प्रकृति से छेड़छाड़ का ही नतीजा है कि हम मौसम की मार झेलने को विवश हैं। प्रकृति व पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए जाने के कारण ही मौसम में लगातार बदलाव आ रहा है। असमय बारिश, आंधी व ओलावृष्टि इसी का संकेत है। मौसम विज्ञानियों व विशेषज्ञों के अनुसार, मौसम में तेजी से बदलाव के कारण स्थिति भयावह होती जा रही है। उनका कहना है कि यदि हम नहीं सुधरे और इसी तरह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करते रहे तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। इस साल सितंबर में भी भारी बारिश हो रही है। पिछले कुछ सालों से ऐसे हालात पैदा हो रहें हैं, जब असमय भारी बारिश चिंता का कारण बन रही है। ग्लोबल वार्मिंग और अन्य कारणों से वैश्विक स्तर पर हो रहे जलवायु परिवर्तन का असर पिछले काफी समय से दिखाई पड़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका असर मौसम चक्र पर भी पड़ने लगा है। दरअसल, कई सालों बाद ऐसा पहली बार हुआ है, जब सितंबर महीने में इतनी अधिक बारिश हुई है, जबकि यह मानसून की विदाई का समय होता है। यह अलग बात है कि पिछले साल भी सितंबर महीने में रिकॉर्डतोड़ बारिश हुई थी, लेकिन सितंबर के मध्य में। यह अलग बात है कि पिछले साल सितंबर महीने में बारिश के कई रिकॉर्ड टूटे थे, ऐसे में माना जा रहा है कि इस साल भी कुछ रिकॉर्ड टूटे हैं। अब भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के आने का इंतजार है।
भारी बारिश से किसान काफी चिंतित हैं। उत्तराखंड के खेतों में धान, सोयाबीन, काले भट्ट जैसी दलहनी फसलें हैं, वहीं ऊपरी क्षेत्रों में वर्ष भर के लिए कटने वाली घास काटने का काम भी चल रहा है। अनेक स्थानों पर कटी घास के नुकसान होने की चिंता काश्तकारों को सता रही है। राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में भी असमय बारिश से फसलों को भारी नुकसान हुआ है। इस बारिश का असर फसल और सब्जी उत्पादन पर आने वाले समय में दिखाई देगा।
वास्तव में इंसान अपने भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए जिस प्रकार पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ कर रहा है, वो भविष्य में पूरी दुनिया के लिए बेहद ही घातक सिद्ध होने वाला है।
जैसा की हम देख पा रहे कि सर्दियों में रिकॉर्ड तोड़ सर्दी, गर्मियों में रिकॉर्ड तोड़ झुलसा देनेवाली गर्मी, बारिश के दिनों में रेगिस्तान में बाढ़ तो मैदानी इलाकों में भी कहीं बिल्कुल सूखा, ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, बाढ़, भूकम्प, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
क्या प्रकृति हमें कोई संकेत दे रही है? क्या हम किसी अनजान खतरे की तरफ बढ़ते जा रहे हैं? क्या होगा हमारा हश्र अगर यही रहे हालात? जिस प्रकार से इंसान अपने भौतिक सुखों की पूर्ति के लिए प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कर रहा है प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध विदोहन कर रहा है। उससे हम जितना विकास कर रहे हैं, वो हमें विनाश के पथ पर ले जा रहा है। प्रकृति हमें बार-बार इशारा कर रही है, बार-बार चेतावनी दे रही है, लेकिन फिर भी इंसान सुधरने का नाम नहीं ले रहा। जो आने वाले समय में एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है।
