार ही नगरायुक्त का कार्यभार संभाले हुए हैं, लेकिन अभी तक उनके पास भी वह अधिकार नहीं है, जो नगरायुक्त के पास होते हैं। कई कार्य ऐसे हैं। जिन पर नगरायुक्त के ही हस्ताक्षर होंगे, उसके बाद ही वह कार्य आगे बढ़ेगा।
नगर निगम में ऐसे कई कार्य हैं जो होने हैं, लेकिन नगरायुक्त के न होने के कारण नहीं हो पा रहे हैं। अगर नगर निगम की आय के स्त्रोत के रूप में ही देखा जाये तो यूनिपोल विज्ञापन का ठेका अभी तक नहीं छूटा है। जब तक यहां नगरायुक्त की नियुक्ति नहीं होती तब तक यहां यह कार्य अधर में लटका रहेगा। उधर, अगर क्षेत्र के विकास कार्यों को लेकर बात की जाये तो निगम की बोर्ड बैठकें मुश्किल से दो या तीन बार ही हुई। जिनमें से ज्यादातर हंगामे की भेंट चढ़ी थी। ऐसे में कैसे कार्य हो पाएंगे।
साल के आखिर में भंग हो जायेगा बोर्ड
नगर निगम में 90 वार्ड हैं और इनमें से ज्यादातर वार्ड ऐसे हैं। जहां एक भी कार्य नहीं हो पाया है और अब बोर्ड का कार्यकाल खत्म होने वाला है। दिसंबर के आखिर में नगर निगम के पार्षदों का कार्यकाल खत्म हो जायेगा और यहां अधिकारियों की कमी के चलते निगम के पार्षद भी परेशान हैं। अभी तक यहां निगम में हुई बैठकों की बात की जाये तो अभी तक ज्यादातर बैठकें हंगामें की भेंट चढ़ती नजर आर्इं हैं। ऐसे में अब जो बैठक होनी है। वह बोर्ड की अंतिम बैठक भी हो सकती है, लेकिन अभी तक नगरायुक्त के न होने के कारण बैठक का कुछ अता पता नहीं है। जिस कारण क्षेत्र की जनता और पार्षद सभी परेशान हैं।