अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड टंज्ंप आगामी 20 जनवरी को सत्ता की कमान संभाल लेंगे। लेकिन सत्ता संभालने से पहले ही उन्होंने जिस तरह चीन के साथ-साथ कनाडा एवं मैक्सिको पर टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया है उससे हलचल मचना लाजिमी है। चीन की पेशानी पर बल आन पड़ा है वहीं कनाडा-मैक्सिको की हलक सूखने लगी है। हालांकि अमेरिकी चुनान के दौरान ट्रंप ने वादा किया था कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो रुस-यूक्रेन एवं मिडिल ईस्ट युद्ध रोकना उनकी शीर्ष प्राथमिकता में होगा। लेकिन टंÑप के बारे में सच ही कहा जाता है कि उनका जो बाएं हाथ काम करता है, दाएं को पता तक नहीं चलता। उन्होंने इस कहावत को पुन: चरितार्थ किया है। वैसे भी गौर करें तो ट्रंप की ग्लोबल नीति में नेशन फर्स्ट शीर्ष पर होता है। उन्होंने इसी नीति पर आगे बढ़ते हुए चीनी सामानों पर किसी भी अतिरिक्त टैरिफ के इतर 10 फीसदी तथा कनाडा एवं मैक्सिकों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है।
उल्लेखनीय है कि ज्यादतर उत्पाद जो दोनों देश एकदूसरे को बेचते हैं वह टैरिफ के अंतरर्गत ही आते हैं। इनमें से चीन से अमेरिका के आयात का 66.4 फीसदी और अमेरिका से चीन के आयात का 58.3 फीसदी उत्पाद टैरिफ के अंतर्गत आता है। अगर अमेरिका चीन पर 10 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ बढ़ाता है तो नि:संदेह इससे चीन का नुकसान तय है। इसीलिए चीन ने ट्रंप के इस ऐलान को अपने खिलाफ एक नया व्यापार युद्ध करार दिया है। लेकिन उसने यह भी कहा है कि इस व्यापार युद्ध में अंतत: उसी की ही जीत होगी। यहां ध्यान देना होगा कि अमेरिका के वाणिज्य मंत्रालय ने ट्रंप की नीति को धार देने के लिए निर्यात नियंत्रण पहल का विस्तार करते हुए चीनी कंपनियों पर लगाम कसने की तैयारी शुरू कर दी है। इस पहल से कंप्युटर, चिप तथा साफ्टवेयर बनाने वाली कई कंपनियों का प्रभावित होना तय है।
उल्लेखनीय है कि इस कार्य में दक्ष ‘इकाई सूची’ में शामिल 140 कंपनियों में से तकरीबन सभी कंपनियां चीन में ही स्थित हैं। इसके अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर में चीनी स्वामित्व वाली कुछ कंपनियों को भी इसमें शामिल किया गया है। इन कंपनियों के ‘इकाई सूची’ में शामिल होने का तात्पर्य यह है कि इनके साथ व्यापार करने की कोशिश करने वाली किसी भी अमेरिकी कंपनी को निर्यात लाइसेंस देने से इंकार कर दिया जाएगा। रणनीति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि संशोधित नियम को अमेरिकी संघीय रजिस्टार की वेबसाइट पर भी साझा कर दिया गया है। यह संशोधित नियम चीन को उच्च बैंडविड्थ मेमोरी चिप के निर्यात को भी प्रभावित करेगा। इससे चीन को भारी आर्थिक नुकसान होने की संभावना बढ़ गई है। ट्रंप ने तर्क दिया है कि उन्होंने टैरिफ लगाने का निर्णय इसलिए किया है कि बीजिंग नशीले पदार्थों में इस्तेमाल होने वाले चीनी रसायनों की तस्करी को रोकने के लिए और जरुरी कदम उठाने को बाध्य होगा। हालांकि चीन का तर्क है कि वह अमेरिका के साथ अपने अच्छे रिश्तों को बनाए रखने के लिए ड्रग्स को लेकर कठोर कदम उठा रहा है। उसने ट्रंप को सुझाव दिया है कि वह अपनी नीति पर पुनर्विचार करें। लेकिन ट्रंप चीन के इस सुझाव-सलाह से सहमत होंगे कहना मुश्किल है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका के संशोधित नियम का कड़ा विरोध किया है। उसने अमेरिका को चेतावनी दी है कि वह अपने व्यापारिक अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है।
अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। अमेरिका की जीडीपी 25 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। वहीं दूसरे नंबर पर चीन की कुल जीडीपी तकरीबन 19 खरब डॉलर है। वर्ष 2023 में चीन से अमेरिका का आयात तकरीबन 450 बिलियन डॉलर था। चीन भी अमेरिका का माल और सेवा निर्यात दोनों के लिए बड़ा बाजार है। वर्ष 2023 में चीन अमेरिका का तीसरा सबसे बड़ा माल निर्यात बाजार था। अगर दोनों देशों के बीच आर्थिक कारोबार बेपटरी होता है तो उसका फायदा भारत को मिल सकता है। चीन में निवेश करने वाले अमेरिकी निवेशकों के अलावा अन्य देशों के निवेशक भी भारत की ओर रुख कर सकते हैं। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को देखें तो भारत के लिए यह एक बेहतरीन अवसर है। अगर अमेरिका चीन के विकास और तकनीकी प्रगति के लिए खर्च को सीमित करने के लिए चीनी वस्तुओं पर कड़ा निर्यात नियंत्रण और टैरिफ लगाता है तो इससे ग्लोबल चेन प्रभावित होनी तय है। ऐसे में ग्लोबल आपूर्ति के निमित्त भारत एक बड़ा खिलाड़ी बनकर उभर सकता है।
ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका में चीन से खरीदारी को हतोत्साहित करने की जो प्रक्रिया शुरू हुई और जिस तरह भारत के उत्पादों पर भरोसा बढ़ता गया वह आज परवान पर है। आंकड़ों पर गौर करें तो गत वर्ष भारत ने अमेरिका को 82 अरब डॉलर से अधिक का निर्यात किया। अगर अमेरिकी निवेशक भारत की ओर रुख करते हैं और अमेरिका में चीन के हिस्से का 5 फीसदी व्यापार भी भारत के हिस्से में आ जाता है तो सच मानिए भारत को 20 से 25 फीसदी अतिरिक्त व्यापार मिल सकता है। भारत के उत्पाद निर्यात में 5 फीसदी का जो इजाफा होगा सो अलग से। चूंकि भारत के साथ डोनाल्ड ट्रंप के रिश्ते बेहतर हैं और दूसरी ओर भारत दुनिया के निवेशकों के लिए सबसे अनुकूल और सुरक्षित बाजार बनता जा रहा है ऐसे में लाजिमी है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का सर्वाधिक फायदा भारत को ही होगा।