- बंद हुईं फैक्ट्रियां, कर्मचारियों में दहशत, उद्योगपति भी नहीं डाल रहे काम का दबाव
- 15 प्रतिशत तक पहुंची फैक्ट्रियों की प्रोडक्शन
ऋषिपाल सिंह |
मेरठ: जनपद से देश-विदेश में स्पोर्ट्स, कैंची, बैंडबाजा, पेपर, कालीन आदि से संबंधित सामान बनकर तैयार होता है। इनका यहां से काफी संख्या में निर्यात किया जाता है। पिछले वर्ष की मार के बाद आर्थिक स्थिति अभी सुधरी नहीं थी कि फिर एक बार इसकी मार उद्योगों पर पड़नी शुरू हो गई है।
यहां कर्मचारियों को भी छुट्टी दे दी गई है। आरबीआई ने जरूर एक स्कीम एमएसएमई को दी है, लेकिन इसका लाभ सभी उद्योगों को नहीं मिल पायेगा। कोरोना का कहर फिर से उद्योगों पर पड़ता दिखाई पड़ रहा है। प्रोडेक्शन घटकर नीचे पहुंच चुका है। जिसके चलते उद्यमियों ने फैक्ट्रियां तक बंद कर दी हैं।
मेरठ में स्टैग इंटरनेशनल, एसजी, एसएस, बीडीएम, नालको, स्पोर्टलैंड समेत तमाम बड़ी कंपनियां स्पोर्ट्स से संबंधित सामान बनाती है। इनके सामनों का निर्यात विदेशों में होता है जिनसे मेरठ का नाम देश विदेशों में छाया हुआ है। इसके अलावा यहां काफी संख्या में पेपर, कालीन व अन्य सामान बनाने की भी फैक्ट्रियां है।
अब इन फैक्ट्रियों पर कोरोना की मार पड़नी शुरू हो गये है। उद्योगपति परेशान हैं कि पिछले दो साल से कोरोना ने उभरने का समय नहीं दिया है एक दो महीने बीच में काम आगे बढ़ा था, लेकिन आज के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि मांग 80 फीसदी तक घट चुकी है।
प्रोडेक्शन में आई 60 फीसदी तक की कमी
बीते वर्ष 2020 में मार्च में लॉकडाउन लगा था जिसके बाद यहां उद्योग धंधे पूरी तरह चौपट होने शुरू हो गये थे। मार्च, अप्रैल, मई और जून माह में काम पूरी तरह से बंद हो चुका था। जो प्रोडेक्शन 80 फीसदी थी वह घटकर 20 फीसदी रह चुकी थी। अगस्त के बाद काम कुछ आना शुरू हुआ था।
डिमांड बढ़ी थी और वह प्रोडक्शन बढ़कर 70 से 80 फीसदी तक पहुंच गई थी, लेकिन 2021 ने पहले से भी बुरे हालात पैदा कर दिये हैं। अब अप्रैल माह में ही प्रोडेक्शन घटकर 15 फीसदी रह गई है। ऐसे में उद्योग-धंधे केसे चल पाएंगे। पहले से ही उद्योग बड़ी मुश्किलों से चल पा रहे थे अब फिर से इन्हें कैसे उभारा जाएगा। अगर
यही हालात रहे तो उद्योगपतियों की हालत खराब हो जाएगी।
शहर में छोटी बड़ी करीब 22 हजार से अधिक इकाइयां हैं। इनमें लाखों की संख्या में मजदूर व अन्य कर्मचारी काम करते हैं। कोरोना के कारण इन सबकी रोजी-रोटी पर बन आई है। पिछले साल हालात इतने खराब नहीं थे। जितने इस वर्ष हो गये हैं। इस बार कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया है।
अस्पतालों में लोगों का इलाज नहीं हो पा रहा है। जिससे लोग परेशान हैं। कहीं आॅक्सीजन नहीं मिल पा रही है। इन इकाइयों में काम करने वाले कर्मचारियों में भी दहशत दिखाई पड़ रही है। उन्होंने फैक्ट्रियों में जाना ही बंद कर दिया है। उधर, मलिकों की ओर से भी कोई जबरदस्ती नहीं की जा रही है। काम बंद होने के कारण प्रोडक्शन घटा है। जिससे काफी हद तक नुकसान पहुंच रहा है।
