वैश्विक आंकलन करने वाली संस्थाओं के अनुसार भारत आज विश्व की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति है। अनुमान यह भी लगाया जा रहा है कि शीघ्र ही यह जापान को पछाड़ कर चौथी महाशक्ति और तीन साल के भीतर संभवत: जर्मनी को भी पछाड़ कर तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन सकता है। दुनिया भारत की इस आर्थिक छलांग को कौतूहल भरी नजरों से परख रही है। इस आर्थिक उपलब्धि से कई तरह के वैश्विक स्तर की सुविधाएं और सहूलियतें भी देश को मिल रही हैं। भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में भारत ने जिस तरह की राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक मजबूती दिखाई है, उसके अपने निहितार्थ हैं।
लेकिन विकास को भी अपनी कीमत चुकानी पड़ती है। भारत के पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल के फलस्वरुप अस्थिरता है और ऐसे में ये देश भारत को भी हर तरह से अस्थिर करने की कोशिशों में लगे रहते हैं। इस कड़ी में सबसे ताजा मामला बांग्लादेश का है। हालिया तख्तापलट के बाद से वहां पाकिस्तान के प्रभाव वाले कट्टरपंथियों का तेजी से उभार है और वे न सिर्फ भारत पर निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सौंपने का मूर्खतापूर्ण दबाव बना रहे हैं, बल्कि मानो इस मांग का दबाव बढ़ाने के लिए वे वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओं का बहुविधि उत्पीड़न भी कर रहे हैं। दशकों से चला आ रहा भारत-बांग्लादेश का व्यापार भी गिरावट पर है। बांग्लादेश के जन्म से लेकर आज तक दुश्मन राष्ट्र के तौर पर घोषित पाकिस्तान का अब वहां खुला दखल हो गया है।
दूसरा पड़ोसी पाकिस्तान है जो आज की तारीख में एक ‘फेल्ड नेशन’ कहा जा रहा है और जिसकी 3323 किमी लम्बी सीमा भारत से लगती है। कर्ज के दलदल में आकंठ डूबा पाकिस्तान आज न सिर्फ हाहाकारी महंगाई बल्कि चौपट हो चुकी अर्थ व्यवस्था में फंस चुका है। पाकिस्तान पर मई 2024 तक लगभग 680 खरब पाकिस्तानी रुपये या 244 अरब डॉलर का बाहरी कर्ज बताया जाता है। इसके अलावा वर्ष 2013 से चीन ने पाकिस्तान को अपने शिकंजे में लेना शुरू किया जब उसने अरब सागर में सामरिक महत्त्व वाले पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का अधिग्रहण कर लिया। दक्षिण एशिया में चीन की अति महत्त्वाकांक्षी योजना वन बेल्ट, वन रोड के तहत पाकिस्तान इकोनॉकिक कॉरीडोर या संक्षेप में सीपीईसी एक उपक्रम है जिसमें चीन वहां ढांचागत, ऊर्जा तथा औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करेगा और अब तक लगभग 65 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश कर चुका है।
ध्यान रखने की बात है कि पाकिस्तान को मदद करने के नाम पर चीन ने जो पैसा वहां लगाया है, उसका 98 प्रतिशत से अधिक कर्ज के रूप में है! अभी सितम्बर 2024 में आईएमएफ से पाकिस्तान कोे 07 बिलियन डॉलर के बेलआउट कर्ज को दिलवाने में भी चीन का ही हाथ था अन्यथा आईएमएफ ने तो इनकार ही कर दिया था। चौपट अर्थव्यवस्था के साथ ही साथ पाकिस्तान में विकट राजनीतिक रस्साकशी है और वहां घरेलू आतंकवाद की नर्सरी भी फल-फूल रही है और आम लोगों के अलावा वहां काम कर रहे चाइनीज अधिकारी व कर्मचारी भी निशाना बनाये जा रहे हैं। रही सही कसर इधर अफगानिस्तान के तालिबानियों ने हमला कर पूरी कर दी है।
