Sunday, May 18, 2025
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किसानों के महानायक चौधरी चरण सिंह का जानिए जीवन सफर

जनवाणी डेस्क समाचार | 

आज देशभर में किसान दिवस मनाया जा रहा है। इतिहास के पन्नों में दर्ज यह दिन कई तरह के उतार चढ़ाव से भरा है। इस दिन को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह की जयंती के रुप में मनाया जाता है। आज किसानों के सर्वमान्य नेता चौधरी चरण सिंह की जयंती हैं। जिन्होंने किसानों के हित में काफ़ी काम किया था। साथ ही किसानों से जुड़े कई मुद्दों पर आवाज उठाई। किसान दिवस याद दिलाता है कि किसान देश का अन्नदाता है और उसकी हर एक समस्या को दूर करना पूरे देश का दायित्व है। चौधरी चरण सिंह एक ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेता हुआ करते थे। वह राजनीति में भाई-भतीजावाद, जातिवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। चौधरी चरण सिंह का जितना योगदान किसानों के लिए रहा, उतना ही राजनीति में भी रहा।

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चौधरी चरण सिंह का प्रारम्भिक जीवन

किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को हुआ। वह यूपी के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में पैदा हुए। उनके पिता एक मध्यम वर्गीय किसान थे। उन्होंने साल 1923 में स्नातक औऱ साल 1925 में स्नातकोत्तर की डिग्री ली। इसके बाद कानून की पढ़ाई करके गाजियाबाद में वकालत शुरु की। सन् 1929 में वह मेरठ आकर रहने लगे और बाद में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए।

स्वतंत्रता सेनानी बनने का सफर

भारत में आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था, तो नौजवान चौधरी चरण सिंह भी कब पीछे रहने वाले थे। वो आजादी के संघर्ष में शामिल हो गए। वह साल 1929 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। साल 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ। इस आंदोलन में नमक बनाकर कानून तोड़ा गया। उन्होंने गांधी जी का समर्थन दिया और गाजियाबाद में बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाया। इस आंदोलन में वह 6 महीने के लिए जेल भी गए। इतना ही नहीं, उन्हें साल 1940 में सत्याग्रह आंदोलन के दौरान भी गिरफ्तार किया गया। साल 1942 में भारत छोड़ो का आगाज हुआ।

जिसमें गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। इस दौरान चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के गांवों में गुप्त क्रांतिकारी संगठनों का संचालन किया।

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चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक सफर

आजादी के बाद चौधरी चरण सिंह की छवि एक किसान नेता के रुप में उभरी थी। उन्हें उत्तर प्रदेश मन्त्रिमण्डल में स्वायत शासन और स्वास्थ्य विभाग में सचिव का पद दिया गया। चौधरी चरण सिंह ने किसानों के हित में पहला क्रान्तिकारी कदम साल 1953 में उठाया, जब चकबन्दी अधिनियम लागू हुआ। इसी साल उत्तर प्रदेश में भूमि संरक्षण कानून भी पारित कराया। वह चौधरी चरण सिंह ही थी, जिन्होंने कृषि आपूर्ति संस्थानों की योजना, सस्ती खाद, बीज आदि की सुविधा दिलाई।

चौधरी चरण सिंह पहली बार 3 अप्रैल, 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद उन्होंने 17 अप्रैल, 1968 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनकी पार्टी को मध्यावधि चुनाव में अच्छी सफलता मिली। जिसके बाद उन्हें वह दोबारा 17 फ़रवरी, 1970 को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। उन्हें केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बनने का मौका भी मिला, इस दौरान उन्होंने मंडल आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। साल 1979 में उन्हें देश के वित्त मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप कार्य किया। तब उन्होंने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य भी मिला। वह 28 जुलाई, 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने गरीबी मिटाने और नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास किया। उन्होंने देशवासियों को संदेश दिया था कि ‘राष्ट्र तभी सम्पन्न हो सकता है, जब उसके ग्रामीण क्षेत्र की प्रगति होगी और ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति अधिक हो।

चौधरी चरण सिंह का निधन

चौधरी चरण सिंह एक खुली किताब की तरह थे। उन्होंने अपने जीवन में एक ईमानदार नेता बनकर लोगों की सेवा की। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए गुजारा। चौधरी चरण सिंह एक जुझारू, कर्मठ और किसान नेता थे। जिनका निधन 29 मई, 1987 को हुआ, लेकिन आज भी उनके योगदान को पूरा देश याद करता है और हमेशा करता रहेगा।

चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित श्री सिंह ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

वे सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।

सीबी गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। श्रीमती सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।

कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।

श्री चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की सेवा की एवं उनकी ख्याति एक ऐसे कड़क नेता के रूप में हो गई थी जो प्रशासन में अक्षमता, भाई-भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। प्रतिभाशाली सांसद एवं व्यवहारवादी श्री चरण सिंह अपने वाक्पटुता एवं दृढ़ विश्वास के लिए जाने जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।

देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले श्री चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला।

श्री चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।

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