विज्ञापन सामान्यत: किसी वस्तु विधा या सेवा से उपभोक्ताओं की जानकारी करवाता है। उसमें खरीदने की इच्छा जागृत करता है और साथ ही बाजार में उपलब्ध वस्तुओं के चयन में हमारी सहायता करता है। कई बार ये उपभोक्ता के जीवन में सहायक भूमिकाएं निभाते हैं लेकिन कई बार विज्ञापन भ्रामकता भी बढ़ता है जिससे इतना गहरा प्रभाव पड़ जाता है कि किसी एक विशेष उत्पाद की उपभोक्ता को आदत पड़ जाए। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में दुनियाभर की तमाम कंपनियां अपने प्रोडक्ट के बेहतरीन होने का दावा करती हैं। प्रोडक्ट की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो इसके लिए विज्ञापनों पर खूब पैसे खर्च करती हैं, यहां तक कि झूठे सर्वे दिखाती हैं। भारतीय मार्केट में विज्ञापनों का मार्केट हर साल बढ़ रहा है। विदेशी कंपनियों का निवेशीकरण साल-दर-साल बढ़ रहा है। जाहिर है कि कंपनियां किसी भी अपने उत्पाद को बेचने के लिए सेलिब्रिटीज को मुंहमांगी कीमत देने में पीछे नहीं हटती हैं।
अब बात आती है उत्पाद की गुणवत्ता और किये गए वादे की जो उपभोक्ताओं से किया जाता है, उदहारणस्वरुप ‘आठ दिनों में गोरापन’, ‘इंस्टेंट गोरापन’, आठ दिनों में वजन कम करें’, ‘अपना लक पहन कर चलो’, इसको लगा डाला तो लाइफ झिंगालाला’ इत्यादि टैगलाइन्स भ्रामकता पैदा करने के लिए काफी हैं। वहीं कई बार देखने को मिलता है की बड़ी-बड़ी फिल्म, क्रिकेट, टेनिस सेलिब्रिटीज कई ऐसे उत्पादों का प्रचार करते हुए नजर आती हैं जो वो खुद इस्तेमाल में नहीं लाते हैं लेकिन एक बड़ी राशि के बदले ये सेलिब्रिटीज तेल, नमक, चाय, बिस्कुट इत्यादि बेचते हुए नजर आते हैं।
उपभोक्ता मामले के विभाग के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने भ्रामक विज्ञापनों को रोकने और उपभोक्ताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से ‘भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश, 2022’ अधिसूचित किए हैं। नये दिशानिर्देश में दो और अहम बातें शामिल हैं जो प्रलोभन और मुफ्त देने वाले विज्ञापनों को परिभाषित करती हैं और बच्चों के लिए विज्ञापन की सीमा तय करती हैं। इसमें मशहूर लोगों द्वारा प्रचार कराकर उन्हें निशाना बनाया जाना भी शामिल है।
बीती मई में सीसीपीए ने नंबर वन सेंसिटिविटी टूथपेस्ट बताने वाले सेंसोडाइन टूथपेस्ट के बाद ‘श्योर विजन’ विज्ञापन को बंद करने का निर्देश दिया और झूठे और भ्रामक दावे पर 10 लाख रुपये का जुमार्ना लगाया। श्योर विजन इंडिया कंपनी पर कार्रवाई दरअसल सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी ने चश्मा, लेंस बनाने वाली कंपनी श्योर विजन इंडिया पर भ्रामक विज्ञापन को लेकर कार्रवाई की है।
सीसीपीए की गाइडलाइंस ने सेलिब्रिटीज को ऐड फिल्म में झूठे दावे ना करने की सख्त चेतावनी दी है। गाइडलाइंस के अनुसार, अगर कोई सेलिब्रिटी किसी विज्ञापन में गलत या भ्रामक दावे कर रहा है, जिसके उसके पास कोई सबूत ही ना हो तो सेलिब्रिटी या इनफ्लुएंसर पर भी लीगल एक्शन हो सकता है। इसलिए इन दिनों हर कोई ब्रांड डील साइन करने से पहले अपने लीगल टीम के जरिए दावे क्रॉस चेक कर रहा है।
कोई माने या न माने, पर यह सच है कि सोशल मीडिया पर आयुर्वेदिक औषधियों से आंखों की रोशनी लौटाने/बढ़ाने, प्रोस्टेट, मधुमेह आदि रोगों को एक सप्ताह में ठीक करने के भ्रामक और झूठे दावे वाले विज्ञापनों की भरमार लगी रहती है। विज्ञापनों की भाषा और शैली ऐसी होती है कि बीमारी से पीड़ित व्यक्ति झांसे में आकर हजारों रुपए की दवा आनलाइन मंगवा कर सेवन करते होंगे और जब दवा खरी साबित नहीं होती, तो उन व्यक्तियों का ठगा सा महसूस करना स्वाभाविक होता है।
सीसीपीए की गाइडलाइंस के द्वारा भ्रामक विज्ञापनों को पकड़ने का दायरा बढ़ गया है। देश के 10,000 से अधिक मुद्रित माध्यमों और 850 से अधिक बहुभाषी टेलीविजन चैनलों पर विज्ञापनों की जांच परख करना मुश्किल काम है। परंतु आज मुख्य समस्या है आॅनलाइन विज्ञापनों का प्रसार जिनमें से सभी भारत में तैयार नहीं होते। इनकी प्रभावी पड़ताल के लिए बहुत बड़े ढांचे की आवश्यकता होगी।
बेहतर होगा कि प्राधिकार अन्य मानक प्राधिकारों के साथ मिलकर काम करे और स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत उत्पादों की पैकेजिंग पर दावों का नियमन कर सके तथा तंबाकू उत्पादों की तरह स्वास्थ्य चेतावनियां लिखवा सके। सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसे भ्रामक और झूठे दावे करने वालों पर नजर रखे और कानूनी कार्रवाई करे ताकि आम जनता को ऐसे विज्ञापनों के झांसे में आने से बचाया जा सके। वहीं मौजूदा कानून में जो कमियां है, उन्हें भी दूर किया जाना चाहिए। इस मामले में लोगों को भी सचेत रहने की जरूरत है।