आजादी से पूर्व भारत का ही हिस्सा रहे और अब पृथक राष्ट्र बांग्लादेश के राजनीतिक हालात भारत के लिये चिन्ता का कारण बनते जा रहे हैं। अगस्त 2024 में वहां हुए तख्तापलट के बाद वजूद में आया वहां का निजाम पाकिस्तान की राह पर चल निकला है और खुलकर भारत का विरोध कर रहा है। दशकों से परस्पर सहयोग, व्यापार और सुरक्षा को लेकर जो द्विपक्षीय सम्बन्ध भारत बांग्लादेश के बने थे वे अब समाप्तप्राय हैं। सबसे बड़ी चिंता सीमा को लेकर है। भारत के पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, मिजोरम और मेघालय राज्यों की लगभग 4097 किमी लंबी सीमा बांग्लादेश से लगी है और यह बहुत सी जगहों पर सुरक्षित भी नहीं है। शेख हसीना के सत्ता में रहने तक भारत के लिए सीमायें ज्यादा चिन्ता की बात नहीं थीं लेकिन उनके अपदस्थ होने के बाद अब यह चिन्ता का विषय है। जिस पाकिस्तान द्वारा किए गए नरसंहार व उत्पीड़न के विरोध में भारत की सैन्य मदद से बॉग्लादेश का जन्म हुआ था, उसी पाकिस्तान से अब वर्तमान बांग्लादेश ने व्यापार और राजनीतिक मेल मिलाप शुरू कर दिया है और अब वहां चीन का सीधा दखल भी हो गया है। बांग्लादेश में अगर राजनीतिक परिस्थितियां न बदलीं तो चीन की धमक भारत के इस बार्डर पर भी सुनाई पड़ने लगेगी।
तीसरे पड़ोसी चीन की 3488 किमी लम्बी सीमा भारत से लगती है। चीन सिर्फ पड़ोसी होने के कारण ही नहीं कई अन्य प्रकार से भी भारत के लिए चैलेन्ज रहा है। चीन से भारत का पुराना सीमा विवाद चला आ रहा है और भारत की आर्थिक और तकनीकी प्रगति से वह चिढ़ता है। यही कारण है कि भारत के सभी पड़ोसी देशों यथा नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में वह आर्थिक और राजनीतिक दखल देकर भारत को घेरना चाहता है। चिंता की बात है कि वह इसमें सफल होता भी दिख रहा है। भारत का एक और पड़ोसी नेपाल है जहां पिछले कुछ वर्षों से चीन रणनीतिक रुप से दखल दे रहा है। नेपाल के नये प्रधानमन्त्री केपी शर्मा ओली के पदस्थ होने के बाद से उनकी चीन से नजदीकियां और बढ़ी है तथा भारत का नेपाल पर पारम्परिक प्रभाव घटता दिख रहा है। नेपाल और भारत की 1850 किमी लम्बी सीमा है और दोनों देशों के बीच मुक्त आवागमन है। नेपाली अभी भी शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार के लिये भारत को सुलभ मानते हैं।
यही हाल श्रीलंका का भी है। लगभग 400 किमी लम्बी सीमा वाले श्रीलंका में वर्ष 2022 में हुए राजनीतिक प्रदर्शन और तख्तापलट के बाद यद्यपि अभी राजनीतिक स्थिरता है लेकिन आर्थिक रुप से कमजोर श्रीलंका को भी चीन अपनी गिरफ्त में धीरे-धीरे ले रहा है। हिन्द महासागर में श्रीलंका की महत्त्वपूर्ण भौगोलिक व सामरिक स्थिति को देखते हुए चीन ने वहां के हम्बनटोटा बन्दरगाह तथा कोलम्बो पोर्ट सिटी को एक तरह से अधिगृहीत ही कर लिया है। आरोप तो यह भी है श्रीलंका में वर्ष 2015 में हुए चुनाव में चीन ने तत्कालीन राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे के पक्ष में अप्रत्यक्ष तौर पर बहुत धन खर्च किया था।
भारत के पड़ोसी देशों की अशांत स्थिति चिन्ताजनक है। ऐसे में निश्चित तौर पर सतर्क कूटनीति, आधुनिकतम रक्षा तैयारियां और व्यापार तथा अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करके ही अपनी स्थिति मजबूत की जा सकती है। अमेरिका में इसी माह नेतृत्व परिवर्तन होने जा रहा है। नये राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से प्रधानमन्त्री मोदी के सम्बन्ध पहले से ही अच्छे रहे हैं। इस सम्बन्ध से कूटनीतिक फायदे लिये जा सकते हैं। अमेरिका का सार्थक हस्तक्षेप पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश में स्थितियां बदल सकता है।