- बढ़ता प्रदूषण बन रहा नागरिकों के लिए खतरनाक
- पराली का प्रबंधन तथा वायु प्रदूषण के समाधान की दरकार
जनवाणी संवाददाता |
मोदीपुरम: इन दिनों देश में वायु प्रदूषण की चर्चा जगह-जगह हो रही है। यह समस्या लगातार बढ़ रही है। जिससे कमोबेश सभी जीव प्रभावित है। नागरिकों में इसके प्रति उदासीनता दिखाई दे रही है। इसकी मार हास्य के लोगों पर अधिक पड़ती है। वायु प्रदूषण के बारे में कहा जा रहा है कि हवा की धीमी रफ्तार और अधिक नमी की वजह से यह स्थिति लगातार बनी हुई है। मगर इस मौसम में तो हर वर्ष यह समस्या बढ़ रही है।
दुनिया के कई देशों ने शासकीय पहल की और नागरिक सहयोग से न सिर्फ अपने महानगरों की वायु गुणवत्ता को ठीक किया है। बल्कि कई देशों ने तो दूषित नदियों को निर्बल करने में सफलता हासिल की है। हम अब तक पराली जलाने व निर्माण कार्यों पर खास अवधि में अपेक्षित रोग का तंत्र नहीं विकसित कर सके है। हमारे देश के कई शहर दुनिया के काफी प्रदूषित शहरों में गिने जा रहे है।
दिल्ली को पिछले साल देश में सबसे प्रदूषित शहर आंका गया। इस लिहाज से अनुमान लगाए कि यदि पटाखों पर रोक ना लगी होती तो दिल्ली व उसके बाद के दिनों में दिल्ली की आबोहवा कैसी रहती। एक घनी आबादी वाले महानगरों को चैन से सांस दे सकती है तो उन्हें यह कोशिश अवश्य करनी चाहिए कि लोग शहरों में रहते हुए एक उचित सांस ले सके और वायु प्रदूषण से होने वाले खतरों से अपने को बचा सके।
सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों का जीना हुआ दुश्वार
वायु प्रदूषण के कारण राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जीने वालों खासकर सांस की बीमारियों से पीड़ित लोगों की जिंदगी दुश्वार हो गई है। पिछले कई दिनों से दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में लगातार वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। आने वाले कुछ दिनों तक ऐसी ही स्थिति की आशंका जताई जा रही है ऐसे में राजधानी के वायु प्रदूषण से जुड़े मामलों की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उचित ही दिल्ली और उसके पड़ोसी राज्यों से पूछा है कि आखिर प्रदूषण कम करने के लिए उन्होंने कौन-कौन से कदम उठाए है।
अदालत ने दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से एक सप्ताह में जवाब मांगा है। पराली जलाने की घटनाएं लगातार देश में कम हो रही है। इससे निपटने के लिए सरकार युद्ध स्तर पर कई तरह के प्रयास कर रही है। ऐसी फसल कटाई मशीनों पर सब्सिडी दी जा रही है। जो पराली को मिट्टी के साथ ही मिला देती है। इससे मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है। जिसका फायदा अगली फसल में होता है।
पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में इस तरह की काफी मशीन पहुंची है, लेकिन किसानों को समय पर यह मिल चल सके। यह सुनिश्चित करना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने विशेष कर एनसीआर में स्थित उद्योगों को कोयल जैसे इन दोनों का इस्तेमाल बंद करने और प्राकृतिक गैस एवं बायोमास का उपयोग अत्यधिक बढ़ाने को कहा है।
सर्दियों में और बढ़ेगी परेशानी
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विवि के वैज्ञानिक डा. आरएस सेंगर के अनुसार पराली जैसी समस्याओं का तत्काल समाधान होना बहुत जरूरी है अभी तो सर्दियों की शुरुआत हुई है जब दिल्ली एनसीआर का तापमान और गिरेगी तब पराली का यही धुआं बिल्कुल ठहर जाएगा और पूरा आसमान धुंध की चादर में लिपट जाएगा।
यह स्थिति विशेष कर बुजुर्ग और सांस से पीड़ित मरीजों के लिए काफी खतरनाक हो जा रही है। पराली की समस्या का सार्थक नतीजा निकल सकता है। विगत वर्षों की अपेक्षा पराली प्रबंधन पर विशेष जोर दिया गया है और काफी हद तक इसका प्रबंधन भी किया जा रहा है, लेकिन अभी किसानों को और अधिक जागरूक करने की आवश्यकता है।
वातावरण में मौजूद धूल से बढ़ेगी एलर्जी
लगातार वातावरण में धूल के कण एवं प्रदूषित गैसों के बढ़ने से वातावरण में धुंध छा गई है। यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। केंद्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने संबंधित राज्य सरकारों को एनसीआर में पांचवी तक की कक्षाएं अब आॅनलाइन संचालित करने के निर्देश दिए है। प्रदूषण का स्तर बढ़कर रात में पीएम 2.8 का स्टार 430 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है। मेरठ में भी लगातार प्रदूषण का हिस्सा बढ़ रहा है।
इससे बचकर रहने की आवश्यकता है। अचानक हवा की स्थिति में हुए बदलाव के कारण इस तरह की स्थिति उत्पन्न हुई है। इस समय मैदान में हवा की गति बहुत कम है। जिसके कारण यह स्थिति उत्पन्न हो गई है। पहाड़ों पर पश्चिमी विकशॉप बना हुआ है। जिससे उत्तर पश्चिमी हवाएं मैदान तक नहीं पहुंच पा रही है। दिन का तापमान लगातार नीचे गिर रहा है। यह कर्ण प्रदूषण एक ही जगह बने हुए है।
यही कारण है कि वातावरण में प्रदूषण का स्तर चरम पर पहुंच गया है। प्रदूषण तभी कम होगा। जब बारिश हो जाए अथवा तेज हवाएं चलने लगे तभी यह धुंध की चादर जो वातावरण में बन गई है। इससे निजात पाई जा सकती है। दीपावली का पर्व आने वाला है। उन दिनों पटाखों के चलने से वातावरण और अधिक खराब हो सकता है।