उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की जोड़ी 2024 के लोकसभा चुनाव में हिट रही। उत्तरप्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 37 सीट सपा और 6 सीट कांग्रेस जीतने में कामयाब रही। राहुल-अखिलेश की जोड़ी के आगे भाजपा की एक नहीं चली और 62 से घटकर 33 पर आ गई। बाद में अपनी संख्याबल के जोर पर राहुल गाँधी लोकसभा में विरोधी दल के नेता बन गए । राहुल गांधी का विपक्ष का नेता बनना ऐसी बात है जिसकी अंदाजा पहले से था। बीते दो चुनावों में कांग्रेस के पास संसद का 10 फीसदी सीट शेयर (54 सीट) भी नहीं रहा था। ऐसे में कांग्रेस सदन में विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी दावेदारी पेश ही नहीं कर पाई थी। 2014 में कांग्रेस के पास 44 सीटें थीं और 2019 में 52 सीटें थीं। इस बार कांग्रेस के पास 99 सीटें हैं। राहुल गांधी का विपक्ष का नेता बनना ऐसी बात है, जिसकी अंदाजा पहले से था। जब चार जून को चुनाव के नतीजे आए तो उस वक़्त ही कांग्रेस मुख्यालय- 24 अकबर रोड पर कांग्रेस के समर्थक भी कहने लगे थे-इस बार संसद में राहुल गांधी पूरे विपक्ष की आवाज बनेंगे। अब पहली बार राहुल गांधी ने संसद में संवैधानिक पद लिया है।
सपा भी 2024 के नतीजे के बाद देशभर में अपनी पार्टी के विस्तार करने की दिशा में लगी है। वहीं समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव भी महाराष्ट्र और हरियाणा में होने विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनकर सियासी रणभूमि में उतरने का प्लान बना रहे है लेकिन कांग्रेस क्या उसके लिए सीटें देगी, यह बड़ा सवाल है। सपा महाराष्ट्र में 10, हरियाणा में पांच सीटें मांग रही है, जिसके बदले उत्तरप्रदेश में उपचुनाव और 2027 में सीट देने का प्लान बनाया है। सपा नेतृत्व ने भविष्य के लिए कांग्रेस को अपना फलसफा भी समझा दिया है-एक हाथ दो, दूसरे हाथ लोह्ण। ऐसे में साफ है कि कांग्रेस अगर सपा को सीटें नहीं देती है तो फिर उत्तरप्रदेश में वह सीटें नहीं देगी।
हालांकि, राहुल गांधी की कोशिश सपा के साथ सियासी बैलेंस बनाए रखने की है जिसे लेकर अखिलेश यादव के साथ संसद से लेकर सोशल मीडिया तक पर राजनीतिक केमिस्ट्री बनाए रख रहे हैं । इसकी पीछे वजह यह है कि उत्तरप्रदेश में जिस तरह चुनावी नतीजे इंडिया गठबंधन के पक्ष में आए हैं, उसके चलते ही भाजपा बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई है। ऐसे में भाजपा की कोशिश सपा-कांग्रेस की दोस्ती में दरार डालने की है तो दूसरी तरफ सपा और कांग्रेस सूबे में अपने-अपने सियासी आधार को बढ़ाना चाहते हैं . राहुल गांधी की कोशिश उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बिखरे हुए वोट बैंक को एक बार फिर से जोड़ने की है।
राहुल गांधी को 2024 के चुनाव में काफी हद तक सफलता मिलती दिखी है। कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक एक दौर में दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण हुआ करता था। कांग्रेस इन्हीं तीनों के सहारे उत्तरप्रदेश में लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रही लेकिन नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन और सामाजिक न्याय की पॉलिटिक्स ने उसके समीकरण को बिगाड़ कर रख दिया। साढ़े तीन दशक से कांग्रेस के लिए सत्ता का वनवास बना हुआ है लेकिन 2024 के चुनाव परिणाम ने उसके लिए एक राह दिखा दी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का एकमुश्त वोट इंडिया गठबंधन को मिलना और संविधान वाले मुद्दे पर दलित समुदाय के झुकाव ने कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में फिर से खड़े होने की उम्मीद जगाई है। उत्तरप्रदेश में 2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 2.33 फीसदी वोट मिले थे लेकिन दो साल बाद ही 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 6.39 फीसदी पर पहुंच गए। कांग्रेस का सियासी बेस उत्तरप्रदेश में बन जाने के चलते ही राहुल गांधी एक्टिव हैं और दोबारा से कांग्रेस को खड़े करने का प्लान है।
