एक व्यक्ति ने अगरबत्ती की दुकान खोली। उसने दुकान के बाहर एक साइन बोर्ड लगाया-यहां सुगन्धित अगरबत्तियां मिलती हैं। दुकान चल निकली। एक दिन एक ग्राहक उसके दुकान पर आया और कहा-आपने जो बोर्ड लगा रखा है, उसके एक विरोधाभास है। भला अगरबत्ती सुगंधित नहीं होंगी तो क्या दुर्गन्धित होंगी? उसकी बात को उचित मानते हुए विक्रेता ने बोर्ड से सुगंधित शब्द मिटा दिया।
अब बोर्ड इस प्रकार था-यहां अगरबत्तियां मिलती हैं। इसके कुछ दिनों के पश्चात किसी दूसरे सज्जन ने उससे कहा-आपके बोर्ड पर यहां क्यों लिखा है? दुकान जब यहीं है तब यहां लिखना निरर्थक है। इस बात को भी अंगीकार कर विक्रेता ने बोर्ड पर यहां शब्द मिटा दिया। अब बोर्ड था-अगरबत्तियां मिलती हैं। पुन: उस व्यक्ति को एक रोचक परामर्श मिला- अगरबत्तियां मिलती हैं का क्या प्रयोजन? अगरबत्ती लिखना ही पर्याप्त है।
अत: वह बोर्ड केवल एक शब्द के साथ रह गया-‘अगरबत्ती’ विडम्बना देखिये। एक शिक्षक ग्राहक बन कर आए और अपना ज्ञान दिया-दुकान जब मात्र अगरबत्तियों की है तो इसका बोर्ड लगाने का क्या लाभ? लोग तो देखकर ही समझ जाएंगे कि मात्र अगरबत्तियों की दुकान है। इस प्रकार वह बोर्ड ही वहां से हट गया। धीरे-धीरे दुकान की बिक्री मंद पड़ने लगी और विक्रेता चिंतित रहने लगा।
एक दिन में उसका पुराना मित्र उसके पास आया। मित्र से उसके चिंता ना छिप सकी। उसने इसका कारण पूछा। व्यवसाय के गिरावट का पता चला। मित्र ने सब कुछ ध्यान से देखा और कहा-तुम बिल्कुल ही मूर्ख हो। इतनी बड़ी दुकान खोल ली और बाहर एक बोर्ड नहीं लगा सकते थे-यहां सुगंधित अगरबत्तियां मिलती हैं।