Saturday, May 17, 2025
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नेताओं की भीड़ में गुम आम आदमी

Ravivani 34

MOHAN VARMA हमारे देश मे जिस तरह प्रजातंत्र फला फूला है और आजादी के बाद से अब तक जनता का,जनता पर, जनता द्वारा किया जाने वाला तंत्र विकसित हुआ है, उसमें आम जनता व्यवस्था में ऐसे घुल गई है जैसे पानी मे नमक या दूध में शहर। राजनीति की चाशनी में डूबी मक्खियों की तरह हर कोई राजनीति में डूबा नजर आने लगा है। ऐसे में नेता ज्यादा आम आदमी कम नजर आते हैं।

विकास की अपार संभावना और कम समय मे ज्यादा फलने फूलने के अवसर राजनीति के अलावा दूसरे किसी क्षेत्र में नहीं है। न पढ़ने लिखने की योग्यता और न उम्र की कोई सीमा। किसी का दामन थाम कर जय जय कार करने की योग्यता और हुनर चाहिए बस। उगते सूरज को सलाम करने का हुनर होना चाहिए। और इसीलिए आज हमारे चारों तरफ आम आदमी कम नेता ज्यादा दिखाई देते हैं। पार्टियां गली के लड़कों को मोहल्ले स्तर का पदाधिकारी बना देती हैं। लड़का भविष्य में विधायक सांसद बनने के ख्वाब देखने लगता है। मोहल्ले का आम से खास लड़का बन जाता है।
बीते सालों में घर के बुजुर्गों की, समाज की और देश की सेवा करते और राजनीति के धुरंधरों को रात दिन सेवा करते देखकर आम आदमी को अब ये अच्छी तरह समझ मे आने लगा है कि सेवा और मेवा एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना मेवा कैसी सेवा। राजनीति में अपार संभावनाएं हैं। जहां सेवा और मेवा दोनों का ही अवसर और स्वाद मौजूद है। यहां आम को खास बनने में देर नही लगती।

इन दिनों सब तरफ राजनैतिक दलों की भरमार और अभिव्यक्ति की आजादी है। ‘हाथ’ में ‘झाड़’ू लिए सिर पर टोपी लगाए ‘सायकिल’ सवार हो या कीचड़ में ‘कमल’ की तरह खिले फूल या मदमस्त ‘हाथी’ हों इनके सामने सब बेमतलब हैं। आम आदमी तो सिर्फ आम की तरह सिर्फ चूसा जाता है या फिर वोटिंग के समय एक दिन का बादशाह होता है। बाकी तो सब जानते हैं। पूरे पांच साल नेताओं को कोसता रहता है।

अब जबकि दलों के दलदल में बड़े बड़े सेवाभावी देश की सेवा करने में मशगूल हैं और सेवा से उपजा मेवा पाकर धन्य हो रहे हैं, किसी ऐसे ही स्वनामधन्य का दामन थामकर राजनीति की नाव से जीवन वैतरणी पार करने में क्या बुराई है। संगठनों में ए से लेकर जेड तक कितने पद, कितने प्रकोष्ठ,कितने अवसर हैं। अवसर देखकर किसी का दामन थामकर किसी दल के दलदल में उतर ही तो जाना है। करो सेवा पाओ मेवा। राजनीति का सूत्र वाक्य है-तुम भी खाओ,हम भी खाएं-मिलजुलकर ये देश चलाएं। शायद इसीलिए अब नेता ज्यादा आम आदमी कम नजर आते हैं। जो जो भी राजनीति की नाव में सवार हो जाता है वो आम से खास हो जाता है। फिर लोग चाहें कटाक्ष करें-आम के आम गुठलियों के दाम। दूसरों की परवाह किये बगैर फिर पहले का आम आदमी और अब का नेता, गुठलियों की कीमत भी समझ जाता है और ये भी कि आम का रस कैसे निकालना है। यह भी आम कैसे खाया जाता है।

देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में सक्रिय होकर सेवा के लिए राजनीति बहुत जरूरी है। सिर्फ अपने व्यवसाय, नौकरी, मित्रों, सामाजिक संगठनों में राजनीति करके घात प्रतिघात करके ही आम से खास नहीं हुआ जा सकता। माना कि ये पहली सीढ़ी है मगर फिर भी दायरे को विस्तृत करना होगा। सेवा के बदले मेवा की अपार संभावनाओं वाले इस क्षेत्र में एक बार कूद कर तो देखिए आम से खास बनने में देर नही लगेगी। आम रहे तो लोग रस निचोड़ लेंगे और चूसकर फेंकने में देर नहीं करेंगे। तो फिर क्या सोचा है आपने…??

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