मजदूरों पर नहीं डाला जा रहा दबाव
आईआईए के प्रदेश अध्यक्ष पंकज गुप्ता का कहना है फैक्ट्रियां पहले ही घाटे में चल रही थी। अब वह कोरोना की मार झेल रही हैं। प्रोडक्शन पूरी तरह से घट चुका है। एनजीटी व प्रदूषण बोर्ड भी समय-समय पर फैक्ट्रियों को नोटिस भेजता रहता है। ऐसे में फैक्ट्री संचालकों के सामने एक ही कई परेशानियां हैं। कोरोना ने पूरी तरह से कमर तोड़कर रख दी है। इस समय मजदूरों को फैक्ट्री नहीं बुलाया जा रहा है।
उनपर कोई दबाव नहीं डाला जा रहा है। शासन की अनुमति है कि कम संख्या में बुलाकर कार्य कराया जा सकता है, लेकिन दहशत इतनी है कि मजदूरों से काम नहीं कराया जा रहा है। मजदूर ही तो फैक्ट्री चलाते हैं ऐसे में लापरवाही नहीं की जा रही है। कोरोना का असर भी पड़ना शुरू हो गया है। प्रोडेक्शन है नहीं और खर्चे उतने ही हैं ऐसे में उन खर्चों को कैसे पूरा किया जाए।
तिनके का सहारा भर है आरबीआई की स्कीम
रिजर्व बैंक के गर्वनर शक्तिकांत दास ने महामारी से निपटने के लिये आर्थिक पैकेज देते समय छोटे कारोबारियों, उद्यमियों और व्यक्तिगत कर्जदाताओं को कर्ज को पुर्नगठन सुविधा के रूप में राहत दी है। आरबीआई की ओर से घोषित राहत स्कीम के तहत बैंकों से 25 करोड़ तक का लोन लेने वाले ग्राहक या एमएसएमई कंपनियों के लिये दो वर्षों तक कर्ज अदायगी में छूट दी गई है।
इसका लाभ उन्हीं कंपनियों को मिलेगा जिन्होंने पिछले वर्ष इसका लाभ नहीं उठाया था। इसका फैसला भी बैंकों पर छोड़ा गया है। बैंक उन लोगों को भी राहत दे सकता है। जिन्होंने पिछले वर्ष इसका लाभ उठाया था। इसका लाभ विदेशों में आयात करने वाली कंपनियों समेत उन्हें भी होगा जो चिकित्सा उपकरण, वैक्सीन आदि भी बनाती है।
यह स्कीम डूबते को तिनके का सहारा भर है। इससे एमएसएमई को कुछ हद तक लाभ जरूर पहुंचेगा। क्योंकि आज के समय में इस सेक्टर को मदद की जरूरत है। इस समय इनके पास बिल्कुल पैसा नहीं है इससे कुछ राहत मिलने की उम्मीद है। -पंकज गुप्ता, आईआईए प्रदेश अध्यक्ष
कोविड के कारण 70 से 80 प्रतिशत तक सेल्स कम हो गइ। संक्रमण से खेलों का आयोजन भी बंद हो चुका है। सीओ-2 भी नहीं मिल पा रही है। जिससे वेल्डिंग होती है। इसके कारण उद्योग-धंधे बंद करने पड़ रहे हैं। उपकरण बनने ही बंद हो गये हैं। जिसका असर उद्योगों पर दिखाई पड़ रहा है। -मनोज अग्रवाल, मैनेजर, नेल्को स्पोर्ट्स
कोविड काल में परिस्थिति नाजुक होती जा रही हैं। ऐसे में सुरक्षा सर्वोपरि है। इस समय खेल बंद हो चुके हैं, जिसके चलते सेल्स न के बराबर है। प्रोडेक्शन घट गया है जिसके चलते उद्योगों पर असर दिखाई पड़ रहा है। उद्योगों की स्थिति वर्तमान में काफी खराब है। -पारस आनंद, डायरेक्टर, एसजी