Saturday, June 21, 2025
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सिनेमा में कॅरियर, आसान नहीं हैं सपनों की दुनिया में प्रवेश की राहें

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शायद ही इस सच्चाई से कोई इनकार कर पाए कि सिनेमा अपार ग्लैमर, आकर्षण, फंतासी, पैसा और प्रसिद्धि का डोमेन है। सिनेमा में काम करने की बात जब जुबां पर आती है तो दिल की धड़कन अचानक तेज हो जाती है और पूरा संसार इंद्रधनुष सरीखा सतरंगी प्रतीत होने लगता है। गोया सिनेमा के रास्ते एक ऐसे अद्भूत दुनिया में प्रवेश का रास्ता खुल जाता है जहां सब कुछ जादू टोना जैसा ही अद्भुत और अलौकिक होता है। सिनेमा के कलाकारों का रुपहले परदे पर जो कशिश होती है उसकी आभा से अभिभूत हुए बिना कोई भी नहीं रह सकता है। सिनेमा के बारे में कहा जाता है कि फिल्में बनाना आसान है, अच्छी फिल्में बनाना युद्ध के समान है और एक बहुत अच्छी मूवी बनाना एक चमत्कार से कम नहीं है। इसीलिए सिनेमा की दुनिया में प्रवेश की राहें आसान नहीं हैं। अपार पैसा और पब्लिसिटी वाला यह डोमेन गला काट प्रतियोगिता का होता है जिसमें खुद को स्थापित करने के लिए निरंतर संघर्ष की जरूरत होती है।

सिनेमा में कॅरियर के लिए शुरूआत कहां से करें
झिलमिल सितारों सरीखी सिनेमा की आकर्षक दुनिया में प्रवेश करने के लिए सामान्य रूप से किसी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता की जरूरत नहीं होती है। हाई पब्लिसिटी शो के इस डोमेन में कॅरियर की सफलता व्यक्तिगत शारीरिक सुंदरता और फिट्नस के साथ मानव भावों को जीवंत रूप में अभिव्यक्त करने की कला पर निर्भर करता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि एजुकेशनल क्वालिफिकैशन और प्रोफेशनल ट्रैनिंग की इस विधा में कोई अहमियत नहीं है। देश और विदेश में ऐक्टिंग और इससे रिलेटेड विधाओं में ट्रैनिंग से अभिनय क्षमता में निखार आता है और खुद को इस उद्योग में स्थापित करने में मदद मिलती है।

देश के टॉप ऐक्टिंग और ड्रामा स्कूल
-फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया, पुणे
-नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा, नई दिल्ली
-सत्यजित रे फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टिट्यूट, कोलकाता
-बैरी जॉन ऐक्टिंग स्टूडियो, मुंबई
-ह्विसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई
-रमेश सिप्पी अकादेमी आॅफ सिनेमा एण्ड एंटरटेनमेंट, मुंबई
-अनुपम खेर्स ऐक्टर प्रीपेएरस, मुंबई
-एशियन अकादेमी आॅफ फिल्म एण्ड टेलीविजन, नोएडा, मुंबई, कोलकाता और दिल्ली

होमवर्क है बहुत जरूरी
सिनेमा उद्योग में एंट्री एक कठिन कार्य है। इसमें डायरेक्ट एंट्री का कोई सिस्टमैटिक तरीका नहीं है। कठिन मिहनत के साथ खुद को निम्नांकित क्षेत्रों में तैयार करने की जरूरत होती है जो ऐक्टिंग के बारे में कौशल और प्रत्यक्ष रूप से फीलिंग दिलाने में हेल्प करता है और यही इस उद्योग में प्रवेश का प्लेटफॉर्म भी तैयार करता है-
-एक्टर बनने के लिए शुरूआत स्कूल के दिनों से ही किया जा सकता है। स्कूल थिएटर या कम्यूनिटी या क्लब थिएटर में ऐक्टिंग की शुरूआत से अनिवार्य अनुभव और स्किल्स प्राप्त किया जा सकता है। गर्मी की छुट्टियों में भी थिएटर में रोल प्ले करने से ऐक्टिंग कला को निखारा जा सकता है।
-एक्टिंग की दुनिया में प्रवेश करने के लिए फॉर्मल ट्रैनिंग बहुत आवश्यक होता है जो उम्मीदवार को अभिनय की बेसिक्स की जानकारी देता है। लिहाजा किसी ड्रामा स्कूल या ऐक्टिंग इंस्टिट्यूट में दाखिला लेना आवश्यक माना जाता है। इससे अभिनय का कौशल और अनुभव प्राप्त हो जाता है जो सिनेमा के डोमेन में शुरूआत करने के लिए जरूरी होता है।
-एक्टिंग में बैचलर आॅफ आर्ट्स से लेकर बैचलर आॅफ परफॉरमिंग आर्ट्स, आर्ट्स इन ड्रामा, डिप्लोमा इन एक्टिंग, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन ऐक्टिंग और मास्टर आॅफ आर्ट्स इन एक्टिंग इत्यादि फॉर्मल ट्रेनिंग पाने से अभिनय की कुशलता में निखार आता है। दि नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा नई दिल्ली और फिल्म एण्ड टेलिविजन इंस्टिट्यूट आॅफ इंडिया पुणे दो मुख्य एक्टिंग स्कूल हैं जहां से ऐक्टिंग में फॉर्मल ट्रैनिंग प्राप्त की जा सकती है।
-एक्टिंग में कॅरियर बनाने की शुरुआत करने के लिए एक डेमो रील, पोर्ट्फोलियो या शॉर्ट ऐक्टिंग मूवी बनाना जरूरी होता है। डेमो रील में एक्टिंग के शॉर्ट क्लिप्स होते हैं जिससे उम्मीदवारों के अभिनय क्षमता का पता चलता है। किसी मूवी में किसी कलाकार को साइन करने के पहले फिल्मों के डाइरेक्टर इस प्रकार के डेमो रोल की मांग करते हैं। सच पूछिए तो यह एक रिज्यूम के रूप में कार्य करता है।
-सिनेमा में काम करने के लिए लोकल सिनेमा प्रोडक्शन हाउस में विभिन्न रोल के लिए आॅडिशन देने से भी मदद मिलती है। कैमरा आर्टिस्टस, साउंड आर्टिस्टस, लाइट आर्टिस्टस इत्यादि सेगमेंट्स में काम करने से सिनेमा के विभिन्न क्षेत्रों की बारीकियों का ज्ञान प्राप्त होता है। शुरू में छोटे रोल और एक्स्ट्रा के रूप में रोल करने से आगे का रास्ता तय होता है।
फिल्मी कलाकारों के जीवन और उनके जॉब प्रोफाइल को अच्छी तरह से समझने की जरूरत है। बाहरी आकर्षण से अभिभूत होने की बजाय कठिन मिहनत और संघर्ष के लिए भी खुद को तैयार करना जरूरी होता है।
-अपने अभिनय स्किल और प्रोफेशनल एफिशन्सी को निरंतर निखारने की जरूरत है। इस दिशा में प्रोफेशनल ऐक्टिंग कोर्स काफी हेल्पफूल साबित हो सकता है।
-सिनेमा के कलाकारों, डाइरेक्टर्स, राइटर्स और कास्टिंग डायरेक्टर्स और अन्य प्रोफेशनल्स के साथ संपर्क साधने से नेटवर्क का निर्माण होता है जो टैलेंट के आधार पर रोल दिलाने में भी हेल्प कर सकता है।
-सोशल मीडिया के द्वारा भी सिनेमा के क्षेत्र में रोल पाए जा सकते हैं। इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल खुद के टैलेंट को निखारने के साथ खुद की मार्केटिंग के लिए भी की जा सकती है।
-खुद का एक प्रोफेशनल वेबसाइंट मैंटेन करने से सिनेमा इंडस्ट्री में इक्स्पोजर मिलता है और फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर अपनी जरूरत के हिसाब से उम्मीदवार को सिनेमा में रोल और असाइनमेंट के लिए सिलेक्ट कर सकते हैं।

