झिलमिल गौतम
दूसरों के बारे में उनकी इज्जत मान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली कोई ऐसी बात नहीं की जानी चाहिए जिसका उन्हें नुकसान हो, न ही किसी के बारे झूठी अफवाह फैलानी चाहिए। यह सचमुच एक बड़ा अपराध है। किसी के बारे में उसकी पीठ पीछे वही बात कही जानी चाहिए जो हम उसके मुंह के सामने कहने की भी हिम्मत रखते हों। हां, अंदाज भले ही ऐसा हो कि बात कह भी दी जाए और उसे बुरी भी न लगे और न ही इसे वह दिल पर ले।
तो यह फायदा होता है गप्पेबाजी का
कुछ समय पूर्व यूनिवर्सिटी आॅफ मिशिगन द्वारा किए गए एक अध्ययन में इस बात का खुलाया किया गया था कि जो लोग गप्पेबाजी करते हैं, वे लंबा जीवन जीते हैं। इस अध्ययन में यह तथ्य भी सामने आया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लंबे जीवन का राज भी यही है। गप्पे मारने से उनके शरीर में तनाव को कम करने वाला हार्मोन, प्रोजेस्ट्रोन का स्तर बढ़ता है और उन्हें फील गुड होता है। मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस अध्ययन से पहले भी कई और अध्ययन इसी बात का खुलासा कर चुके हैं और यह कोई नई बात नहीं है। हम सभी इसे सदियों से जानते हैं।
व्यक्तित्व के पहलू उजागर हो जाते हैं
अक्सर ऐसा होता है कि हम किसी व्यक्ति को देखकर उसकी पीठ पीछे उसके बारे में बातें करते हैं, जिनमें अच्छी बातें कम और उसके व्यक्तित्व से जुड़े खराब पहलुओं को ज्यादा उजागर करते हैं। उसके बारे में जम कर बुराई करने के बाद हमारे भीतर एक अलग किस्म का अपराबोध विकसित होने लगता है जो एक सहज सामान्य बात है। गलती से अगर वही व्यक्ति हमें सामने नजर आ जाता है तो न जाने ऐसा क्यों हो जाता है कि हमारे भीतर छुपा वह अपराबोध एकाएक एक नए रूप में सामने आता है और हम उसके साथ न केवल अति विन्रम हो जाते हैं, बल्कि खिसियाकर उसकी, उसी के सामने अपने अपराबोध के चलते तारीफ करने लगते हैं। भले ही हम उस व्यक्ति को ज्यादा न जानते हों, लेकिन जाने अंजाने हम उसके प्रति बहुत अच्छे हो जाते हैं। है न फायदा गप्पेबाजी का।
जीवनभर के रिश्ते बन जाते हैं
यह गप्पेबाजी की देवी न जाने कैसे हमारे भीतर इतनी सारी विन्रमता और अच्छापन भर देती है कि हम उसके सामने उसके शुभचिंतक होने का ऐसा नाटक करते हैं कि उसे पता ही नहीं चलता कि हम थोड़ी देर पहले किसी के सामने उसे कैसे पानी पी पीकर कोस रहे थे। अब आप इसे माने या न मानें, लेकिन यह एक बड़ा सच है कि गप्पेबाजी ही वह जरिया है जिसके जरिए आप अपने इर्दगिर्द अपने जैसे लोगों को ढूंढने में तुरंत कामयाब हो जाते हैं। कुछ न पूछो जी, एक दूसरे की बुराई करते करते जीवनभर के रिश्ते बनते जाते हैं और यह गप्पेबाजी के सेशन जैसे जैसे बढ़ते जाते हैं हम अपने जैसे ऐसे लोगों के और करीब और करीब आ जाते हैं।
अब ये गॉसिप ही तो है जो हमें रचनात्मक बनाती है। यह हमें बातूनी और मजाकिया भी बना डालती है। क्योंकि जब तक हम अपनी बात को मनोरंजक अंदाज में किसी को न बताएं तो ऐसी गॉसिप का भला फायदा ही क्या है? गप्पेबाजी कोई ऐरा गैरा शगल नहीं है इसके करने में बहुत मेहनत पड़ती है भई। टेलेंट चाहिए टेलेंट, मजाक नहीं है ये।
कभी पल में तोला तो पल में माशा
गप्पे लड़ाना एक ऐसी एक्टिविटी है जो दूसरों के दिलो दिमाग को जकड़ लेती है और इसके भी कई पायदान होते हैं। कभी पल में तोला तो पल में माशा। यह कभी किसी को वाकपटु साबित करती हैं तो यह गप्पेबाजी ही है जो किसी के इंटलीजेंस को भी दिखाती है। कोई हंसी खेल नहीं हैं, हर आदमी गप्पे नहीं मार सकता, हर किसी के बस की नहीं है। ये बात अलग है कि कभी कभी गप्पेबाजी में किसी की पीठ पीछे बुराई होती है तो कोई सामान्य ज्ञान से भरपूर भी होती है।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि साफ सुथरे मन से यूं ही बतिया लिया जाए। लेकिन गप्पेबाजी करने के दौरान पीठ पीछे अगर किसी की बुराई न की जाए तो किस काम की। दो चार गप्पबाजों के बीच में एंट्री लेने के लिए भी एडमिशन के नियम तो हैं ही। लेकिन इसकी सीमाओं का भी ध्यान रखा जाना जरूरी है। क्योंकि दूसरों के साथ इस तरह की समय गुजारने वाली और खुद को तनावमुक्त करने वाली इस आदत में दूसरों के बारे में उनकी इज्जत मान और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली कोई ऐसी बात नहीं की जानी चाहिए जिसका उन्हें नुकसान हो, न ही किसी के बारे झूठी अफवाह फैलानी चाहिए।
यह न सोचे कि लोग क्या सोचेंगे
यह सचमुच एक बड़ा अपराध है। किसी के बारे में उसकी पीठ पीछे वही बात कही जानी चाहिए जो हम उसके मुंह के सामने कहने की भी हिम्मत रखते हों। हां, अंदाज भले ही ऐसा हो कि बात कह भी दी जाए और उसे बुरी भी न लगे और न ही इसे वह दिल पर ले। किसी के बारे में उसकी पीठ पीछे ऐसी बात भी न कहें कि जब कोई उससे आपके कहे कथन को दोहराये तो आपको उसका सामना करने में शर्मिंदगी महसूस हो यानी सच सिर्फ ऐसा सच हो जो बिल्कुल खुला हो।
…और अगर ऐसी स्थिति पैदा हो ही जाती है तो चतुराई से खुद को फंसता देखकर निपटना आना चाहिए और उसे इस बात को कहना चाहिए कि पीठ पीछे तो कोई किसी को भी बुरा भला कहता है और तुम्हें इस बात को समझना चाहिए कि इसके पीछे कोई न कोई तो वजह है ही। अगर तुम उसके सामने इस बात को सुनने के बाद बुरा न मानों तो वह सामने भी तो कह सकता है। कुल मिलाकर अगर आप हर वक्त ये सोचोगे कि हाय हाय लोग क्या सोचेंगे तो फिर सोचो कि लोग क्या सोचेंगे?