फलों, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए कई तरह के रसायन का छिड़काव किया जाता है, लेकिन इस कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है। कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, आॅटिज्म, डायबिटीज, परकिंसन, अल्जाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह का कैंसर होने का खतरा रहता है।
कई मरीजों के खून की जांच की तो सामने आया कि उनके खून में अल्फा और बीटा एंडोसल्फन, डीडीटी और डीडीई, डिल्ड्रिन, एल्ड्रिन, और अल्फा, बीटा, और गामा एचसीएच जैसे कई खतरनाक कीटनाशकों की मात्रा मिली। मरीजों में प्री मैच्योर बेबी, किडनी में इंफेक्शन, कई तरह के कैंसर जैसी बीमारियों की वजह कीटनाशक था, रिसर्च के प्रमुख डॉ. अशोक कुमार त्रिपाठी ने आगे बताया, डीडीटी, एंडोसल्फान जैसे कई कीटनाशक लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं।
तमाम हादसों के बाद भारत में 2013 में एडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि बाकी दुनिया के कई देशों में ये पहले से प्रतिबंधित था। ऐसे कीटनाशक बिक रहे हैं, जो दूसरे एक या एक से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित हैं भारत में अब बेनोमिल, कार्बाराइल, डायाजिनोन, फेनारिमोल, फेंथियॉन, लिनुरान, मिथॉक्सी एथाइल मरकरी क्लोराइड, थियोमेटॉन, मेथिल पार्थियॉन, सोडियम सायनाइड, ट्राइडीमार्फ और ट्राईफ्लूरालिम की बिक्री, निर्माण और निर्यात-आयात नहीं होगा। जबकि 31 दिसंबर 2020 के बाद ट्रायाजोफस, ट्राइक्लोरोफोन, एलाचलोर, डिचलोरवस, फोरेट, फोस्फामिडॉन को देश में प्रतिबंधित कर दिया जाएगा। भारत में 100 से ज्यादा ऐसे कीटनाशक बिक रहे हैं, जो दूसरे एक या एक से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित हैं।
भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक देश है। विश्व भर में प्रति वर्ष लगभग 20 लाख टन कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। टॉक्सिक लिंक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 108 टन सब्जियों को बचाने के लिए 6000 टन कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है। जबकि कुल कीटनाशकों में से करीब 60 फीसदी का उपयोग कपास में होता। वर्ष 2018 के बाद यूरोपीय संघ के 28 देशों में तितलियों और मधुमक्खियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटनाशकों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था। यूरोपीय देश इससे पहले भी कई कीटनाशकों का इस्तेमाल रुकवा चुके हैं, जो भारत में धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाते हैं।