पत्ता गोभी की अगेती फसल तैयार हो रही है, लेकिन इस समय इनमें कीटों के आने का समय भी है। अगेती पत्ता गोभी की फसल तैयार हो रही है, इस समय इसमें उचित सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण का सही समय होता है। इसलिए शुरू से ही कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण के लिए
जब फसल 35 से 40 दिन की हो जाती है तो निराई गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ाना चाहिए। इस समय प्रति हेक्टेयर की दर से 60 किलो नाइट्रोजन डालना चाहिए।
रोग और कीट
अगेती फसलों में दो मुख्य रोग हैं, जिसको काली पत्ती धब्बा रोग कहते हैं, इसका दूसरा नाम भूरी पत्ती धब्बा रोग भी कहते हैं, और दूसरा काला सड़न इसमें जो भूरा पत्ती रोग हैं गोल आकार के पत्तों पर धब्बे बनते हैं जो धीरे धीरे फूलों पर भी दिखायी देते हैं। जिससे गोभी का बाजार भाव कम हो जाता हैं।
इस बीमारी की रोकथाम के लिए मैंकोजेब या इंडोफिल एम-45, 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में छिड़काव करें, जरूरत पड़ने पर 10 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें। ऐसी ही एक बीमारी काली सड़न या ब्लैक रॉट बीमारी भी होती है, जिसमें पत्तियों में काले धब्बे बन जाते हैं, जोकि जीवाणु जनित बीमारी होती है।
इसकी रोकथाम के लिए कॉपर आॅक्सीक्लोराइड 400 ग्राम और स्प्रेक्ट्रोसाइक्लिन 40 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें साथ ही इन दोनों बीमारियों से ग्रसित जो भी पत्तियां हो उन्हें खेत से निकालकर मिट्टी में दबा दें।
गोभी लगने वाले कीड़े
दो मुख्य कीड़े इस समय फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसको तम्बाकू की सुंडी कहते हैं। तंबाकू की सुंडी हल्के मटमैले रंग की होती है। वहीं पत्ता गोभी की सुंडी हरे रंग की होती है, लेकिन उस पर काले धब्बे होते हैं। इन दोनों की विशेषताएं हैं, शुरुआती अवस्था में ये पत्ती को खुरचकर खाते हैं। ऐसे पत्तों को नीचे की तरफ देखे तो झुंड में बहुत सारी सुण्डियां दिखायी देती हैं, इसलिए ऐसे पत्तों को खेत से निकालकर मिट्टी में दबा दें, जिससे ज्यादा तितलियां न बनें।
इनसे बचाव की बात करें तो इन्डोक्साकार्ब प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें। समय रहते अगर किसान ट्रैप (फेरोमोन ट्रैप) लगाते हैं तो तम्बाकू की सुंडी समस्या कम हो जाती है। इसके लिए 13 से 15 ट्रैप को प्रति हेक्टेयर की दर से लगाना होता है। साथ ही अगर आप पछेती गोभी की बुवाई कर रहे हैं तो शुरू से ही कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
गोभी का एक महत्तवपूर्ण कीड़ा है जो कि पत्तों के नीचे की ओर अंडे देता है। हरे रंग की सुंडी पत्तों को खाती है और उनमें छेद कर देती है यदि इसे ना रोका जाए तो 80-90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। शुरूआत में नीम के बीजों का अर्क 40 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर फूल बनने की शुरुआती अवस्था में स्प्रे करें । 10-15 दिनों के अंतराल पर दोबारा स्प्रे करें।
फूल के पूरा विकसित होने पर स्प्रे ना करें। इसके इलावा बी टी घोल 200 ग्राम की स्प्रे रोपाई के बाद 35 वें और 50 वें दिन प्रति एकड़ में करें। हमला अधिक होने पर स्पाइनोसैड 2.5% एस सी 80 मि.ली. को प्रति 150 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
पत्तों के नीचे की ओर सफेद या बादामी रंग के दाने बन जाते हैं। बीमारी कम करने के लिए खेत को साफ रखें और फसली चक्र अपनायें। यदि इस बीमारी का हमला दिखे तो मैटालैक्सिल+मैनकोजेब 2 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर तीन स्प्रे करें।
खेत की तैयारी
लगभग 25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर मिलाएं और 120 नत्रजन 50 से 60 किलोग्राम फास्फोरस, 50 से 60 पोटाश अवश्य दें। साथ ही साथ जो किसान अगेती फूल की खेती कर रहे हैं और उन खेतों में बोरान की कमी दिखाई देती हैं कैल्शियम की कमी दिखाई देती हैं। बोरेक्स 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करते हैं और कैल्शियम के लिए 300 किलोग्राम बुझा चूना प्रति हेक्टेयर की दर से अवश्य दें।