विशेषज्ञों के अनुसार पिछले कुछ सालों से सर्दी, गर्मी और बरसात का मौसम अपने निर्धारित चक्र के अनुसार नहीं चल रहा है। मौसम के बदलावों पर लगभग एक दशक से ज्यादा समय से विमर्श चल रहा है। पर्यावरण के पहरूओं ने इस मामले में न जाने कितने पहले दुनिया को आगाह कर दिया था कि प्रकृति एवं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ के नतीजे बहुत ही भयानक रूप में सामने आ सकते हैं। कभी अतिवर्षा का सामना करना होगा तो कभी गर्मी इतनी प्रचुर मात्रा में पड़ेगी कि इसे सहन करना दुष्कर होगा तो कभी इस कदर जाड़ा पड़ेगा कि लोग असहज हो उठेंगे।
यह मान लीजिए कि प्रकृति ने अलार्म बजाना आरंभ कर दिया है। अभी तो यह अंगड़ाई है आगे और लड़ाई है की तर्ज पर वक्त आ चुका है कि हम चेत जाएं और भविष्य में इसकी भयावहता का अंदाजा लगाते हुए जलवायु परिवर्तन के खतरों पर केवल विमर्श न करें, वरन इसके लिए संजीदा होकर प्रयास आरंभ करें। जलवायु परिवर्तन के असर से शायद ही कोई बच पाए। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही मौसम में बदलाव महसूस किया जा रहा है।
यह समस्या वैश्विक स्तर पर एक समान बनी हुई है। जिस भी देश में जब भी सर्दी पड़ती है वहां इस बार पहले की अपेक्षा ज्यादा सर्दी पड़ने की खबरें हैं। पर्यावरण विदों की चिंता बेमानी नहीं है कि अगर प्रकृति से इसी तरह छेड़छाड़ की जाती रही तो आने वाले दिनों में पर्यावरण का असंतुलन पैदा होगा, जो मनुष्य और जंगली जानवरों आदि के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है। ग्रीन हाऊस गैस के ज्यादा उत्सर्जन, वन क्षेत्र के कम होने और कांक्रीट जंगलों के कारण मौसम बहुत ही ज्यादा हमलावर होता प्रतीत हो रहा है।
विश्व की सभी बड़ी पर्वत मालाएं आल्प्स, एंडीज, रॉकीज, अलास्का, हिमालय बर्फ विहीन होती जा रही हैं। हमेशा बर्फ से ढके ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक 150 से 200 क्यूबिक किलोमीटर बर्फ हर साल खो रहे हैं। पिछले दिनों अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनों ही जगह तापमान में अचानक ऐसा उछाल आया कि सारे रिकॉर्ड टूट गए। अंटार्कटिक में बर्फ 1979 के दशक के बाद सबसे कम हो गई है। हालांकि अभी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इसके लिए जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार है। परंतु वैज्ञानिक इस बात की चेतावनी दे चुके हैं कि दोनों ही धु्रवों का तापमान जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो रहा है, भले ही उसमें धीमे-धीमे वृद्धि हो।
जलवायु परिवर्तन, बढ़ता प्रदूषण, ग्रीन हाऊस गैसेज का ज्यादा उत्सर्जन, घटते वन क्षेत्र आदि वास्तव में चिंता का ही विषय हैं। जलवायु परिवर्तन का दौर अभी आरंभ हुआ है। यह जैसे जैसे गहराएगा, वैसे वैसे इसकी विभीषिका भी और अधिक भयावह होती जाएगी। जलवायु परिवर्तन से अनेक तरह के वायरस भी जन्म लेकर तरह तरह की महामारियों को फैलाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस स्थिति के लिए कोई और नहीं बल्कि हम खुद जिम्मेदार हैं।
अगर हमने समय रहते अपनी आदतों को नहीं सुधारा और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाया तो परिणाम समूचे विश्व के लिए घातक होगें। जनता के द्वारा, जनता की एवं जनता के लिए चुनी गई लोकतांत्रिक सरकारों को चाहिए कि वे हर तिमाही में जलवायु के अंकेक्षण (आडिट) की मुकम्मल व्यवस्था करें। इसके लिए इस मसले को राष्ट्रीय कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना होगा, इसके लिए पृथक से एक मंत्रालय का गठन किया जाना अब वक्त की जरूरत बन चुका है।