राहुल की सक्रियता से सियासी दलों की बेचैनी बढ़नी लाजमी है क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा जिस सियासी जमीन पर खड़ी नजर आ रही है, वो कभी कांग्रेस की हुआ करती थी। बाबरी विध्वंस के बाद मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से दूर होकर सपा के साथ चला गया था। इसके बाद से मुस्लिमों का बड़ा तबका सपा से जुड़ा हुआ है लेकिन राहुल गांधी के ह्यभारत जोड़ो यात्राह्ण के बाद से कांग्रेस के लिए मुस्लिमों का दिल पसीजा है। राहुल गांधी मुसलमानों के मुद्दे पर मुखर नजर आते हैं। इसी का नतीजा है कि 2024 में मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त वोट किया है।
2024 के चुनाव में सपा ने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश की 80 में से 17 सीटें दी थीं, ये सीटें ऐसी थीं जहां पर 40 साल से कांग्रेस को जीत नहीं मिल सकी थी। लोकसभा चुनाव नतीजे के बाद स्थिति बदल गई है और कांग्रेस अपने सियासी आधार को बढ़ाने में जुटी है। कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अगस्त के महीने से अपना सियासी अभियान शुरू करने जा रही है और 2027 के लोकसभा चुनाव की तैयारी है। ऐसे में कांग्रेस और सपा की दोस्ती में सहारनपुर और रायबरेली जैसे जिले की विधानसभा सीट का बंटवारा सियासी बाधा बन सकती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली लोकसभा क्षेत्र की पांच सीटों में से चार सीटें सपा जीतने में कामयाब रही थी और एक सीट पर मामूली वोटों से हार गई थी।
अब रायबरेली से राहुल गांधी के सांसद बनने और उनके ताबड़तोड़ दौरे ने कांग्रेस कार्यकतार्ओं को उत्साह से भर दिया है और 2027 में कांग्रेस सीटों की दावेदारी कर सकती है। ऐसे में सपा क्या अपनी जीती हुई सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ेगी। इसके अलावा सहारनपुर में जिस तरह से इमरान मसूद सांसद बने, जिसके बाद से सपा के मुस्लिम नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है। सपा के मुस्लिम नेताओं के साथ इमरान मसूद के छत्तीस के आंकड़े हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर अड़चन आ सकती है और कांग्रेस के साथ सीट बंटवारा आसान नहीं होगा।
लोकसभा चुनाव के चलते 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। कांग्रेस उपचुनाव में तीन से चार सीटें मांग रही है जबकि सपा सिर्फ दो सीटें ही छोड़ने के लिए तैयार है, लेकिन उसके लिए शर्त लगा दिया है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में उसे सीट दें। ऐसे में अखिलेश यादव और राहुल की दोस्ती कितने दिनों तक उत्तर प्रदेश में चल पाएगी क्योंकि दोनों ही दलों का वोट बैंक एक ही है। सपा मुस्लिम वोट पर अपनी पकड़ हर हाल में बनाए रखना चाहती है जबकि कांग्रेस मुस्लिम परस्त बनने के लिए बेताब है।
कई दशकों से उत्तरप्रदेश की राजनीति को कवर करने वाले वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि लोकसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद दोनों दल एकजुटता का प्रदर्शन करते नजर आ रहे हैं लेकिन लोकसभा में छह सीट जीतने के बाद कांग्रेस को संजीवनी मिल गई है। इस कारण वह भी उत्तरप्रदेश में सपा के बराबर की राजनीति करती नजर आएगी।