Tuesday, January 21, 2025
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कानपुर या लायन सफारी में जिंदगी गुजारेगा शावक

  • दिल से नहीं दिमाग से काम लिया मादा तेंदुआ ने, मेरठ छोड़ना होगा
  • ग्रामीणों की नासमझी ने शावक की जिंदगी में घोला जहर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: तीन दिन तक मां और शावक के बीच चली भावुक जंग में निर्दयी मां जीत गई और उस शावक को स्वीकारने से इंकार कर दिया जो 72 घंटे से अपनी मां के प्यार के लिये तड़प रहा था। जिला वन अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि शावक को कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर या लायन सफारी में छोड़ने का निर्णय बुधवार को लिया जाएगा। फिलहाल शावक को डीएफओ आफिस में सुरक्षित रखा गया है।

किठौर के भगवानपुर बांगर गांव के ग्रामीणों ने ईख के खेत में पड़े शावक को उठाकर न केवल घर ले गए बल्कि उसके साथ फोटोशूट और सेल्फी तक ली गई। इससे शावक के शरीर में इंसानी गंध समा गई जो अंत में मां और शावक के बीच भावुक रिश्ते को खत्म कर गई। वन विभाग की टीम ने बताया कि जिस जगह पर शावक को बाक्स में रखा गया था उससे थोड़ी दूरी तक मादा तेंदुआ कई बार आई, लेकिन पास में आने की उसने इसलिये जुर्रत नहीं की क्योंकि उसको शावक के आसपास इंसानी गंध महसूस हो रही थी।

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तेंदुआ चूंकि काफी चालाक जानवर होता है इस कारण उसे अहसास हो रहा होगा कि शावक के पास कोई है इस भय के कारण उसने शावक के पास आना भी जरुरी नहीं समझा। दरअसल ग्रामीणों के उठाने और कृत्रिम दूध पिलाने और कपड़े और डिब्बे के कारण शावक के शरीर से निकलने वाली वो गंध लगभग खत्म हो गई थी जो मादा तेंदुआ और शावक के बीच सेंशर का काम करती है। जिला वन अधिकारी ने बताया कि काफी प्रयास करने के बाद भी शावक को उसकी मां से नहीं मिलवा पाये।

इस कारण शावक को मेरठ स्थित आफिस लाना पड़ा। बुधवार को शासन स्तर पर फैसला लिया जाएगा कि शावक को कानपुर जू, लखनऊ जू, गोरखुपर जू या फिर इटावा लायन सफारी में किसमें रखा जाए। चारों जगहों पर बिल्ली प्रजाति के शावकों को रखने की पूरी व्यवस्था है। जिला वन अधिकारी ने बताया कि इस घटना के बाद ग्रामीणों की कार्यशाला आयोजित कर उनको बताया गया कि जंगली जानवरों के शावको को कभी नहीं उठाना चाहिये नहीं तो उसकी मां उसे स्वीकार नहीं करती है। वहीं डीएफओ आफिस में शावक को देखने के लिये स्टाफ में होड़ लग गई।

अलविदा मेरे बच्चे, अफसोस तुझे अपना न सकी

बच्चे! मैं तेरी मां हूं। मेरी ममता रोजाना मुझे तेरे पास खींचकर ला रही है, लेकिन मैं बेबस हूं अपने उसूलों से। तुझे अब साथ लेकर नहीं जा सकती। बेशक मैंने तुझे जन्म दिया है। मगर पिछले तीन दिन से तुझमें आलस्य, स्वार्थ, दगा, भ्रष्टाचार की जो गंध आ रही है। उससे मुझे ये लग रहा है कि तू जरूर मानव संगति में रहकर आया है। इसलिए अब मैं तुझे दुलार भी नहीं दूंगी। बस दूर से बातें करुंगी।

वो भी तेरे यहां रहने तक। मुझे मालूम है कि हमारे समाज से जुड़ा यहां का सरकारी महकमा तुझे मुझसे मिलाने के भरसक प्रयास में है, लेकिन उन्हें हमारे उसूलों की क्या खबर। हम शर्मीले, दृढ़ निश्चयी और अपनों के प्रति वफादार हैं। मगर वो देख सामने खर्राटे लेते सिपाहियों को मेरी निगरानी की ड्यूटी में बेखबर नींद निकाल रहे हैं। इन्हें तुझसे मेरी मुलाकात की भनक तक नहीं। हां सुबह मेरे पदचिह्न देख आवश्य दावे ठोकेंगे कि रात मादा तेंदुआ आई थी। मगर बच्चे को लेकर नहीं गई। बता ऐसे समाज की संगत में रहने के बाद भला मैं तुझे कैसे स्वीकार करुं।

समाज मुझे क्या कहेगा? कि ऐसे बच्चे को साथ लिए घूम रही है जो स्वार्थी, आलसी, भ्रष्टाचारी नकारा समाज की सोहबत में रहकर आया है। तुझे भी तमाम उम्र यही ताने झेलने पड़ेंगे। वफादारी तू कर नहीं पाएगा क्योंकि तूने वही भोजन ग्रहण किया है जिसे सामने सो रहे पहरेदार खाते हैं। मुझे यह भी मालूम है कि मेरे नहीं ले जाने पर तू यहां चंद घंटों का मेहमान है। भले ही इन्होंने तुझे खुशी-खुशी खिलाया हो। तुझसे आनंदित हुए हों मगर ये तुझे पालेंगे बिल्कुल नहीं। क्योंकि हर प्राणी को इनका समाज अपनी तरह बेवफा समझता है। बेटा गौर से सुन !

ये लोग न तो अपने पेशे के प्रति वफादार होते हैं न मां-बाप के प्रति, न बीवी बच्चों के प्रति और न ही समाज के प्रति खुद अपने प्रति भी कितने वफादार हैं देख लेना। एक समय सीमा के बाद हर स्तर पर रंग बदलना इनकी फितरत है। मांस मदिरा को ये जिंदगी से प्यारी चीज समझते हैं शाम ढलते ही इनमें कई पहरेदार नशा करके सो जाते होंगे। फिर जब इन्हें इन सबकी परवाह नहीं तेरी क्या परवाह करेंगे। यहां से ले जाएंगे। फिर अफसरों में मंथन होगा कि तुझे कहां भेजा जाए? बाकायदा हेल्थ चेकअप करेंगे। उसके बाद तुझे इस जिले से रवाना कर दिया जाएगा। खाना बदस्तूर मिलेगा। खैर मेरी नसीहत याद रखना, इस समाज से जितना हो सके बच जाना। कोशिश यही करना कि अपनों के साथ रहना भले ही कैद में रहना पड़े। अलविदा मेरे बच्चे।

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