अनिवार्य कौशल
-संवाद और डायलॉग डेलीवेरी में दक्षता।
-क्रिएटिव थिंकिंग पर मास्टरी।
-काम के लंबे घंटे के लिए मानसिक तैयारी।
-दूसरे कलाकारों के साथ अपने परफॉरमेंस को कोआॅर्डिनेट करने की कला।
-उत्कृष्ट मेमोरी पॉवर ताकि स्क्रिप्ट और डायलॉग को याद रखा जा सके।
-सामान्य रूप से स्मार्ट पर्सलेलिटी। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह अनिवार्य नियम नहीं है लेकिन यह फर्स्ट इम्प्रेशन के रूप में कार्य करता है।
-सिनेमा से संबंधित तकनीकि ज्ञान में कुशलता ताकि सिनेमा में साउंड आर्टिस्ट, कैमरा आर्टिस्ट और लाइट आर्टिस्ट के साथ अच्छी तरह से कोआॅर्डिनेट किया जा सके।

सिनेमा में कॅरियर की शुरुआत निम्न रूप में की जा सकती है-
सिनेमा के एक्टर और एक्ट्रेस, टेलीविजन एक्टर और एक्ट्रेस, थिएटर या मंच कलाकार, एक्स्ट्रा कलाकार, डबिंग आर्टिस्ट आदि।

फिल्मों में जॉब क्या होते हैं?
सिनेमा उद्योग में जॉब्स की प्रकृति विविध प्रकार की होती है। इस उद्योग में किसी सिनेमा के निर्माण में कई प्रोफेशनल्स की अहम भूमिका होती है। यही कारण है कि सिनेमा में अपने कॅरियर के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए एक्टर, कैमरा आॅपरेटर, आॅडियो इंजीनियर, डायरेक्टर, कास्टयूम डिजाइनर, डायरेक्टर, कास्टिंग डायरेक्टर, प्रोडक्शन असिस्टेंट, प्रोड्यूसर, फोटोग्राफर, वीडियो एडिटर इत्यादि कई अन्य अवसर उपलब्ध होते हैं।

सिनेमा के संसार में प्रवेश कर कामयाब होना आसान नहीं होता है। विशेष रूप से न्यूकमर्स के लिए यह कठिन चुनौतियों और भीषण संघर्ष से भरा होता है। इस क्षेत्र में एक बार एंट्री के बाद भी यहां पर खुद को स्थापित करने के लिए काफी मेहनत करनी होती है। हुनर को लगातार निखारना होता है और दूसरों से आगे बढ़ने के लिए खुद को तकनीकी या प्रोफेशनल रूप से विकसित करना होता है। सच पूछिए तो सिनेमा की विधा मुख्य रूप से एक कलाकार की जादुई व्यक्तित्व और मानव भावों को सहज रूप से जीने की कशिश का खेल होता है। जो जितनी शिद्दत और सच्चाई से विभिन्न भावों और उद्गारों को अपने हाव भाव और भाव भंगिमा से जी लेता है वही सुनहरे परदे पर बिकता है और वही दर्शकों के दिल पर राज भी करता है। श्रीप्रकाश शर्मा


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